Weekly News Roundup Dhanbad: सरकार बदलते ही साहब भी बदलने को तैयार
धनबाद का प्रखंड कार्यालय। हीरापुर में लोग चाय की चुस्की लेते हुए अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि 1956 में बना यह कार्यालय अब किसी हॉरर फिल्म की शूटिंग के लिए बेहतरीन जगह है।
धनबाद [ चरणजीत सिंह ]। झारखंड के तीन जिले अहम है, रांची, धनबाद और जमशेदपुर। इतने अहम कि तीनों जिलों में एसएसपी का पद सृजित है। अविभाजित बिहार के जमाने से बेहद सीनियर आईएएस को यहां जिलाधिकारी बनाया जाता रहा है। अमित कुमार छोटे जिला चतरा में डीसी थे। रघुवर दास सीएम बने थे तो अपने गृह जिला में ले गए। तीन साल डट कर रहे। ट्रांसफर हुआ भी तो धनबाद जहां आने के लिए सीनियर आईएएस तरसते हैं। ब्यूरोकेसी में कानाफुसी थी कि रघुवर दास दोबारा सीएम बने तो ये सीएम के सचिव हो जाएंगे। हो गया उलटा। वे अब कहां जाएंगे, किसी को अंदाजा नहीं। साहब भी मोबाइल गेम खेलने में व्यस्त हो गए हैं। पिछले दिनों कुछ लोग उनसे मिलने पहुंचे। बाहर आए तो बात करते सुने गए कि साहब भी जानते हैं कि उन्हें जाना है, इसलिए टाइमपास कर रहे हैं। अब सबमें नए साहब का नाम सुनने की बेचैनी है।
जुलूस को 'ना' का टेंशन
वासेपुर समेत और इलाके से एनआरसी और सीएए के खिलाफ जुलूस निकालने के लिए वहां के नागरिक चार बार साहब की चौखट पर गए थे। साहब का बार बार एक ही जवाब, अभी नहीं बाद में। साहब को क्या मालूम था कि बार-बार ना बोलने के बाद भी लोग तख्ती-बैनर लेकर नारे लगाते हुए सड़क पर निकल जाएंगे। साहब मानते थे कि हम जो कहेंगे वही पत्थर की लकीर होगा। किसकी इतनी मजाल कि बिना आदेश के जुलूस निकाल दे। जुलूस निकला और बात बढ़ गई। सीओ ने केस दर्ज करा दिया। राजद्रोह की धारा लगाई गई। फिर सीएम के हस्तक्षेप पर राजद्रोह की धारा विलोपित करने के लिए न्यायालय में आवेदन भी दिया गया। मामला सरकार तक जा चुका है तो अब महेश्वरम साहब तनाव में हैं। चिंता भी कम नहीं। चौंकिए मत। राज महेश्वरम साहब दक्षिण भारतीय नहीं हैं बल्कि विक्षुब्ध रूप से बिहार के हैं।
यह हॉरर फिल्म की जगह
धनबाद का प्रखंड सह अंचल कार्यालय। हीरापुर में लोग चाय की चुस्की लेते हुए अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि 1956 में बना प्रखंड सह अंचल कार्यालय का परिसर अब किसी हॉरर फिल्म की शूटिंग के लिए बेहतरीन जगह बन चुका है। हर ओर झाडिय़ां हैं। रात में अंधकार होते ही प्रखंड कार्यालय का परिसर मयखाना हो जाता है। पीने के बाद उन्हें डर नहीं लगता। खंडहरनुमा भवन की स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि आम लोगों की बात छोडि़ए, कर्मचारी भी छत के नीचे काम करने में हिचकते रहते हैं। रह रह कर भवन से बाहर निकल जाते हैं। 2019 में ही पुटकी में नया प्रखंड कार्यालय बन चुका है। साहब से लेकर कर्मचारी तक खुश हैं। मगर जाएंगे कब तक? यही चिंता उन्हें खाए जा रही है। डर है कि उससे पहले सर पर कहीं छत गिर गई तो। वहां की सरकारी कॉलोनी भी रहने लायक नहीं।
टका मिला तो बल्ले बल्ले
इसी साल पंचायत चुनाव होने हैं। चौदहवें वित्त आयोग में विकास की राशि सीधे मुखिया के पास जा रही है, किसी और को नहीं। भला हो धनबाद की जिला परिषद का जो अमीर है। पड़ोसी बोकारो के जिला पार्षद की हालत तो गुलगुलिया की तरह हो चुकी है, अपने इलाके में विकास के लिए फंड ही नहीं। एक सप्ताह पहले धनबाद के सभी 28 जिला पार्षदों को अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्य करने के लिए 30-30 लाख मिल चुके हैं। उनकी बल्ले बल्ले है। यकीन दिलाया गया है कि तीन महीने के भीतर 20 से 25 लाख रुपए और मिलेंगे। अब जिला पार्षदों को भरोसा है कि चुनावी वर्ष में अपने इलाके में 50 लाख की योजनाओं का काम करा दिए तो बेड़ा पार हो जाएगा। जिला परिषद के भीतर भी हलचल है। दनादन प्राक्कलन तैयार हो रहा है। काम होगा तभी तो टेबुल के नीचे से कुछ आएगा भी।