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आजादी के 75 साल: फिरंगियों ने फूंक दिया घर तो बालू दा ने सड़कों पर गुजारे दो साल, सिर पर खाई गोली

देश की मिट्टी और अपनी सरजमीं के लिए मर मिटने वाले आजादी के हजारों दीवाने थे जिन्होंने सबकुछ न्योछावर कर दिया। ऐसे ही एक वतनपरस्त फ्रीडम फाइटर थे बालेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ बालू दा। एक ऐसा नाम जिन पर अंग्रेजों ने शूट एट साइट का ऑर्डर दे रखा था।

By Deepak Kumar PandeyEdited By: Published: Sat, 06 Aug 2022 08:16 AM (IST)Updated: Sat, 06 Aug 2022 08:16 AM (IST)
आजादी के 75 साल: फिरंगियों ने फूंक दिया घर तो बालू दा ने सड़कों पर गुजारे दो साल, सिर पर खाई गोली
बालू दा (बाएं) और गोमो स्टेशन पर नेताजी एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाते उनके पुत्र डाॅ. कृष्ण मुरारी सिंह।

धनबाद [तापस बनर्जी]: देश की मिट्टी और अपनी सरजमीं के लिए मर मिटने वाले आजादी के हजारों दीवाने थे, जिन्होंने सबकुछ न्योछावर कर दिया। ऐसे ही एक वतनपरस्त फ्रीडम फाइटर थे बालेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ बालू दा। एक ऐसा नाम, जिन पर अंग्रेजों ने शूट एट साइट का ऑर्डर दे रखा था।

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वर्ष 1942-43 में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े एक संगठन के वह एरिया कमांडर थे। आजादी के दीवानों का संगठन भागलपुर जिले में सक्रिय था। बालू दा खगड़िया के सन्हौली गांव के रहने वाले थे। अब वह इस दुनिया में नहीं हैं, पर उनके साथ अंग्रेजों से लोहा लेनेवाली उनकी धर्मपत्‍नी रुक्मिणी देवी आज भी जीवित हैं। इन दिनों बालू दा का परिवार धनबाद के धैया स्थित श्रीराम वाटिका में रहता है। उनके बेटे प्रो. कृष्ण मुरारी सिंह बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में प्रोफेसर हैं। बलिदानी बालेश्वर प्रसाद सिंह का जन्म वर्ष 1916 में हुआ था। साल 1998 में उनकी मृत्यु हुई। उनकी पत्‍नी रुक्मिणी देवी पति के साथ स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनी। उनके बहनोई स्वर्गीय बंगाली सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए घोड़ा और हाथी दिया था।

बालू दा की कहानी, रुक्मिणी देवी की जुबानी

बालू दा की 95 वर्षीय पत्नी रुक्मिणी देवी बताती हैं कि उनके पति के सिर पर अंग्रेजों ने इनाम रखा था और जहां देखें वहीं पर गोली मारने का आदेश जारी किया था। वह कभी-कभी छुप-छुपा कर स्वजनों से मिलने घर आते थे। एक बार इसकी सूचना अंग्रेज अधिकारी को लग गई। जब अंग्रेज अधिकारी घर पहुंचे तो बालू दा ने स्वयं अंग्रेज अधिकारी को छकाया और उसे बताया कि बालेश्वर अभी यहीं था और उस दिशा में भागा है। अंग्रेज बताई गई दिशा में बढ़े तो बालू दा चुपके से भाग निकले। थोड़ी देर बाद अंग्रेज अधिकारी उनके घर पहुंचा और गुस्से में डेगची के प्रसाद को ठोकर मारकर गिरा दिया। इससे रुक्मिणी को बेहद गुस्सा आया और अंग्रेज अधिकारी की गिरेबां पकड़ ली। उस वक्त तक जूझती रहीं, जब तक अंग्रेज को प्रसाद को बूट मारकर गिराने के लिए माफी मांगने पर मजबूर न कर दिया। इससे उस अंग्रेज अफसर की वर्दी फट गई। उस वक्त अंग्रेज अफसर चला गया और कुछ देर बाद लौटा। लौटते ही उसने पूरे घर को बारूद से जला दिया। घर छिन जाने से दो वर्षों तक पूरा परिवार खुले आसमान के नीचे रहा।

बालू दा ने कई बार लूटा था अंग्रेजों का खजाना

बालू दा के बेटे डाॅक्‍टर कृष्ण मुरारी सिंह बताते हैं कि उनके पिता ने बपचन में फिरंगियों से जुड़ी कई दास्तां सुनाई थी। बताते थे कि उनकी स्वतंत्रता आंदोलन की टोली के लोग भागलपुर क्षेत्र में अंग्रेजों के किसी भी कार्यक्रम को सफल नहीं होने देते थे। कई बार उन्होंने अंग्रेजों का सरकारी खजाना भी लूटा था। खजाना लूटने का उद्देश्य अपने साथियों की मदद और स्वतंत्रता आंदोलन को धार देना था। इससे नाराज होकर ही अंग्रेजों ने उन पर शूट एट साइट का वारंट जारी किया था।

सिर में लगी थी गोली, कांप उठा था घरवालों का कलेजा

साल 1942 के दौरान एक बार पकड़े जाने पर अंग्रेज अधिकारी ने उनके सिर पर बंदूक तान दी थी। बालू दा ने फिर भी हार नहीं मानी और फिरंगियों से भिड़ गये। उसी दौरान अचानक गोली चल गई। गोली उनके सिर के ऊपरी भाग में लग कर पार हो गई थी। इसके बावजूद वह अंग्रेजों को मात देकर फरार हो गए थे।

जब खिड़की का ग्रिल तोड़कर हुए थे फरार

बालू दा को पहलवानी का शौक था। उनके पुत्र बताते हैं कि एक बार 1936-37 के दौरान अंग्रेजों को सूचना मिलने पर उन्होंने बालू दा को छपरा काॅलेज (जो अभी राजेंद्र काॅलेज छपरा हैं) में घेर लिया था। काॅलेज के प्राचार्य भी अंग्रेज थे, पर अपने छात्र के साथ खड़े रहे। उन्होंने बालू दा को भाग जाने को कहा। जब कोई रास्ता न सूझा तो खिड़की के ग्रिल को हाथों से उखाड़कर बाहर निकले और काॅलेज की छत से कूद गये। छत से कूदने के कारण उनका दाहिना पैर टूट गया था।

जामुन के पेड़ पर बिताए था सात दिन-रात

डाॅक्‍टर कृष्ण मुरारी बताते हैं कि उनके पिता कई बार ब्रिटिश पुलिस को चकमा देने में कामयाब रहे। एक बार जब उनका पीछा करती हुई पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया तो उनसे बचने के लिए जामुन के पेड़ पर चढ़ गए। नीचे अंग्रेजों की घेराबंदी थी और वह पेड़ पर छिपे थे। नीचे आते तो पकड़े जाते। इसलिए पेड़ पर ही सात दिन और सात रातें गुजार दी। जब अंग्रेजों की घेराबंदी समाप्त हुई तो वहां से निकल गए।

आजादी की रेलगाड़ी कार्यक्रम में रेलवे ने सम्मान से नवाजा

देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर रेलवे की ओर से आयोजित कार्यक्रम आजादी की रेलगाड़ी और स्टेशन के दौरान बालू दा की धर्मपत्नी को सम्मान से नवाजा गया। धनबाद मंडल की ओर से गोमो में 18 से 23 जुलाई तक इसका आयोजन किया गया। गोमो से नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यादें जुड़ी हैं। यही वजह है कि रेलवे ने इस स्टेशन का चयन किया। रुक्मिणी देवी ने कार्यक्रम की शुरुआत की और उनके पुत्र डा. कृष्ण मुरारी सिंह ने कालका मेल (अब नेताजी एक्सप्रेस) को गोमो से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इसी ट्रेन से 18 जनवरी 1941 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो से पेशावर के लिए रवाना हुए थे। 31 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मन की बात कार्यक्रम में भी गोमो स्टेशन का महत्व बता चुके हैं।


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