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पथरौल में काली पूजा की तैयारी जोरों पर

प्रखंड के पथरौल स्थित प्रसिद्ध काली मंदिर में पूजा व दीपों का त्योहार दीपावली मनाने की तैयारी जोर-शोर से हो रही है। सभी अपने घरों व दुकानों की साफ-सफाई व रंगाई-पोताई करने में जुटे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Oct 2019 05:15 PM (IST)Updated: Sun, 20 Oct 2019 06:22 AM (IST)
पथरौल में काली पूजा की तैयारी जोरों पर
पथरौल में काली पूजा की तैयारी जोरों पर

करौं : प्रखंड के पथरौल स्थित प्रसिद्ध काली मंदिर में पूजा व दीपों का त्योहार दीपावली मनाने की तैयारी जोर-शोर से हो रही है। सभी अपने घरों व दुकानों की साफ-सफाई व रंगाई-पोताई करने में जुटे हैं। बताया जाता है कि तत्कालीन राजा स्व. दिग्विजय ने मंदिर की स्थापना की। खेतौरिया ने दिग्विजय के बाल्यावस्था में ही इनके पिता की हत्या कर पथरौल स्टेट का राज हथिया लिया था। खेतौरिया ने बालक दिग्विजय की भी हत्या करनी चाही। लेकिन राजा के स्वामीभक्त ढाकियों ने अपनी सूझबूझ व चातुर्य से राजकुमार की जान बचा ली। ढाकियों ने राजकुमार को अपने ढाक में छिपा लिया था। राजकुमार को उसके मामाघर बुढैई पहुंचा दिया। यहीं राजकुमार का पालन-पोषण किया गया। बाल्यावस्था से राजकुमार मां काली के प्रति असीम श्रद्धा थी। 16 वर्ष की उम्र में युवा दिग्विजय ने पिता की हत्या कर राजपाट हथियाने के बारे में सुना। जोश में आकर राजकुमार ने खेतौरिया को खदेड़कर अपना राज्य वापस पा लिया। उस समय मां काली का भव्य मंदिर नहीं था। बेल व नीम पेड़ के नीचे पत्थर की बट्टी रखकर पूजा की जाती थी। बाद में राजा को मां काली ने स्वप्नादेश दिया कि कोलकता के दक्षिणेश्वर घाट में आधा जल व आधा स्थल में मेरी प्रतिमा है। प्रतिमा लाकर पथरौल में स्थापित करो। राजा ने मां के आदेश को मानते हुए पथरौल में प्रतिमा को स्थापित किया।

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