दसांय नृत्य से आदिशक्ति की आराधना करते आदिवासी
निरसा भारतीय संस्कृति में शक्ति की आराधना का विशेष ेमहत्व है। लोग अलग-अलग ढंग से आदिशक्ि
निरसा : भारतीय संस्कृति में शक्ति की आराधना का विशेष ेमहत्व है। लोग अलग-अलग ढंग से आदिशक्ति की अर्चना कर उनसे सुख, शांति व समृद्धि की कामना करते हैं। आदिवासी समाज के लोग मां शक्ति की आराधना दसांय नृत्य से करते हैं। इस दौरान आदिवासी अगले वर्ष बेहतर फसल हो, सभी स्वस्थ रहें और गांव में सुख-शांति बनी रहे की कामना करते हैं। शुक्रवार को जीतपुर गांव के मंगनाडीह टोला में आदिवासियों ने दसांय नृत्य कर आदिशक्ति की आराधना की। जीतपुर गांव के मांझी हड़ाम साहेब लाल मरांडी बताते हैं कि आदिवासी परंपरा में महाषष्ठी के दिन से मां की आराधना शुरू हो जाती है। बेलवरण के दिन ग्रामीण स्नान कर गांव के जाहेर स्थान पहुंचते हैं। वहां विधि विधान के साथ आदिशक्ति की पूजा की जाती है। फिर वाद्य यंत्रों की पूजा के साथ जाहेर स्थान से दसांय नृत्य शुरू होता है। जाहेर स्थान से निकलने के बाद दशमी के पहले तक समाज के लोग गांव में घर-घर जाकर धूप जलाते हैं। घर वाले हमारी मंडली को उपहार स्वरूप कुछ ना कुछ दान करते हैं। विजयादशमी के दिन सभी लोग जाहेर स्थान पहुंचते हैं। घरों से मिली खाद्य सामग्री से खिचड़ी का प्रसाद बनाया जाता है। सभी उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। दसांय नृत्य कार्यक्रम में पौराणिक हड़ाम, कांतो मरांडी, विनोद मरांडी डब्ल्यू मुर्मू आदि मौजूद थे।
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संस्कृति को बनाए रखने के लिए नृत्य में बच्चों को करते शामिल
बेलकूप पंचायत के वार्ड सदस्य मनोज मरांडी बताते हैं कि आदिवासी परंपरा में सभी त्योहार में सामूहिक नृत्य व संगीत जरूरी है। अपनी संस्कृति को बनाए रखने के लिए दसांय नृत्य के अलावा सभी त्योहार में बच्चों को शामिल करते हैं।