देश की इकलौती कोकिंग कोल कंपनी के पास अब उच्च गुणवत्ता वाले कोयले का टोटा, पहचान बचाने के संकट से जूझ रही बीसीसीएल
कोल इंडिया के पास अधिकांश पुरानी परियोजनाएं हैं जिनके ऊपरी सतह के कोयले का खनन कर लिया गया है। अब निचली सतह से कोयला निकाला जा रहा है जिसमें राख अधिक है। इसकी वजह से इस्पात व धातु कारखानों में बीसीसीएल के कोयले की मांग पर असर पड़ा है।
धनबाद, जेएनएन। देश की इकलौती कोकिंग कोल कंपनी के पास अब उच्च गुणवत्ता के कोयले का टोटा पड़ गया है। वजह यह कि उच्च गुणवत्ता का कोयला हमेशा ऊपरी सतह पर होता है। भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के पास अधिकांश पुरानी परियोजनाएं हैं, जिनके ऊपरी सतह के कोयले का खनन कर लिया गया है। अब निचली सतह से कोयले का खनन किया जा रहा है जिसमें राख की मात्रा अधिक होती है। इसकी वजह से इस्पात व धातु कारखानों में भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) के कोयले की मांग पर असर पड़ रहा है। कंपनी अपनी गुणवत्ता बनाए रखने को जिद्दोजहद कर रही है।
पहचान खो रही कंपनी : गुणवत्ता में कंपनी की वजह से कंपनी पहचान खो रही है। कोकिंग कोल का इस्तेमाल हार्ड कोक बनाने के लिए होता रहा है। इसकी गुणवत्ता के लिए इसे स्टील व धातु निर्माण उद्योग के लिए सुरक्षित रखा जाता रहा है। फिलहाल गुणवत्ता में कमी की वजह से इसकी खरीद में पावर सेक्टर भी हीलाहवाली करता रहा है।
वाश कोल के जरिए गुणवत्ता सुधार की कवायद : गुणवत्ता सुधारने के लिए कंपनी अधिक मात्रा में वाश कोल का उत्पादन करने को प्रयासरत है। इसके मद्देनजर वाशरियों की दशा सुधारने व नई वाशरियां स्थापित करने की दिशा में कंपनी काम कर रही है। इसके लिए कोयला मंत्रालय तक से समय पर नई वाशरियों का काम पूरा करने का दबाव दिया जा रहा है।
बीसीसीएल के वाशरी नहीं दे रहे अच्छे परिणाम : कोयले की धुलाई कर गुणवत्ता सुधारने में कंपनी के पुराने वाशरी साथ नहीं दे रहे। अधिकारियों के मुताबिक इन वाशरियों का निर्माण तब हुआ था जब 15 फीसद एश वाला कोयला का उत्पादन होता था। अब 35 फीसद व उससे अधिक राख वाला कोयला निकल रहा है। ऐसे में ये वाशरी अपेक्षित परिणाम नहीं दे रहे। इनका पुनरुद्धार जरूरी हो गया है।
निजी कंपनियों से भी करार : वाश कोल की मात्रा बढ़ाने के लिए कंपनी ने निजी कंपनियों से भी करार किया है। इसके तहत ही टाटा स्टील से छह महीने का करार हाल ही में किया गया है। करार के तहत फिलहाल छह महीने तक कंपनी टाटा स्टील के वाशरी में कोयले की धुलाई के बाद उसे सेल को आपूर्ति करेगी। इसके बाद आगे की रणनीति पर काम होगा। टाटा की वाशरी अत्याधुनिक है। यहां 35 फीसद ऐश वाले कोयले को वाश कर 18-19 फीसद तक कर दिया जाता है। फिलहाल टाटा स्टील प्रतिमाह बीसीसीएल के 50 हजार टन कोयले की धुलाई करेगी।
वाश कोल क्यों : इससे कोयले की कीमत बढ़ जाती है। खदान से निकले कोयले की कीमत जहां बाजार में 3 से 3.5 हजार रुपये टन मिलता है वहीं धुलाई के बाद यह 6.5 हजार रुपये टन बिक जाता है।
वाशरियों की क्षमता बढ़ाने की कवायद : कंपनी अपनी वाशरियों की भी क्षमता बढ़ाने को प्रयासरत है। फिलहाल दुग्दा, मुनीडीह, महुदा, भोजूडीह व मधुबन की पुरानी वाशरियों की क्षमता सालाना 1.3 मिलियन टन कोयला वाश करने की ही है। ऐसे में कंपनी पांच नए वाशरियों का निर्माण कर रही हैैं ताकि कुल वाश कोल की क्षमता बढ़ाकर सालाना 18 मिलियन टन प्रतिवर्ष किया जा सके।
यहां बन रहीं नई वाशरियां
- नई वाशरियां क्षमता
- पाथरडीह-1 5 मिलियन टन
- दहीबाड़ी 1.6 मिलियन टन
- मधुबन 5 मिलियन टन
- पाथरडीह-2 2.5 मिलियन टन
- भोजूडीह 2 मिलियन टन
किस ग्रेड में कितना एश
- कोयले का ग्रेड एश फीसद
- स्टील-1 15
- स्टील-2 15-18
- वाशरी-1 18-21
- वाशरी-2 21-24
- वाशरी-3 24-28
- वाशरी-4 28-35
कोकिंग कोल से ही बीसीसीएल की पहचान रही है। अब यहां उच्च गुणवत्ता के कोयले का भंडार समाप्त हो गया है। खदान की गहराई से निकला कोयला 40 फीसद से भी अधिक ऐश वाला है। बीसीसीएल की वाशरियां 15 फीसद ऐश वाले कोयले की धुलाई लायक हैैं। लिहाजा अत्याधुनिक तकनीक वाली वाशरियों पर ध्यान दिया जा रहा है। वाश कोल के जरिए ही बीसीसीएल की पहचान बचाई जा सकती है। -राकेश कुमार, तकनीकि निदेशक, परिचालन।