मिथिलांचल के घी से जलती है अखंड ज्योत
जागरण संवाददाता देवघर परंपराओं की माला ही बाबा मंदिर का श्रृंगार है। ऐसी अनंत कथाएं
जागरण संवाददाता, देवघर : परंपराओं की माला ही बाबा मंदिर का श्रृंगार है। ऐसी अनंत कथाएं हैं जो सुबह शुरू की जाए तो रैना बीत जाए पर वह अधूरी रह जाएगी। आप जहां से शुरू करें, एक प्राचीन परंपरा सामने दस्तक देगी। बाबा के दरबार में तो देश व विदेश से भक्त आते हैं। इसमें बिहार के मिथिलांचल से आने वाले भक्त बसंत पंचमी को बाबा को तिलक चढ़ाते हैं। तिलक में अपने साथ पहला अनाज लेकर आते हैं। अपने घर में तैयार किया हुआ घी भी साथ लाते हैं। हजारों की संख्या में पहुंचे बाबा के एक-एक भक्त शिवलिग पर घी अर्पित करते हैं। उनके चढ़ाए घी को मंदिर के पुजारी ड्रम में सहेजकर रखते हैं। और इसी घी से सालों भर शंकर-पार्वती समेत सभी 22 मंदिर में घी का दीपक जलता है।
यह परंपरा आज की नहीं है। त्रेता युग से चली आ रही है। माता पार्वती को मिथिलावासी अपनी बेटी मानते हैं। यह भाव इसलिए है कि मिथिला का पूरा इलाका हिमालय की तराई में है। पार्वती राजा हिमराज की पुत्री हैं। भारत ऐसा देश है जहां भाव पर ही रिश्तेदारी टिकी हुई है। और भगवान भी तो भाव के भूखे हैं। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की जीवंत परंपरा बाबा मंदिर के इस अनुष्ठान से है। सदियों की परंपरा, पूर्वजों से निभाए गए रिश्ते नाते आज भी उसी निष्ठा से पूरा हो रहे हैं। भारतीय सभ्यता में पिता के धन पर बेटी का हक होता आया है। मिथिलावासी उसी हक से अपने खेत का पहला अनाज धान की बाली कांवर में सजा कर आते हैं। और पशुधन का पहला अंश घी भी साथ लाते रहे हैं। आज पशुधन कम हो गया लेकिन वह परंपरा नहीं टूटी है। अपने घर में जो भी तैयार हुआ उसका पहला अंश निकाल कर रखते हैं। पंचमी में जब देवघर आते हैं तो आकर बाबा पर अर्पण करते हैं। परंपराओं में ऐसी पवित्रता भारत में ही देखने को मिलती है। भारत इसी परंपरा और संस्कृति की बदौलत दुनिया में जाना जाता है। इस साल पचास हजार मिथिलावासी देवघर पहुंचे जिनमें सबके हाथ में श्रद्धा के पात्र में घी था जिसे उनलोगों ने भक्तिभाव से अर्पण किया।