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Shravani Mela 2020: कांवड़ियों के जल अर्पण के बगैर बीतेगा भोलेनाथ का सावन, श्रद्धालु भी रहेंगे सूखे

Shravani Mela 2020 बैद्यनाथ मंदिर के पंडा- पुरोहितों के बही-खातों में दर्ज जानकारियों के मुताबिक देवघर में 200 साल पूर्व सावन माह में कांवर यात्रा की परंपरा की शुरुआत हुई थी।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 28 Jun 2020 06:19 PM (IST)Updated: Sun, 28 Jun 2020 10:16 PM (IST)
Shravani Mela  2020: कांवड़ियों के जल अर्पण के बगैर बीतेगा भोलेनाथ का सावन, श्रद्धालु भी रहेंगे सूखे
Shravani Mela 2020: कांवड़ियों के जल अर्पण के बगैर बीतेगा भोलेनाथ का सावन, श्रद्धालु भी रहेंगे सूखे

देवघर [ राजीव ]। कोरोना का संकट ऐसा है कि भगवान भोलेनाथ भी इससे प्रभावित हैं। सावन भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना है। इसमें जलार्पण का भी विशेष महत्व है। ऐसे में भोलेनाथ के साथ-साथ श्रद्धालुओं का भी सावन सूखा ही बीतेगा। देवघर के प्रसिद्ध सावन मेला और कांवर यात्रा की संभावना अब लगभग क्षीण है। कुछ लोगों ने कांवर यात्रा की अनुमति के लिए झारखंड हईकोर्ट में याचिका दाखिल कर रही है, हाईकोर्ट ने सरकार से बारे में पूछा है, लेकिन अगर हाई कोर्ट की अनुमति मिल भी जाती है तो मेला और कांवर यात्रा को शुरू करा पाना आसान नहीं होगा। अबतक यहां इसकी कोई तैयारी नहीं हो सकी है।

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200 साल पूर्व सावन माह में कांवर यात्रा की शुरू हुई थी परंपरा

देवघर के प्रसिद्ध सावन मेला और कांवर यात्रा पर कोरोना के कारण ग्रहण लगा हुआ है। बैद्यनाथ मंदिर के पंडा- पुरोहितों के बही-खातों में दर्ज जानकारियों के मुताबिक देवघर में 200 साल पूर्व सावन माह में कांवर यात्रा की परंपरा की शुरुआत हुई थी। इस लंबे कालखंड में अब तक यात्रा पर कोई विराम नहीं लगा था। लेकिन इस बार तैयारियों पर विराम लगा हुआ है। बैद्यनाथ मंदिर के पंडों के पास उपलब्ध रिकार्ड को आधार माना जाय तो यहां लगभग 200 साल पहले कांवर यात्रा शुरू हुई है। हालांकि इस पर और भी दावे हैं। पंडा धर्मरक्षिणी महासभा के पूर्व महामंत्री दुर्लभ मिश्र कहते हैं, कांवर यात्रा और भी पुरानी है। दस्तावेजों में 200 साल का उल्लेख है। उन्होंने बताया कि बारहवीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया था। उसी दौर में मिथिलांचल के पंडा-पुरोहित पलायन कर गए थे। 1560 में पहली बार देवघर में सरदार पंडा की व्यवस्था शुरू हुई थी। उसी वक्त कुछ लोगों ने कांवर यात्रा शुरू की थी। उन्होंने बताया कि सावन और भादो के अलावा कार्तिक व गंगा दशहरा में भी कांवर यात्रा की परंपरा रही है जो आज तक कायम है।

बंगाल और पूरे बिहार से आने लगे शिव भक्त

बैद्यनाथ धाम के प्राचीन इतिहास पर लंबे समय से अध्ययन कर रहे दुर्लभ मिश्रा ने बताया कि दिल्ली-हावड़ा के बीच रेल सेवा शुरू हुई तो यहां पर कोलकाता के व्यापारियों का आगमन शुरू हो गया। इसके बाद अविभाजित बिहार और बंगाल के जमींदारों का आगमन बढ़ा था और उनके साथ आम शिवभक्त भी आने लगे थे। पहले कम भीड़ होती थी। इस कारण मंदिर परिसर में रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन एवं सवा लाख बेल पत्र चढ़ाने जैसे धार्मिक कार्य होते थे। इसके बाद की परंपरा थी लेकिन भीड़ बढऩे के लिए पूजा पद्धति में भी बदलाव होता चला गया।

1980 से हुआ वृहत रूप

दुर्लभ मिश्रा के अनुसार पहले यहां सिर्फ रविवार और सोमवार को ही श्रावणी मेला लगता था। सोमवार को दोपहर दो बजे तक श्रद्धालु जलाभिषेक कर लेते थे। 1980 से श्रावणी मेला का स्वरुप वृहत्तर होता गया। एक माह के श्रावणी मेला में देश-विदेश से लोग आ रहे हैं।

आज हाई कोर्ट पर सबकी निगाहें

श्रावणी महोत्सव के लिए देवघर और बासुकीनाथ मंदिर के पट श्रद्धालुओं के लिए खोलने के अनुरोध पर सोमवार को झारखंड उच्च न्यायालय में सुनवाई होगी। इस मामले में गोड्डा के भाजपा सांसद डॉक्टर निशिकांत दुबे ने जनहित याचिका दायर की है। झारखंड सरकार ने 31 जुलाई तक सभी धार्मिक स्थलों को बंद रखने का आदेश दिया है। पांच जुलाई से श्रावण मास शुरू हो जाएगा। श्रावणी महोत्सव के मसले पर प्रशासनिक एवं पुलिस हलके में तनिक भी सुगबुगाहट नहीं है। अब सबकी निगाहें कोर्ट पर टिकी हैं।


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