डीसी लाइन पर खतरा और नौकरशाही की सनक पर भारी पड़ी वोट की चिंता
डीसी लाइन बंदी का निर्णय डीजीएमएस के डीजी की अध्यक्षता में बनी उच्चस्तरीय कमेटी की अनुशंसा के आधार पर लिया गया। लेकिन, इस जांच रिपोर्ट से रेलवे सहमत नहीं थी।
धनबाद, मृत्युंजय पाठक। 'धनबाद-चंद्रपुरा (डीसी) रेल की सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं है। ट्रैक पूरी तरह सुरक्षित है। इससे भी खराब ट्रैक पर देश में रेलगाडिय़ां चलती हैं। डीसी लाइन पर ट्रेन परिचालन में कोई दिक्कत नहीं है।'- यह कथन है मुख्य रेल संरक्षा आयुक्त (सीसीआरएस) शैलेश कुमार पाठक का। उन्होंने 23 जनवरी 19 को डीसी लाइन का निरीक्षण करने के बाद सुरक्षा के सवाल पर टिप्पणी की थी। जाहिर है रेलवे की सुरक्षा से जुड़े इतने ऊंचे ओहदे पर बैठा कोई अधिकारी हल्की बात तो करेगा नहीं। सीआरएस के निरीक्षण के ठीक 13 दिन बाद मंगलवार को डीसी लाइन पर मालगाड़ी दौडऩे लगी। और 15 फरवरी से मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों के परिचालन की तैयारी है। अब सवाल उठता है कि भूमिगत आग से जब यात्रियों की सुरक्षा को खतरा था नहीं तो फिर 15 जून 2017 को डीसी लाइन क्यों बंद की गई? इसका जवाब यह है-खतरा है और नहीं भी है। डीसी लाइन को बंद करने का जो निर्णय लिया गया था उसके पीछे सुरक्षा से ज्यादा ट्रैक के नीचे पड़े कोयले के भंडार की चिंता थी। और अब जो निर्णय लिए जा रहे हैं उसके पीछे वोट की चिंता है।
सुरक्षा पर भारी पड़ी वोट की चिंता : डीसी लाइन धनबाद और रांची को जोड़ती है। धनबाद और चंद्रपुरा के बीच 34 किमी लंबी रेल लाइन पर 13 स्टेशन और हाल्ट-कुसुंडा, बसेरिया, बांसजोड़ा, सिजुआ, अंगारपथरा, कतरासगढ़, तेतुलिया, सोनारडीह, टुंडू हाल्ट, बुदौड़ा हाल्ट, फुलारीटांड, जमुनिया, देवनगर पड़ते हैं। इन स्टेशनों के बीच प्रतिदिन बीस हजार और सलाना 1.05 करोड़ लोग रेल से सफर करते थे। ये सब रेल लाइन की बंदी से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए। अप्रत्यक्ष की बात करें तो बिहार के दरभंगा से लेकर तेलंगाना के हैदराबाद और सिंकदराबाद तक के रेल यात्री प्रभावित हुए। उदाहरण के तौर पर हैदराबाद-दरभंगा एक्सप्रेस का परिचालन धनबाद होकर रद कर दिया गया। इस रेल लाइन पर 26 जोड़ी ट्रेनें चलती थी। 13 मेल एक्सप्रेस और 6 पैसेंजर ट्रेनें बंद हो गई। 7 जोड़ी ट्रेनों को डायवर्ट करना पड़ा। इससे लाखों यात्री प्रभावित हुए। सरकार के खिलाफ सड़कों पर आक्रोश भड़का तो भाजपा के सांसदों के होश फाख्ता हो गए। रेल लाइन की बंदी के बाद मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने के लिए धनबाद में केंद्रीय कोयला मंत्री पीयूष गोयल का दौरा था। लेकिन, लोगों के आक्रोश के कारण उन्हें दौरा रद करना पड़ा। इसे जनविरोधी फैसला बताते हुए विपक्ष ने मुद्दे को लपका तो भाजपा के नीति-नियंता भी सक्रिय हुए। मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ ही राज्य के भाजपा के तमाम सांसदों ने दिल्ली में रेल मंत्री, श्रम मंत्री और कोयला मंत्री से मिलकर रेल लाइन चालू करने की वकालत की। डैमेज कंट्रोल के लिए लोकसभा चुनाव से पहले डीसी लाइन चालू करने पर सहमति बनी। परिणाम सामने है। डीसी लाइन का सबसे ज्यादा हिस्सा गिरिडीह के सांसद रवींद्र पांडेय के क्षेत्र में पड़ता है। वे कहते हैं-डीसी लाइन की बंदी भाजपा सरकार के खिलाफ एक बड़ी साजिश थी। यह बात पीएमओ और रेल मंत्रालय तक पहुंचाई गई। परिणाम सामने है।
रेलवे नहीं मानता खतरा : अघोषित रूप से रेल मंत्रालय में डीसी लाइन को लोकसभा चुनाव से पहले चालू करने की सहमति बनी तो सुरक्षा का आकलन करने के लिए सीसीआरएस शैलेश कुमार पाठक 23 जनवरी को धनबाद भेजे गए। उन्होंने पहले मोटर ट्राली पर सवार होकर ट्रैक का निरीक्षण किया। इसके बाद विंडो निरीक्षण यान को चलाकर सुरक्षा की पड़ताल की। अंत में उन्होंने ट्रैक पर 65 से 80 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से ट्रेन दौड़ाई। और कह दिया-सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं है। खान सुरक्षा महानिदेशालय (डीजीएमएस) की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा था-दूसरे की ब्लड टेस्ट रिपोर्ट को देख अपनी बीमारी नहीं तलाशनी चाहिए। खुद के ब्लड टेस्ट रिपोर्ट देख बीमारी पता करनी चाहिए। ध्यान रहे कि डीजीएमएस की रिपोर्ट पर ही डीसी लाइन बंद करने का निर्णय लिया गया था। पाठक का कहना था कि आग पटरी से दूर है। साथ ही सुरक्षा के मद्देनजर ट्रैक को सुरक्षित बनाने के लिए 6 एमएम या 10 एमएम चीप पाइलिंग और ट्रैक को हटाकर बालू पाइलिंग करने का निर्देश दिया।पीएमओ में बनी थी बंदी पर सैद्धांतिक सहमति : प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र की अध्यक्षता में 22 मई 2017 को डीजीएमएस की रिपोर्ट के आधार पर डीसी लाइन को भूमिगत आग से खतरे पर बैठक हुई थी। बैठक में पीएमओ ने रेल यात्रियों की सुरक्षा के मद्देनजर भूमिगत आग से खतरनाक धनबाद-चंद्रपुरा (डीसी) रेल लाइन को बंद करने के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक रूप से सहमति प्रकट की। लेकिन, मिश्र ने कहा था कि निर्णय लेने से पहले रेल लाइन बंद करने के फायदे और नुकसान का पूरा आकलन होना चाहिए। रेल यात्रियों को होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे होगी? इसकी ठोस कार्ययोजना से मिश्र संतुष्ट होना चाहते थे। उन्होंने संबंधित पक्षों से विस्तृत कार्ययोजना भी मांगी थी। लेकिन, बगैर किसी वैकल्पिक व्यवस्था के रेल लाइन बंद कर दी गई। बैठक में तत्कालीन कोयला सचिव सुशील कुमार, झारखंड की तत्कालीन मुख्य सचिव राजबाला वर्मा, डीजीएमएस तत्कालीन डीजी पीके सरकार, बीसीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह, धनबाद के उपायुक्त आंजनेयुलु दोड्डे उपस्थित थे।
तत्कालीन कोयला सचिव के दबाव में बंद हुई थी डीसी लाइन: एक लाइन में कहा जाय तो डीसी लाइन की बंदी से लाखों यात्रियों को जो परेशानी का सामना करना पड़ा है और रेलवे को राजस्व हानि हुई है तो उसके लिए सीधे तौर तत्कालीन केंद्रीय कोयला सचिव सुशील कुमार जिम्मेदार हैं। सुशील कुमार के कोयला सचिव बनने के बाद उनकी अध्यक्षता में 13 फरवरी 2017 को पहली और झरिया मास्टर प्लान हाई पावर कमेटी की 14 वीं बैठक हुई। बैठक में भूमिगत आग से खतरनाक डीसी रेल लाइन का मुद्दा उठा तो उन्होंने तुंरत बंद करने का निर्देश जारी कर दिया। उन्होंने बंद करने के लिए डीजीएमएस के डीजी प्रशांत कुमार से रिपोर्ट मांगी। डीजी की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय कमेटी बनी। 24 मार्च को उच्चस्तरीय कमेटी की बैठक हुई और डीसी लाइन को भूमिगत आग से असुरक्षित घोषित करते हुए बंद करने की अनुशंसा की गई। इस अनुशंसा पर 5 मई 17 को नई दिल्ली में एडिशनल कोल सेक्रेटरी सुरेश कुमार की अध्यक्षता में बैठक हुई और अंतिम निर्णय लेने के लिए मामले को प्रधानमंत्री कार्यालय के हवाले कर दिया गया। दरअसल, डीसी लाइन के नीचे कोयले का अकूत भंडार है। कोयला अधिकारियों की यह कोशिश थी कि डीसी लाइन बंद होते ही धनबाद-झरिया-पाथरडीह रेल लाइन की तरह लीज पर हासिल कर लेंगे और कोयले का खनन करेंगे। इस दिशा में कोयला सचिव ने झारखंड की तत्कालीन मुख्य सचिव राजबाला वर्मा के साथ मिलकर खूब कोशिश भी की। बीसीसीएल ने डीसी लाइन के नीचे खनन के लिए कई प्रोजेक्टों का खाका भी तैयार कर लिया। लेकिन, धनबाद रेल मंडल प्रबंधन की सूझबूझ के कारण डीसी लाइन खनन के लिए उजडऩे से बच गई।
खतरे के लिए बीसीसीएल जिम्मेदार : डीसी लाइन बंदी का निर्णय डीजीएमएस के डीजी की अध्यक्षता में बनी उच्चस्तरीय कमेटी की अनुशंसा के आधार पर लिया गया। लेकिन, इस जांच रिपोर्ट से रेलवे सहमत नहीं थी। 24 मार्च की डीजी की अध्यक्षता में हुई बैठक में रिपोर्ट तैयार की गई थी। इस बैठक से धनबाद रेल मंडल के तत्कालीन डीआरएम मनोज कृष्ण अखौरी ने अपने को अलग कर लिया था। विरोधस्वरूप वे बैठक में उपस्थित नहीं थे। उनका कहना था कि रेल लाइन को असुरक्षित करने के लिए बीसीसीएल जिम्मेदार है। नियमों की अनदेखी कर बीसीसीएल ने रेल लाइन के नीचे और निकट कोयला खनन किया है। बार-बार चेतावनी के बाद भी बीसीसीएल रेल लाइन के नजदीक खनन जारी रखे है।
... और बंदी के साथ शुरू हुआ रेल दो या जेल दो आंदोलन: 15 जून 2017 को डीसी लाइन बंदी के बाद जनाक्रोश भड़का तो पुलिस को लाठी और रबर की गोली चलानी पड़ी। लेकिन, रेल दो या जेल दो आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। पूर्व मंत्री ओपी लाल, पूर्व मंत्री जलेश्वर महतो और बियाडा के पूर्व चेयरमैन विजय झा के नेतृत्व में बड़ी संख्या में लोगों ने गिरफ्तारी दी। इन सबका दस्तावेजों के आधार पर दावा था कि भूमिगत आग से रेल लाइन को खतरा नहीं है। 20 नवंबर 2018 को नई दिल्ली में राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश से मुलाकात की। दस्तावेज सौंपे। बियाडा के पूर्व चेयरमैन विजय कुमार झा कहते हैं-डीसी लाइन की बंदी कतरास के लाखों लोगों के लिए एक सदमा था। हम लोगों ने रेलवे के अधिकारियों से बात की ती उनका कहना था कि रेल लाइन को खतरा नहीं है। सिंफर के अधिकारियों ने कहा कि तीन महीने के अंदर आग बुझा देंगे। डीसी लाइन को चालू करने के फैसले का स्वागत करते हुए झा कहते हैं-कोयले का रैकेट चलाने वालों की मंशा विफल हो गई है। रेल लाइन के नीचे से कोयले की निकासी के लिए डीसी लाइन बंद की गई थी।
सुरक्षा के सवाल पर विशेषज्ञों की राय
डीसी लाइन बंद करने का निर्णय ही गलत और अव्यवहारिक था। पीएमओ ने वैकल्पिक व्यवस्था कर निर्णय लेने का निर्देश दिया था। लेकिन, बगैर वैकल्पिक लाइन तैयार किए बंद कर दी गई। ऐसा प्रतीत होता है कि कोयला कंपनियों के प्रभाव में आकर डीजीएमएस ने रिपोर्ट दी। क्योंकि कोयला कंपनी बीसीसीएल रेल लाइन के नीचे खनन करना चाहती है। यह बात जगजाहिर है।
-गोपालजी, पूर्व आरएंडआर प्रभारी, झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार।
विज्ञान यह नहीं कहता है कि बीमारी है तो उसे मरने के लिए छोड़ दिया जाय। असाध्य बीमारी होने पर भी दवा की जाती है। बीमारी ठीक भी हो जाती है। भूमिगत आग से खतरा है तो बचाव भी किया जा सकता है। सिंफर शुरू से आग का दमन कर डीसी लाइन को सुरक्षित करने का पक्षधर रहा है। क्योंकि तकनीक काफी विकसित हो चुका है। भूमिगत आग बुझाई जा सकती है।
-पीके सिंह, निदेशक, केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान।