मिलिए धनबाद की बेटी शीलिमा से, भागलपुर में संभाल रहीं सीनियर डिप्टी कलेक्टर की कमान Dhanbad News
कोरोना काल में महामारी से बचाव के लिए जागरूकता अभियान हो या फिर बाढ़ पीडि़तों की मदद मानवीय संवेदनाओं की मिसाल पेश करते हुए प्रसव पीड़ा से कराह रही जाम में फंसी महिला को अस्पताल पहुंचा उसकी व दो जिंदगी बचाई।
तापस बनर्जी, धनबाद : कोरोना काल में महामारी से बचाव के लिए जागरूकता अभियान हो या फिर बाढ़ पीडि़तों की मदद, धनबाद की इस बिटिया ने अपना फर्ज शिद्दत से अंजाम दिया। और तो और मानवीय संवेदनाओं की मिसाल पेश करते हुए प्रसव पीड़ा से कराह रही जाम में फंसी महिला को समय पर अस्पताल पहुंचा उसकी व उसके बच्चे की जिंदगी बचाई। ये तो कुछ नजीरें हैं, इनके काम की फेहरिस्त तो इससे बहुत लंबी है। हम बात कर रहे हैं शीलिमा कुमारी की। धनबाद रेलवे स्टेशन प्रबंधक रत्नेश कुमार की यह बेटी इन दिनों भागलपुर में सीनियर डिप्टी कलेक्टर है। उसकी कर्तव्यपरायणता के सभी मुरीद हैं।
शीलिमा बताती हैं कि कोरोना काल में भागलपुर के लोगों को इस बीमारी से बचाने के लिए जागरूक करने का जिम्मा मिला था। उसे निभाया। अपील के साथ जरूरतमंदों को मास्क उपलब्ध कराए। बताया कि जागरूकता अभियान के दौरान एक दिन देखा कि तिलका माझी थाना क्षेत्र में ट्रैफिक जाम है। सैंकड़ों गाडिय़ां थम गई थीं। आगे पुलिस मास्क जांच कर जुर्माना ले रही थी। तभी एक बाइक के पीछे बैठी महिला पर पड़ी। वह गर्भवती थी, प्रसव पीड़ा से कराह रही थी। उस पर किसी का ध्यान नहीं था। देर हो जाती तो उसकी जान चली जाती। तब बिना वक्त गंवाए भागकर उसके पास पहुंची। उसे अपनी गाड़ी में बिठाया और अस्पताल भागी। उसे समय पर इलाज मिल गया। उसके पूरे परिवार ने आशीर्वाद दिया। उसकी जान बचाकर आत्मसंतोष हुआ।
भागलपुर की सिनियर डिप्टी कलेक्टर शीलिमा। (जागरण)
पहली ही नजर में पकड़ ली गड़बड़ी : भागलपुर के नाथ नगर स्कूल में मध्याह्न भोजन में गड़बड़ी हो रही थी। इसकी शिकायत की जांच का जिम्मा शीलिमा को मिला। उसने फाइलें खंगालनी शुरू कीं तो पहली ही नजर में पकड़ लिया कि एक शिक्षक शिक्षक महीनों से नहीं आए, उनकी हाजिरी भी बन रही थी। छानबीन की, पूरी रिपोर्ट बनाकर विभाग को भेजी गई। शिक्षक पर कार्रवाई हुई। मध्याह्न भोजन की शिकायत भी दूर हुई।
उत्तर बिहार में किया बाढ़ राहत का काम : उत्तर बिहार में बाढ़ राहत कार्य में भी शीलिमा आगे रहीं। बाढ़ पीडि़तों को राहत सामग्री पहुंचाने और उन्हेंं सुरक्षित स्थान तक ले जाने में सक्रिय रहीं।
बचपन से सुनती रही है डीआरएम का जिक्र, इसलिए डीआरएम बनने की कर रही तैयारी
शीलिमा बताती हैं कि बचपन से ही पापा से डीआरएम के किस्से सुनती थी। उनके स्टेशन प्रबंधक होने के कारण डीआरएम की हर गतिविधि की चर्चा होती थी। जब वे कहते थे कि हमारे यहां का पूरा रेल मंडल उनके अधीन है तो मन में डीआरएम बनने का सपना अंगड़ाई लेने लगा। यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं। भरोसा है कि सपना पूरा होगा।