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पूर्व डीईओ के विधिक उत्तराधिकारी से अब तक नहीं वसूले जा सके 36 लाख

- तत्कालीन डीईओ टेटे बेनेडिक्ट पर तृतीय व चतुर्थ वर्गीय कर्मियों की अवैध नियुक्ति का आरोप

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 06:26 PM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 06:26 PM (IST)
पूर्व डीईओ के विधिक उत्तराधिकारी से अब तक नहीं वसूले जा सके 36 लाख
पूर्व डीईओ के विधिक उत्तराधिकारी से अब तक नहीं वसूले जा सके 36 लाख

- तत्कालीन डीईओ टेटे बेनेडिक्ट पर तृतीय व चतुर्थ वर्गीय कर्मियों की अवैध नियुक्ति का आरोप हुआ था प्रमाणित

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- 2006 में हुई थी उनकी मौत, चार माह पहले स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने दिया था राशि वसूलने का निर्देश

- अब फिर से आरडीडीई ने डीईओ को भेजा पत्र, कार्रवाई न होने पर जताया खेद जागरण संवाददाता, धनबाद : धनबाद के तत्कालीन डीईओ स्व. टेटे बेनेडिक्ट के विधिक उत्तराधिकारी से अभी तक 36 लाख 9 हजार 838 रुपए की वसूली नहीं की जा सकी है। तत्कालीन डीईओ पर 83 तृतीय और चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों की अवैध नियुक्ति के आरोप लगे थे, जो जाच में सत्य पाए गए थे। डीईओ को बर्खास्त करने के प्रस्ताव पर सीएम का अनुमोदन मिलता, उससे पहले ही 6 दिसंबर 2006 को टेटे की मौत हो गई। इसे देखते हुए झारखंड के महाधिवक्ता से परामर्श लिया गया और उसके आधार पर डीईओ केविधिक उत्तराधिकारी से राशि की वसूली करने का निर्णय लिया गया।

इस मामले में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के संयुक्त सचिव देवेंद्र भूषण सिंह ने उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल को पत्र भी लिखा था। इसमें कहा था कि बेनेडिक्ट के निलंबन अवधि 13 फरवरी 1997 से 15 मई 2002 तक को कर्तव्य अवधि मान देय राशि की गणना राजस्व की हानि से कर ली जाए। इसके बाद बची राशि की वसूली बेनेडिक्ट के विधिक उत्तराधिकारी से मनी सूट दायर कर की जाए। यह निर्देश चार महीने पहले ही जारी कर कार्रवाई करते हुए राशि की वसूली का निर्देश दिया गया था। हालांकि अभी तक राशि की वसूली नहीं की जा सकी है। आरडीडीई रतन कुमार सिंह ने दुबारा पत्र जारी कर इस मामले की कार्रवाई प्रतिवेदन की मांग की है।

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सरकार को ऐसे हुआ था नुकसान

विभागीय पत्र के अनुसार टेटे ने धनबाद और बोकारो में अवैध नियुक्ति की थी और इस कारण कर्मियों को वेतन मद में अवैध भुगतान हो गया, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ था। इसके बाद हानि की गणना के लिए उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल, हजारीबाग के आरडीडीई की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति गठित की गई थी। इस समिति ने ही अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि 36,09,838 रुपये की हुई हानि हुई थी।

आरोप प्रमाणित होने के बाद टेटे को वर्ष 1997 में निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय, पटना की शरण ली थी। कोर्ट ने 16 मई 2002 को दिए आदेश में उनके निलंबन आदेश को निरस्त करते हुए सभी पावनाओं के भुगतान का आदेश दिया था। इसके विरुद्ध राज्य सरकार ने न्यायालय में एलपीए दायर किया था, जिसमें आदेश देते हुए न्यायालय ने निलंबन आदेश को 16 मई 2002 के प्रभाव से सीज कर दिया था। इसके बाद टेटे को निलंबनमुक्त किया गया था। इधर विभागीय जाच में टेटे पूर्ण रूप से दोषी पाए गए थे।


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