रेलवे की हेड ऑन जेनरशन तकनीक... अब न ध्वनि प्रदूषण न हवा Dhanbad News
हेड ऑन जेनरेशन तकनीक के तहत इंजन को मिलने वाली बिजली को ट्रेन के हर डिब्बे तक इंजन के जरिए ही पहुंचाया जाता है। इससे यात्री कोच के पंखे लाइट वगैरह जलाने के लिए बिजली दी जाती है।
धनबाद, जेएनएन। ट्रेनों में लगे पावर कार की कानफाड़ू आवाज से जल्द ही राहत मिल जाएगी। इससे न सिर्फ ध्वनि प्रदूषण कम होगा बल्कि पावर कार में इस्तेमाल होनेवाले डीजल का उपयोग कम होने से हवा भी कम प्रदूषित होगी। रेलवे ने इसके लिए हेड ऑन जेनरेशन तकनीक अपनाया है। पूर्व रेलवे की आधा दर्जन प्रमुख ट्रेनों में इसकी शुरुआत की गई है। इनमें धनबाद से हावड़ा जानेवाली कोलफिल्ड एक्सप्रेस भी शामिल है।
क्या है हेड ऑन जेनरशन तकनीक : ट्रेनों में लगने वाले इलेक्ट्रिक इंजन को ओवरहेड तार से बिजली मिलती है। इसी बिजली से इंजन ट्रेनों को खींचता है। हेड ऑन जेनरेशन तकनीक के तहत इंजन को मिलने वाली बिजली को ट्रेन के हर डिब्बे तक इंजन के जरिए ही पहुंचाया जा सकता है। इससे यात्री कोच के पंखे, लाइट वगैरह जलाने के लिए इंजन से ही बिजली मिल जाएगी। यहां तक कि एसी कोच की ठंडक के लिए भी इंजन से ही बिजली मिलेगी। ट्रेनों के आगे और पीछे लगे पावर कार की जरुरत खत्म हो जाएगी।
- खास बातें
- हर घंटे 60 लीटर तक डीजल के इस्तेमाल पर लग जाएगी रोक
- डीजल का उपयोग बंद होने से हवा में नहीं घुलेगा कार्बन डाई ऑक्साइड
इन ट्रेनों में हेड ऑन जेनरेशन तकनीकः धनबाद-हावड़ा कोलफिल्ड एक्सप्रेस, आसनसोल-हावड़ा अग्निवीणा एक्सप्रेस, हावड़ा-बोलपुर शांति निकेतन एक्सप्रेस, हावड़ा-रामपुरहाट विश्वभारती फास्ट पैसेंजर, हावड़ा-मालदा टाउन इंटरसिटी और भागलपुर-आनंदविहार विक्रमशीला एक्सप्रेस।