स्कूलों में मध्याह्न भोजन बनाने वाली रसोइयों के घर का ही बुझा चूल्हा
लॉकाडाउन से ही सरकारी स्कूलों में ताला लटका हुआ है। इसके साथ ही इन स्कूलों में मध्याह्न भोजन बनाने के लिए कार्यरत रसोईया भी बेरोजगार हो गई हैं। जिले के 1694 विद्यालयों में कार्यरत 3770 रसोईया को पिछले दस माह से मानदेय नहीं मिला है।
जागरण संवाददाता, धनबाद : लॉकाडाउन से ही सरकारी स्कूलों में ताला लटका हुआ है। इसके साथ ही इन स्कूलों में मध्याह्न भोजन बनाने के लिए कार्यरत रसोईया भी बेरोजगार हो गई हैं। जिले के 1694 विद्यालयों में कार्यरत 3770 रसोईया को पिछले दस माह से मानदेय नहीं मिला है। लॉकडाउन के पहले से ही वेतन नहीं मिला है। इसके कारण रसोईया और उनके परिवार के समक्ष भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है। दुर्गा पूजा, दीपावली, छठ पूजा, हर पर्व-त्योहार फीका रह गया। कई रसोईया ऐसी भी हैं जो उधार लेकर अपना जीवन यापन करने को मजबूर हें। शिक्षा विभाग भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है।
झारखंड प्रदेश विद्यालय रसोईया संयोजिका अध्यक्ष संघ की धनबाद इकाई ने विभाग पर नाराजगी जताते हुए अविलंब मानदेय भुगतान की मांग की है। जिला महासचिव मंजू देवी का कहना है कि राज्य के सभी जिलों ने मार्च तक का रसोईया का मानदेय भुगतान कर दिया है। धनबाद एकमात्र जिला है, जहां रसोईया का मानदेय फरवरी से रोककर रखा गया है। दस माह हो चुके हैं, अब स्थिति खराब होती जा रही है। कोराेना तो मार्च से आया है, लेकिन उससे पहले का मानदेश भी नहीं मिल रहा है। अल्पमानदेय भोगी रसोईया के मानदेय में इस विपत्ति के समय देरी घोर अन्याय है। इस वैश्विक महामारी की घड़ी में रसोईया भुखमरी की कगार पर हैं। उन्होंने कहा कि हेमंत सोरेन की सरकार में विद्यालय में कार्य करने वाली रसोईया सरकार की उपेक्षा की शिकार हो रही हैं। मानदेय के अभाव में तोपचांची प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय हरिहरपुर की रसोईया खरिया देवी की भी हाल ही में मृत्यु हो गई। अगस्त में तीन माह का मानदेय भुगतान का निर्देश दिया गया था, लेकिन वह भी नहीं मिला। प्रतिक्रिया को 1500 प्रतिमाह मानदेय मिलता है।