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सबकी सुनकर और सबको साथ लेकर चलने वाले नेता थे Rajendra Singh, शून्य से चलकर पहुंचे थे शिखर तक

इंटक के राष्ट्रीय महासचिव सह दिग्गज मजदूर नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह एक ऐसे नेता थे जो सबकी सुनकर और सबको साथ लेकर चलते थे। इसी गुण के कारण झारखंड की राजनीति एवं मजदूर राजनीति में शिखर पर पहुंचने के बावजूद उनका कोई दुश्मन नहीं था।

By Atul SinghEdited By: Published: Tue, 24 May 2022 12:00 PM (IST)Updated: Tue, 24 May 2022 12:00 PM (IST)
सबकी सुनकर और सबको साथ लेकर चलने वाले नेता थे  Rajendra Singh, शून्य से चलकर पहुंचे थे शिखर तक
झारखंड की राजनीति एवं मजदूर राजनीति में शिखर पर पहुंचने के बावजूद उनका कोई दुश्मन नहीं था।

दिलीप सिन्हा, धनबाद : इंटक के राष्ट्रीय महासचिव सह दिग्गज मजदूर नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह एक ऐसे नेता थे जो सबकी सुनकर और सबको साथ लेकर चलते थे। इसी गुण के कारण झारखंड की राजनीति एवं मजदूर राजनीति में शिखर पर पहुंचने के बावजूद उनका कोई दुश्मन नहीं था। कांग्रेस व इंटक की बात छोड़िए, विरोधी राजनीतिक पार्टियों एवं ट्रेड यूनियनों के नेताओं से भी उनके मजबूत व्यक्तिगत संबंध थे। मजदूर एवं मजदूर संगठन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ऐसी थी कि सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बावजूद उन्होंने खुद को कभी भी मजदूर एवं मजदूर संगठन से अलग नहीं किया। उनके साथ लंबे समय तक काम करने वाले इंटक के वरिष्ठ नेता एनपी सिंह बुल्लू ने बताया कि टेड यूनियन और राजनीति दोनों को साथ लेकर चलने का राजेंद्र सिंह ने एक उदाहरण पेश किया था।

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यहां हम आपको बता दें कि राजेंद्र सिंह की दूसरी पुण्यतिथि आज मंगलवार 24 मई को मनाई जा रही है। देशभर के मजदूर सेक्टर में इस मौके पर उन्हें याद किया जा रहा है। राजेंद्र सिंह ने राजनीति का सफर शून्य से शुरू किया था और अपने संघर्ष के बलबूते शिखर तक पहुंचे थे। एनसीडीसी के ढोरी कोलियरी में वह लोडिंग इंस्पेक्टर थे। दिग्गज मजदूर नेता बिंदेश्वरी दुबे के सानिध्य में आकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी और दुबे के साथ मजदूर राजनीति मेंं जुड़ गए थे। बिंदेश्वरी दुबे ने उन्हें 85 में अपनी बेरमो सीट से कांग्रेस के टिकट पर उतारा था। पहले चुनाव मेंं ही वह जीत गए थे। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा था।

बिंदेश्वरी दुबे के दिवंगत होने के बाद उनकी इंटक एवं राकोमसं की विरासत भी उन्होंने ही संभाली थी। छह बार विधायक, संयुक्त बिहार में दो बार एवं झारखंड में एक बार मंत्री तथा कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे राजेंद्र सिंह ने इंटक एवं राकोमसं को चोटी पर पहुंचाया था। राजनीति व ट्रेड यूनियन के समन्वय का वह एक उदाहरण थे। उनके दिवंगत होने के बाद इंटक की हालत भी कमजोर हुई है। विवाद के कारण इंटक जेबीसीसीआइ समेत तमाम कमेटियों से बाहर हो गई। इतना ही नहीं जिस राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ को उन्होंने बुलंदी पर पहुंचाया था, उसका नाम बदलकर राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर यूनियन करना पड़ गया। राजेंद्र सिंह की रानजीतिक एवं ट्रेड यूनियन की विरासत उनके पुत्र कुमार जयमंगल उर्फ अनूप सिंह संभाल रहे हैं। उनकी बेरमो विधानसभा सीट जीतकर अनूप सिंह ने राजनीतिक विरासत तो संभाल ली है, लेकिन ट्रेड यूनियन की राजनीति में अभी उनके समक्ष बड़ी चुनौती है।

क्या कहते हैं मजदूर राजनीति के दिग्गज

इंटक को आगे ले जाने में राजेंद्र सिंह की बड़ी भूमिका थी। मजदूर और यूनियन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का कोई जोड़ नहीं था। सभी को साथ लेकर चलने की उनमें क्षमता थी। सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बावजूद उन्होंने कभी भी यूनियन से नाता नहीं तोड़ा। सत्ता का लाभ मजदूरों को भी दिलाया। उनके योगदान को इंटक कभी भूल नहीं सकती है।

डाॅ. जी संजीवा रेड्डी, राष्ट्रीय अध्यक्ष इंटक व पूर्व राज्यसभा सदस्य

राजेंद्र सिंह का मजदूर राजनीति में बड़ा नाम था। मजदूरों को जो हक मिला है, उसमें उनका बड़ा योगदान था। उनके निधन से देश की मजदूर राजनीति को नुकसान हुआ है। वह काफी गंभीर व व्यवहार कुशल नेता थे।

रमेंद्र कुमार, पूर्व सांसद व एटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष


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