भविष्य में बना रहेगा केरल जैसे जल प्रलय का खतरा: डॉ. नायक
भारी बारिश से होने वाली तबाही से बचाव के लिए नई तकनीक विकसित करनी होगी। समय रहते अलर्ट जारी होने पर ही हम बाढ़ के खतरे से निपट सकते हैं।
धनबाद, जेएनएन। तकरीबन सौ वषरें के अध्ययन में यह पता चला कि मानसून की बारिश में बदलाव नहीं हुआ है। पर, इसके पैटर्न में जरूर बदलाव आया है। भारी बारिश की बारंबारता बढ़ी है और हल्की कम हुई है। इससे भविष्य में भी केरल जैसे जल प्रलय की संभावना बढ़ गयी है। यह कहना है नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एडवास्ड स्टडीज बेंगलुरू के निदेशक डॉ. शैलेष नायक का। वह गुरुवार को केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (सिंफर) में आयोजित काउंसिल फार साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के 73 वें स्थापना दिवस समारोह में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि भारी बारिश से होनेवाली तबाही से बचाव के लिए नयी तकनीक विकसित करनी होगी ताकि समय रहते अलर्ट जारी किया जा सके। भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान के सचिव रहे डॉ. नायक ने कहा कि समुद्र में फैल रहे प्रदूषण से उसका तापमान बढ़ रहा है जिससे केरल और ईस्ट कोस्ट के तटीय इलाकों को ज्यादा खतरा है। भविष्य की चुनौतियों के मद्देनजर तटीय इलाकों में आधारभूत संरचना में विस्तार करनी होगी। कार्यक्रम के शोध क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देनेवाले एवं सिंफर में 25 वर्ष पूरा करने वाले विज्ञानियों को सम्मानित किया गया। सिंफर निदेशक डॉ. राजेंद्र सिंह सहित अन्य उपस्थित थे।