देवघर के 50 हनुमान मंदिरों में आज मनेगा दीपोत्सव
पांच अगस्त भारत ही नहीं विश्व के कोने-कोने में बसे भारतीयों के लिए खास है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जन्मभूमि अयोध्या में रामलला मंदिर के निर्माण की शुरूआत से उनके भक्तों का रोम-रोम पुलकित है। प्रसिद्ध हनुमान कथावाचक प्रदीप भैया भी इन दिनों राम भक्ति में आकंठ तक डूबे हैं। उनके निर्देश पर मंगलम परिवार बुधवार को देवघर के 50 से अधिक हनुमान मंदिरों में भव्य दीपोत्सव मनाने की तैयारी में जुटे हैं।
राजीव, देवघर
पांच अगस्त भारत ही नहीं विश्व के कोने-कोने में बसे भारतीयों के लिए खास है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जन्मभूमि अयोध्या में रामलला मंदिर के निर्माण की शुरुआत से उनके भक्तों का रोम-रोम पुलकित है। प्रसिद्ध हनुमान कथावाचक प्रदीप भैया भी इन दिनों राम भक्ति में आकंठ डूबे हैं। उनके निर्देश पर मंगलम परिवार बुधवार को देवघर के 50 से अधिक हनुमान मंदिरों में भव्य दीपोत्सव मनाने की तैयारी में जुटा है।
मंगलवार को बातचीत के क्रम में प्रदीप कहते हैं कि भारतीय वांग्मय के प्रतीक पुरूष मर्यादामयी मूर्ति राजा राम के संदर्भ में ग्रंथों, ऋषि, मुनियों, साधकों व रचनाओं ने समय-समय पर समाज में व्याप्त तत्कालीन विषय परिस्थितियों का सात्विक व तात्विक सद्भावपूर्ण व सर्व समावेशक समाधान प्रस्तुत करने का स्तुत्य कार्य संपादित किया है। आरव्यानों में वर्णित चतुर्युगों के अपने-अपने करणीय कर्म उल्लेखित हैं जिनमें कलियुग में यज्ञ, ध्यान, जप से ज्यादा राम नाम के अहर्निंश सुमिरन को स्थान प्रदान किया गया है। प्रदीप कहते हैं कि ग्रंथों में जिक्र है कि ऐहि कलिकाल न साधन दूजा, जोग जग्य जप तप व्रत पूजा। रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि, संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि। प्रदीप कहते हैं कि राम भक्ति के विकास के मार्ग के पथिक को राम नाम की असीम तर्क शक्ति, सर्वसुलभता व भक्त वत्सलता के असीम आनंद के अतिरेक का अनुभव होता है। साथ ही भावुक भक्त भक्ति के नौ सोपानों में से श्रवण, कीर्तन व स्मरण को ही अपने पथ का पाथेय मानने लगते है। प्रदीप कहते हैं कि भगवन्नम स्मरण की तीन भूमिकाएं हैं। भूमिशोधन, नाप जप और नाम ध्यान। मूलत: साकार स्वरूप की भक्ति में शुद्ध प्रेम या भाव तत्व ही प्रधान होता है। इसलिए कहा गया है कि रामहि केवल प्रेम पियारा, जानि लेहु जो जाननि हारा। प्रेम प्रिय प्रभु राम के जीवन चरित का सुमिरन मानव मन के मैल को इस कलिकाल के कठिन कुलषित समय में धोकर उसे निर्मलता प्रदान कर देता है। प्रदीप कहते हैं कि रघुवंश भूषन चरित यह नर कहहि सुनहि जे गावहि। कलिमल मनोबल धोई बिनु श्रम राम धाम सिधावहीं। राम नाम जीवन में सदाचार, मर्यादा, दया, करूणा, सेवा सद्गुणों के सुवासित नीर से मानसिक कलुषता को धोकर निर्मल कर देता है और प्रभु ने अपने श्रीमुख से स्वयं कहा है कि निर्मल मन जन से माहि पावा, मोहि कपट, छल, छिद्र न भावा। सामाजिक विसंगतियों से असंपृक्त रहकर आम जन जब राम के नाम को अपने जीवन में अपनी दिनचर्या का अभिन्न अंग बना लेते हैं तब उनका दैनंदिन का प्रत्येक कामकाज रामकाज हो जाता है। सुमिरन का अर्थ है स्मृति में सदैव जीवंत बने रहना। इसकी मूल शर्त है प्रेम और उसके लिए आवश्यक है। संबंध जो किसी भी रूप में हो, स्वामी, सरवा, दास्य कोई भी संबंध हमें आराध्य के साथ समान रूप से जोड़ देता है। राम तो वास्तव में जीवन जीने की व्यावहारिक आचार संहिता ही हैं। शकहुं महिष मानुष धेनु रवर, अज रवल निसाचर भच्छहीं वाली लंका में निवास करने वाले विभीषण ने सार्वजनिक उद्घोषणा कर सर्वसाधारण को यह संदेश दिया था कि राम सत्य संकल्प प्रभु। ऐसे सत्य संकल्प स्वरूप प्रभु राम के नाम के सुमिरन के प्रभाव का प्रबल प्रमाण स्वयं हनुमान भी हैं। सुमिरि पवनसुत पावन नामू, अपनें बस करि राखे रामू। अहर्निश प्रभु राम के नाम के सुमिरन का प्रभाव होता है कि प्रभु फिर सदैव हमारे हृदय में विराजमान हो जाते हैं । प्रनवउँ पवन कुमार, रवलबन पावक ग्यान धन, जासु हृदय आगार, बसंहि राम सर चाप धर। दैहिक, दैविक और भौतिक संतापों से मुक्ति का सर्वसुलभ, सर्वमान्य व सार्वकालिक समाधान है राम से बड़ा राम का नाम।