हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहा दम था... शिखर से शून्य की ओर अग्रसर INTUC में विलयन कौन?
इंटक का एक दौर ऐसा था जब बंद की घोषणा होती थी तो कोल इंडिया से लेकर मंत्रालय तक हिल जाता था। आज वही इंटक अपना अस्तिव बचाने की जद्दोजहद में जुटी दिख रही है। इस स्थिति में पहुंचाने का हाथ खुद इंटक के अंदर की फूट को जाता है।
रोहित कर्ण, धनबाद : इंटक का एक दौर ऐसा था जब बंद की घोषणा होती थी तो कोल इंडिया से लेकर मंत्रालय तक हिल जाता था। आज वही इंटक अपना अस्तिव बचाने की जद्दोजहद में जुटी दिख रही है। इस स्थिति में पहुंचाने का बहुत बड़ा हाथ खुद इंटक के अंदर की फूट व कलह को जाता है। इंटक पर दिलवाले फिल्म का यह डॉयलाग बहुत सटीक बैठता है "हमें तो अपनो ने लूटा गैरों में कहां दम था।" इंटक तीन गुटों में बंटा हुआ है। इसे बांटने वाले कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस के ही नेता है। संजीवा रेड्डी, ददई दूबे व तिवारी गुट एक-दूसरे को इंटक का असली हकादार मानने से इन्कार करते आए हैं। असली व नकली की लड़ाई का नतीजा तो इंटक को पहले ही कमजोर कर चुकी है। बची कसर जेबीसीसीआई की बैठक से बेदखल कर कोल इंडिया ने पूरी कर दी। अब कोर्ट के चक्कर लगाए जा रहे हैं व कहीं देर न हो जाए की सुर में तीनों गुट एक होने की बात करने लगे हैं। अब आगे क्या होगा? समय ही बताएगा।
तीन गुटों में कौन असली
यूनियन के मौजूदा अध्यक्ष जी संजीवा रेड्डी की यह उपलब्धि ही कही जाएगी कि उनके समय में ही सर्वाधिक श्रमिक संगठन का कीर्तिमान बना। लेकिन यह भी हुआ कि संगठन का नेतृत्व तीन गुटों में बंट चुका है। कभी सभी विभागों व सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने वाली व निजी क्षेत्र की पसंदीदा यूनियन आज चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे, रेड्डी व केके तिवारी गुटों में बंटी हुई है। संगठन में बिखराव का आलम यह है कि कोल इंडिया जैसी कंपनी ने अपने वेतन समझौते के लिए गठित ज्वाइंट बाइपर्टाइट कमेटी फार द कोल इंडस्ट्री में इंटक को प्रतिनिधित्व नहीं दिया। वजह यह कि तीनों ही गुट एक दूसरे के खिलाफ अदालत में मुकदमा लड़ रहे हैं। तीनों ही का कहना है कि संगठन के सर्वेसर्वा वही हैं। ऐसे में यह निर्णय कर पाना संभव नहीं कि किनके नेतृत्ववाली इंटक असली है।
ऑफिशियल वेबसाइट पर रेड्डी ही अध्यक्ष
इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का श्रमिक संगठन है। कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक वेबसाइट पर उसके इतिहास से वर्तमान तक की सारी जानकारी दर्ज है। इसमें सभी अनुषंगी संगठनों व उनके अध्यक्षों की भी सूची दर्ज है। इस सूची में इंटक पर क्लिक करते ही अध्यक्ष के रूप में तस्वीर सहित जी संजीवा रेड्डी का नाम व संक्षिप्त परिचय, कार्यालय का पता सहित दर्ज है।
रेड्डी सबसे अधिक समय से इंटक के अध्यक्ष बने हुए हैं। वे गोपाल रामानुजम के बाद इस पद पर तीन अगस्त 1994 को इस पद पर आसीन हुए थे और पिछले 26 वर्षों से इस पर काबिज हैं। उनके बाद सर्वाधिक समय तक इस पद पर उनके पूर्ववर्ती गोपाल रामानुजम ही काबिज रहे थे। रामानुजम मार्च 1985 से तीन अगस्त 1994 तक इस पद पर रहे थे। जबकि संस्थापक अध्यक्ष डा. सुरेश चंद्र बनर्जी मात्र छह महीने ही पद पर रह सके थे।
अधिकांश एक वर्ष के लिए ही बने अध्यक्ष
शुरुआती दौर में एक से दूसरे अधिवेशन तक के लिए ही अध्यक्ष बनाए जाते थे। बिजोय चंद्र भगवती वह अध्यक्ष हुए जो लगातार सात वर्षों तक अध्यक्ष रहे। उनके बाद एनके भट्ट पांच वर्ष तक, गोपाल रामानुजम नौ वर्ष तक अध्यक्ष रहे। इससे पूर्व दिग्ज कांग्रेस नेता व बिहार के मुख्यमंत्री रहे बिंदेश्वरी दुबे भी एक ही वर्ष अध्यक्ष रह सके थे।
महिला व प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं अध्यक्ष
देश का इकलौता श्रमिक संगठन जिसकी अध्यक्ष महिला भी रह चुकी हैं। डा. श्रीमती मैत्रेयी बोस दो बार इंटक का अध्यक्ष रह चुकी हैं। उनके अलावा एसआर वासवदा, माइकल जान, गोपाल रामानुजम ऐसे नेता हैं जो दो-दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं। यही वह श्रमिक संगठन है जिसके पहले अधिवेशन में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मौजूद थे और दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे गुलजारीलाल नंदा भी इसके अध्यक्ष रह चुके हैं।
प्रधानमंत्री की मौजूदगी में हुआ था गठन
इंटक की स्थापना तीन मई 1947 को की गई थी। तब कांग्रेस के अध्यक्ष रहे आचार्य जेबी कृपलानी ने इसके पहले अधिवेशन का उद्घाटन किया था। अधिवेशन में अंतरिम सरकार के उपाध्यक्ष (प्रधानमंत्री) पंडित जवाहरलाल नेहरू, शंकरराव देव, जगजीवन राम, बीजी खेर, ओपी मेहताब, अरुणा आसफ अली, राम मनोहर लोहिया, अशोक मेहता, रामचंद्र सखाराम रुईकर, मणिबेन पटेल आदि मौजूद थे।
देश का नंबर-1 श्रमिक संगठन बनकर उभरा
आजादी के सिर्फ तीन महीने इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना तीन मई 1947 को की गई। काफी पहले यह महसूस किया जा रहा था कि कांग्रेस का अपना एक श्रमिक संगठन होना चाहिए। तब श्रमिक क्षेत्र में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) ही एकमात्र था। लिहाजा सुरेशचंद्र बनर्जी की अध्यक्षता में इंटक का गठन हुआ। तीन महीने बाद जब देश आजाद हुआ तो कांग्रेस की सरकार बनी। सत्ता का साथ और शुरुआती नेताओं की मेहनत से कांग्रेस ने जल्द ही अपना अलग मुकाम तय किया। बैंकों, उद्योगों के राष्ट्रीयकरण ने इसे और ऊंचाई दी और यह देश का नंबर-1 श्रमिक संगठन बनकर उभरा।
अब शिखर से शून्य की ओर यूनियन
वर्ष 2013 में 33.3 मिलियन सदस्यों के साथ संगठन स्वयं को देश का सबसे बड़ा श्रमिक संगठन होने का दावा कर रही है। हालांकि ऐसा ही नंबर-1 का दावा भारतीय मजदूर संघ का भी है। बावजूद संगठन के इतिहास में सर्वाधिक सदस्यता के दावा के साथ ही यह भी हकीकत है कि आज इसे सार्वजनिक कंपनियों में मजदूरों के हक की बात करना तो दूर अपने हक के लिए भी आवाज नहीं उठा पा रही। पिछले पांच वर्षों से एक अदालत से दूसरी अदालतों की चौखट खटखटा रही यूनियन को एक अदद कंपनी में बतौर जनप्रतिनिधि बैठने तक का मौका नहीं मिल रहा।
अब तक के अध्यक्ष व कार्यकाल
नाम कार्यकाल
डा. सुरेश चंद्र बनर्जी मई 1947 से अक्टूबर 1947
हरिहर नाथ शास्त्री अक्टूबर 1947 से मई 1949
खांडूभाई कासनजी देसाई मई 1949 से अक्टूबर 1952
माइकल जान दिसंबर 1952 से दिसंबर 1953
एसआर वासवदा दिसंबर 1953 से जनवरी 1955
जीडी आंबेकर जनवरी 1955 से मई 1956
एसआर वासवदा मई 1956 से जनवरी 1958
गोपाल रामानुजम जनवरी 1958 से अप्रैल 1960
माइकल जान अप्रैल 1960 से जून 1962
डा. श्रीमती मैत्रेयी बोस जून 1962 से मई 1963
काशीनाथ पांडे मई 1963 से दिसंबर 1964
डा. जीएस मलकोटे दिसंबर 1964 से दिसंबर 1965
वीवी द्रविड़ दिसंबर 1965 से मई 1968
आबिद अली जफरभाई मई 1968 से मई 1969
गुलजारीलाल नंदा मई 1969 से फरवरी 1970
डा. श्रीमती मैत्रेयी बोस फरवरी 1970 से नवंबर 1971
बिजोय चंद्र भगवती नवंबर 1971 से अक्टूबर 1978
अनंत प्रसाद शर्मा अक्टूबर 1978 से नवंबर 1980
एनके भट्ट नवंबर 1980 से मई 1984
पं. बिंदेश्वरी दुबे मई 1984 से मार्च 1985
गोपाल रामानुजम मार्च 1985 से तीन अगस्त 1994
जी संजीवा रेड्डी तीन अगस्त 1994 से अब तक