धनबाद के अधिकारी सूचना नहीं देने को बना रहे अजीबो-गरीब बहाने; सूचना अधिकार कानून 2005 के तहत मांंगी गई थी जानकारी
अलग अलग विभागों के लोक सूचना अधिकारी सूचना अधिकार कानून 2005 के तहत मांगी गयी वांछित जानकारी नहीं देने के अजीबोगरीब बहाने खोज रहे । कोई सामान्य सूचना को भी गोपनीय सूचना बता जानकारी देने से इंकार कर रहे है।
अजय कुमार पांडेय, धनबाद : अलग अलग विभागों के लोक सूचना अधिकारी, सूचना अधिकार कानून 2005 के तहत मांगी गयी वांछित जानकारी नहीं देने के अजीबोगरीब बहाने खोज रहे । कोई सामान्य सूचना को भी गोपनीय सूचना बता जानकारी देने से इंकार कर रहे है। तो कोई वांछित सूचना को ही अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर का बता सूचना मांगनेवाले को बैरंग लौटा रहे। तो आप भी यदि इस कानूने के तहत ऐसा कुछ करने की सोच रहे हैं तो हो सकता है कि आपको सिवाय निराशा के कुछ और हाथ ना लगे।
वजह अधिकारी की मर्जी। वह चाहे तो आपको सूचना चंद दिनों में ही मिल जाए। और उसकी इच्छा ना हो दौड़ लगाते रहिए। अधिकारी आपके आवेदनों को सभी कागजात दूरुस्त रहने के बावजूद निरस्त् कर देगा। और निरस्त करने का जो कारण आपको बताया जाएगा वह गले नहीं उतरेगी।
ताजा मामला बीएसएनएल से जुड़ा है। जिसमें लोक सूचना अधिकारी ने शुल्क के रूप में जमा पोस्टल आडर्र को ही अमान्य करार देकर सूचना देने से इंकार कर दिया। अब सूचना मांगने वाला राज्य सूचना ट्रिब्यूनल जाने की तैयारी कर रहा है।
इस बारे में बात करते हूए स्थानीय सिविल कोर्ट के अधिवक्ता और आवेदक शंकर पोद्दार ने बताया कि उन्होंने इस साल सात अप्रैल को एक आवेदन बीएसएनएल के अधिकारियों को दिया था। जिसमें सड़क चौड़ीकरण के दौरान निकाले गये तांबे के केबल के रख रखाव से जुड़ी जानकारी मांगी थी।उन्होंने ने यह जानकारी तब मांगी जब उन्हें पता चला कि विभाग का एक गैर अधिकृत अभियंता ने इन केबलों को औने पौने दामों में बेच कर अवैध संपत्ति बनायी है।
लेकिन विभाग के केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी सह उप महाप्रबंधक (प्रशासन) पी सिंह ने वांछित सूचना तो नहीं ही दी। इसके उलट आवेदन के साथ संलग्न पोस्टल आर्डर को ही अमान्य करार कर सूचना देने से मना कर दिया।
वहीं दूसरा मामला जिला आपूर्ति विभाग से जुड़ा है, जिसमें सूचना नहीं दिए जाने के लिए सरकार के गोपनीय जानकारी सुरक्षा कानून का हवाला दिया गया था। जबकि आवदेक ने महज खाद्यान वितरण से जुड़ी जानकारी मांगी थी। जो कहीं से भी सरकारी गोपनयता कानून के दायरे में नहीं आता है। इस बारे में जब संबंधित पदाधिकारियों का पक्ष लेने का प्रयास किया गया तो उन्होंने इन मुद्दों पर बात करने से मना कर दिया।