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सत्ता और संगठन में विश्वास के संकट से झारखंड में हारी भाजपा, गोविंदाचार्य ने सामाजिक कार्य करने की दी नसीहत Dhanbad News

कश्मीर में धारा 370 हटाने सर्जिकल स्ट्राइक राम जन्मभूमि तीन तलाक जैसे मसले पर भारत सरकार ने अच्छा काम किया है। अर्थव्यवस्था रोजगार शिक्षा व स्वास्थ्य में काम करने की जरूरत है।

By MritunjayEdited By: Published: Wed, 05 Feb 2020 09:20 AM (IST)Updated: Wed, 05 Feb 2020 05:02 PM (IST)
सत्ता और संगठन में विश्वास के संकट से झारखंड में हारी भाजपा, गोविंदाचार्य ने सामाजिक कार्य करने की दी नसीहत Dhanbad News
सत्ता और संगठन में विश्वास के संकट से झारखंड में हारी भाजपा, गोविंदाचार्य ने सामाजिक कार्य करने की दी नसीहत Dhanbad News

धनबाद, जेएनएन। सुशील मोदी, नंद किशोर यादव, रवि शंकर प्रसाद, बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास, वसुंधरा राजे जैसे कई नाम हैं जिन्हें गोविंदाचार्य ने भाजपा की राजनीति में आगे बढ़ाया, स्थापित किया। शिखर पर रहते हुए राजनीति से बेदर्दी से बाहर जाने को उन्हें मजबूर भी किया गया। गोविंदाचार्य कहते हैं, भाजपा के बड़े नेताओं को सामाजिक कार्य करने से किसने मना किया है। धनबाद आए गोविंदाचार्य से दैनिक जागरण के वरीय संवाददाता रोहित कर्ण के साक्षात्कार के मुख्य अंश: 

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झारखंड में भाजपा की करारी हार का कारण क्या है? 

राजनीति से कोसों दूर हूं। अधिक जानकारी नहीं। ऐसा लगता है कि सत्ता और संगठन में संवाद और विश्वास का संकट होने से झारखंड में भाजपा की हार हुई है। विश्वास के बिना संवाद हो तो भी फलदायक नहीं होता। 

मोदी सरकार के कामकाज से आप कितने संतुष्ट हैं? 

कश्मीर में धारा 370 हटाने, सर्जिकल स्ट्राइक, राम जन्मभूमि, तीन तलाक जैसे मसले पर भारत सरकार ने अच्छा काम किया है। अर्थव्यवस्था, रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र पर बहुत काम करने की जरुरत है। 

सीएए लागू करने की प्रक्रिया की आपने आलोचना की है। क्यों? 

सीएए भारतीय तासीर के मनमाफिक है। हम दुखियों को सहारा देते रहे हैैं। इस कानून को लागू करने की प्रक्रिया और लोकतांत्रिक होनी चाहिए था। सरकार को और संवाद करना चाहिए था। 

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में मोदी सरकार सबसे पहले क्या करें? 

एफडीआइ की जांच होनी चाहिए। कितना एफआइआइ (फाइनांसियल इंस्टीच्यूशनल इंवेस्टमेंट) है, इसकी भी जांच होनी चाहिए। इसमें चंद कंपनियां ही शामिल हैं। वे भारतीय अर्थव्यवस्था को अपने तरीके से चला रही हैं। ऐसी कंपनियों की पहचान कर उन्हें सार्वजनिक करना चाहिए। 

मंदी का यह वातावरण क्या संकेत दे रहा है? 

बाजारवाद की नीति से मंदी है। रोजगार का भारी संकट है। अनुमान से अधिक। सरकार भले न स्वीकार करे, उद्योग, कॉरपोरेट, बैंकिंग समेत सभी क्षेत्र भीषण संकट में हैं। 

फिर भी मोदी सरकार फाइव ट्रिलीयन डॉलर की अर्थव्यवस्था करने का दावा कर रही है? 

आज भारत नव उपनिवेश हो चुका है। आयात बढ़ रहा है। निर्यात घट रहा है। भुगतान संतुलन की हालत 1990 जैसी है। भंडार बढ़ रहा है। फिर भी महंगाई है। व्यापक विचार विमर्श की जरुरत है। 

इस हालात से निपटने में बजट कितना कारगर होगा? 

बजट में शुद्ध हवा के लिए 44 करोड़ रुपए देने की बात है। बजट में सद्इच्छा कई हैं। प्रावधान कुछ नहीं। स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी निवेश अच्छा नहीं है। अर्थव्यवस्था में स्टॉक मार्केट का योगदान सिर्फ सात फीसद है। चर्चा हमेशा उसी की होती है। कच्चे माल का निर्यात हो रहा है। चीन ने अपना गूगल, फेसबुक बनाया है। भारत आश्रित हैं। 

20 हजार एनजीओ को प्रतिबंधित करना कैसा कदम है? 

प्रतिबंधित किए गए एनजीओ पर विदेशी फंडिंग का आरोप है। यह एनजीओ का हिसाब किताब दुरुस्त कराने का मसला है। इस तरह की जांच पड़ताल बुरी बात नहीं है। यदि कोई शिकायत है तो समाधान के भी रास्ते हैं। 

  • केएन गोविंदाचार्य का परिचय

दो मई 1943 को आंध्र प्रदेश के तिरुपति में के एन गोविंदाचार्य का जन्म हुआ। बीएचयू से गणित में वे गोल्ड मैडलिस्ट रहे हैं। आरएसएस में पटना के विभाग प्रचारक रहे। फिर जेपी आंदोलन के दौरान जनता पार्टी और संघ परिवार के बीच समन्वय का काम किया। दक्षिण भारत में अभाविप के संगठन मंत्री के नाते भी काम किए। फिर भाजपा में आए तो राष्ट्रीय संगठन महामंत्री के दायित्व का निर्वहन किया। अटल बिहारी वाजपेयी को भाजपा का मुखौटा कहे जाने के बाद उठे विवाद के बाद वे भाजपा से अलग हो गए। दो साल तक अध्ययन अवकाश के बाद गोविंदाचार्य राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन, इटरनल हिंदू फाउंडेशन, हरित भारत, भारत विकास संगम जैसे संगठनों के जरिए सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं। वे आरएसएस के स्वयंसेवकों से आज भी जुड़े हुए हैं।


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