JMM foundation day 2020: काैन है यह लड़का, जवाब मिला शिबू सोरेन का बेटा
झामुमो के 47 साल के सफर में पूरी तरह चेहरा बदल गया है। अब शिबू की जगह उनके पुत्र हेमंत चेहरा है। वे ही हर निर्णय लेते हैं।
धनबाद [ मृत्युंजय पाठक ]। झारखंड ही नहीं देश के सबसे बड़े आदिवासी नेता शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा धनबाद के टुंडी से शुरू हुई थी। हालांकि उन्हें चुनावी सफलता नहीं मिली। साल 1977 में टुंडी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और हार के बाद आदिवासी बहुल संताल के दुमका की राह पकड़ी। यह जगजाहिर है। लेकिन, बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि शिबू के पुत्र झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भी राजनीतिक यात्रा धनबाद से ही शुरू हुई। उन्होंने झारखंड बनने से पहले साल 2000 में निरसा विधानसभा उपचुनाव के दौरान नामांकन दाखिल किया था। तब झामुमो एनडीए फोल्डर में था। भाजपा के दबाव में हेमंत ने नामांकन पत्र वापस ले लिया।
बीस साल पहले की बात है। झारखंड अलग राज्य नहीं बना था। 14 अप्रैल, 2000 को निरसा के विधायक मार्क्सवादी समन्वय समिति (MCC) के नेता गुरुदास चटर्जी की गोली मार हत्या कर दी गई। इसके बाद मई-2000 में निरसा में उपचुनाव की घोषणा हुई। उपचुनाव में नामांकन दाखिल करने के लिए एसडीएम कोर्ट परिसर से गर्दन में माला से लदफद एक नाैजवान गुजरा। उसके पीछे-पीछे 25-30 नाैजवान चल रहे थे। डुगडुगी बज रही थी। इसकी शोर ने कोर्ट में उपस्थित वकील और मुवक्किलों का ध्यान खींचा। सबने पूछा काैन है, यह लड़का। जवाब मिला-झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन। उपचुनाव में भाजपा ने अशोक मंडल को प्रत्याशी बनाया था। अलग झारखंड राज्य निर्माण के लिए भाजपा गठबंधन में झामुमो शामिल था। भाजपा के दबाव में हेमंत को नामांकन वापस लेना पड़ा।
पहले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा
अपने पिता शिबू सोरेन की तरह हेमंत सोरेन को भी धनबाद में चुनावी राजनीति में सफलता नहीं मिली। इसके बाद 2005 में झामुमो के कद्दावर नेता स्टीफन मरांडी का टिकट कटवा कर हेमंत दुमका विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े। इससे नाराज होकर स्टीफन ने निर्दलीय ही हेमंत को चुनौती देने का निर्णय लिया। स्टीफन के आगे दुमका की जनता ने झामुमो प्रत्याशी हेमंत सोरेन को खारिज कर दिया। हालांकि हेमंत ने हार नहीं मानी। 2009 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने स्टीफन का पराजित कर हाल का बदला ले लिया। पहली ही बार विधायक बनने के बाद अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन की सरकार में उप मुख्यमंत्री बने। अर्जुन मुंडा से विवाद के बाद हेमंत ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। 2013 में झारखंड के मुख्यमंत्री बने।
अलग झारखंड आंदोलन से सत्ता का सफर
झारखंड मुक्ति मोर्चा 4 फरवरी, 2020 को अपना स्थापना दिवस समारोह मना रहा है। 47 साल पहले धनबाद के ऐतिहासिक गोल्फ ग्राउंड (रणधीर वर्मा स्टेडियम) में 4 फरवरी1973 को अपने-अपने क्षेत्र के उभरते सितारे शिबू सोरेन, एके राय और विनोद बिहारी महतो ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना की। तब शिबू सोरेन ने सपनों में भी नहीं सोचा था कि वे जिस पार्टी का नेतृत्व करने जा रहे हैं वह एक दिन झारखंड की सत्ता की स्वाभाविक पार्टी बन जाएगी। क्योंकि सत्ता की राजनीति करना उद्देश्य था भी नहीं। झामुमो की स्थापना महाजनी प्रथा की मुखालफत और अलग झारखंड राज्य निर्माण जैसे लक्ष्य को सामने रख की गई थी। झारखंड विधानसभा चुनाव- 2019 में झामुमो गठबंधन ने पूर्ण बहुमत हासिल कर सूबे की राजनीति में दबदमा कायम करने का काम किया है।
अब हेमंत बने झामुमो का चेहरा
हालांकि शिबू सोरेन अब भी झामुमो के अध्यक्ष हैं। लेकिन, पार्टी नेतृत्व पुत्र हेमंत सोरेन को सौंप दिया है। हेमंत झारखंड के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने है। झामुमो की तरफ से हर फैसले हेमंत सोरेन ही लेते हैं। झामुमो के 47 साल के सफर में चेहरा बदल गया है। अब शिबू की जगह उनके पुत्र हेमंत झामुमो का चेहरा हैं। झामुमो के 48वें स्थापना दिवस पर पिता की छत्रछाया में हेमंत पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं। उनके चारों तरफ अब वो लोग दिख रहे हैं जो शिबू सोरेन के साथ नहीं दिखते थे।