Truth of Conversion: हसीन जिंदगी के झूठे सपने दिखा बदलवा दिया धर्म, ईसाई से सनातन में वापस आने वालों ने बयां किया सच
दिलीप ईसाई बने। शादी हो गई। स्वजनों के साथ गिरजाघर जाने लगे मगर बदलाव नहीं आया। अंतस छटपटा उठा क्यों पुरखों की परंपरा और रीति रिवाज छोड़े। तब बड़ा फैसला लिया। 13 जुलाई को गंगा नदी के तट पर सनातन धर्म में सपरिवार वापसी की।
डा. प्रणेश, साहिबगंज। डेढ़ दशक पहले साहिबगंज के गुटीबेड़ा गांव के प्रधान दिलीप मालतो को पहाडिय़ा लड़की किरण से मोहब्बत हुई। उनके चाचा सूरजा मालतो लड़की के घर रिश्ता लेकर गए। शर्त रखी गई कि हम ईसाई बन गए, अब लड़का भी ईसाई बने तो शादी होगी। उसके जीवन में बड़ा बदलाव आएगा। दिलीप ईसाई बने। शादी हो गई। स्वजनों के साथ गिरजाघर जाने लगे, मगर बदलाव नहीं आया। अंतस छटपटा उठा, क्यों पुरखों की परंपरा और रीति रिवाज छोड़े। तब बड़ा फैसला लिया। 13 जुलाई को गंगा नदी के तट पर सनातन धर्म में सपरिवार वापसी की। इस अनुष्ठान में 14 पहाडिय़ा आदिवासी घर वापस लौटे। घर वापसी करने वाले लोगों की ऐसी ही पीड़ा है। उन्होंने बताया कि हालात बदलने का सब्जबाग दिखाया। फिर धर्मगुरुओं ने मतांतरण कराया। बहुत वादे किए गए, सभी झूठे निकले। हमें हेय दृष्टि से देखा जाता था। तब सनातन धर्म में लौट आए। ये हमारी जड़ों में है, हमारे पूर्वजों की परंपरा का वाहक।
प्रार्थना नहीं, इलाज से ठीक होती बीमारी
करीब 14 साल पहले साहिबगंज के बड़ा गुटीबेड़ा गांव में मलेरिया फैला। गांव के पूसा पहाडिय़ा की पत्नी व चार बेटियों की जान गई। तभी ईसाई धर्म प्रचारक गांव आए। कहा- गिरजाघर में प्रार्थना करो, सब ठीक होगा। वह गिरिजाघर जाने लगा। ईसाई धर्म अपना लिया, मगर कुछ नहीं हुआ, खुद भी बीमार हो गया। डाक्टर के पास जाकर इलाज कराया। कुछ लोगों ने समझाया कि प्रार्थना नहीं, इलाज से बीमारी ठीक होती है। जीवन जैसा पहले था, वैसा ही चल रहा था। दो साल पहले सनातन धर्म में वापस आया। संतोष है कि हमने पूर्वजों की परंपरा से हटकर जो गलती की उसे सुधार लिया।
हमने नहीं किया मतांतरण
जोकमारी गांव के सूरजा मालतो की पत्नी जबरी पहाडिऩ ने बताया कि कुछ लोग टेलीविजन लेकर गांव में आते थे। ईसाई धर्म से जुड़ी बातें दिखाते थे। मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा समेत बहुत कुछ देने का सब्जबाग दिखा मतांतरण को कहते थे। जो तैयार होता, उसे तालाब में डुबकी लगवा नए कपड़े पहना गिरजाघर में प्रार्थना कराते थे, मगर सूरजा व हमने अपना धर्म नहीं छोड़ा।
डेढ़़-दो दशक पहले खूब हुआ खेल
धर्म वापसी करने वालों का कहना है कि डेढ़-दो दशक पूर्व मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, आवास देने के नाम पर संताल परगना मतांतरण का खेल खूब हुआ। पहाडिय़ा गांवों में जगह-जगह गिरजाघर बने। 80 फीसद तक आदिवासी ईसाई बन गए। फिर धर्म प्रचारकों ने आना छोड़ दिया। जब लोग बीमार पड़ते तो कोई पूछने भी नहीं आता था। ङ्क्षहदूवादी संगठन सक्रिय हुए, तब घर वापसी अभियान शुरू हुआ। गुट्टीबेरा-जोकमारी में 35 परिवार में 20 ईसाई हो गए थे, सब वापस आ गए।
लाकडाउन के दौरान पहाडिय़ा गांवों की स्थिति देखी। ग्रामीणों को खाद्य सामग्री दी। बताया कि बीमारी इलाज से ठीक होती है, प्रार्थना से नहीं। तब अनेक लोग घर वापस आए।
-बजरंगी प्रसाद यादव, राष्ट्रीय मंत्री, किसान मोर्चा
संताल परगना की आदिम पहाडिय़ा जनजाति को मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर बरगला मतांतरण कराया गया। 80 फीसद आदिम जनजाति का मतांतरण हुआ है। सच्चाई सामने आने पर लोग घर वापसी कर रहे हैं। मतांतरण करने वालों को आदिवासियों की सुविधा नहीं मिलनी चाहिए।
-सुरेंद्र नाथ तिवारी, प्रधान केंद्रीय सचिव, धर्म वापसी घर वापसी