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Coronaviris Impact: 62 साल में पहली बार कोलफील्ड एक्सप्रेस में बाबा विश्वकर्मा की पूजा की परंपरा टूटने की नाैबत, दैनिक यात्री मायूस

ट्रेन में विश्वकर्मा भगवान की प्रतिमा स्थापित कर विधि-विधान से पूजा करने की इस परंपरा का निर्वहन कोलफील्ड एक्सप्रेस में प्रतिदिन सफर करने वाले डेली पैसेंजर (दैनिक यात्री) करते हैं।

By MritunjayEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 03:33 PM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 03:33 PM (IST)
Coronaviris Impact: 62 साल में पहली बार कोलफील्ड एक्सप्रेस में बाबा विश्वकर्मा की पूजा की परंपरा टूटने की नाैबत, दैनिक यात्री मायूस
Coronaviris Impact: 62 साल में पहली बार कोलफील्ड एक्सप्रेस में बाबा विश्वकर्मा की पूजा की परंपरा टूटने की नाैबत, दैनिक यात्री मायूस

धनबाद, जेएनएन। एक ऐसी ट्रेन जिसमें छह दशकों से ज्यादा समय से भगवान विश्वकर्मा का दरबार सजता है। ट्रेन खुलने से पहले  ढोल नगाड़े बजते हैं। फिर दुल्हन की तरह सजी कोच में भगवान विश्वकर्मा विराजते हैं।

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जी हां, एक अक्टूबर 1958 को पटरी पर उतरी कोलफील्ड एक्सप्रेस में 62 वर्षों से भगवान विश्वकर्मा की पूजा होती आ रही है। पर, इस बार परिस्थिति बदल गयी है। ट्रेन नहीं चलने के कारण 62 साल में पहली बार परंपरा टूटने की संभावना है। अगर 17 सिंतबर, 2020 तक ट्रेनों का परिचालन सामान्य नहीं हुआ तो इस साल कोलफील्ड एक्सप्रेस में बाबा विश्वकर्मा का दरबार नहीं सजेगा।

क्यों करते हैं ट्रेन में पूजा

ट्रेन में विश्वकर्मा भगवान की प्रतिमा स्थापित कर विधि-विधान से पूजा करने की इस परंपरा का निर्वहन कोलफील्ड एक्सप्रेस में प्रतिदिन सफर करने वाले डेली पैसेंजर (दैनिक यात्री) करते हैं। इनमें लगभग सभी छोटे दुकानदार और कारोबारी होते हैं जो पश्चिम बंगाल के विभिन्न शहरों से सामान लाकर यहां जीविकोपार्जन करते हैं। ट्रेन ही उनकी आवाजाही का मुख्य साधन है और यही वजह है कि सभी इसे रोजी-रोटी का जरिया मानते हैं। दैनिक यात्री ट्रेन में बाबा विश्वकर्मा की पूजा कर सुरक्षित यात्रा की कामना करते हैं।

कोयला क्षेत्र से गुजरती है ट्रेन

झारखंड और पश्चिम बंगाल के झरिया व रानीगंज कोलफील्ड  क्षेत्र से गुजरने की वजह से इस ट्रेन को कोलफील्ड एक्सप्रेस का नाम मिला है। पश्चिम बंगाल के हावड़ा और धनबाद को जोड़ने वाली इंटरसिटी ट्रेन है। रेल परिचालन ठप रहने के कारण धनबाद से कोलकात के बीच के दैनिक यात्री मायूस हैं। उनकी रोजी-रोटी बंद है। वे चाहते हैं कि 17 सितंबर से पहले रेल गाड़ियों का परिचालन शुरू हो।


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