कुटीर उद्योग पर सरकार की बरसे मेहरबानी तो बने बात
औद्योगिक नीतियों की पहुंच यहां के व्यवसायियों तक सरलता से पहुंच जाए तो कई उद्योग यहां आत्मनिर्भरता के उदाहरण बन सकते हैं।
देवघर : बैद्यनाथ की नगरी देवघर अपने औद्योगिक स्वरूप को हासिल करने के लिए तरस रहा है। केवल सरकार की दृढ़ता और औद्योगिक नीतियों की पहुंच यहां के व्यवसायियों तक सरलता से पहुंच जाए तो कई उद्योग यहां आत्मनिर्भरता के उदाहरण बन सकते हैं। खासकर देवघर में आने वाले असंख्य श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद के रूप में मिलने वाला पेड़ा, इलायचीदाना, बद्दी, सिदूर, बिदी, लहठी, चूड़ी, चूड़ा, बेर चूर्ण ऐसे सामग्री हैं जिन्हें अगर स्थानीय स्तर पर सुनियोजित तरीके से उत्पादन व बाजार मिले जाए तो इससे देवघर ही नहीं पूरे संताल परगना की आत्मनिर्भरता और आर्थिक समृद्धि आ जाएगी। न सिर्फ पलायन थमेगा बल्कि इस इलाके में औद्योगिक इकाईयों की बुनियाद भी ठोस आकार ले पाएगी। अब तक नहीं हुए गंभीर प्रयास : देवघर से लेकर बासुकीनाथ तक फैला प्रसाद का व्यवसाय अब भी कुटीर उद्योग के दायरे में है। लघु व वृहत उद्योग का आकार ये व्यवसाय हासिल करें इसके लिए अब तक गंभीर प्रयास होना शेष है। देवघर में सिदूर निर्माण के लिए सिर्फ चार कुटीर उद्योग संचालित हैं जिसमें बाबा सिदूर, वंदना सिदूर, घूंघट सिदूर और शंकर-पार्वती सिदूर का नाम शामिल है। अलबत्ता भले ही देवघर से लेकर घोरमारा व बासुकीनाथ तक पेड़ा का रोजगार फैला है लेकिन यह व्यवसाय भी उद्योग का दर्जा हासिल नहीं है। कमोबेश इलायचीदाना की भी यह स्थिति है जबकि बिदी, चूड़ी, लहठी व बद्दी गृह उद्योग के दायरे से बाहर नहीं निकल सका है। चूड़ा बनाने के लिए यहां एक दर्जन मिल हैं लेकिन प्रसाद के लिए चूड़ा की निर्भरता वर्दमान एवं अन्य दूसरे प्रदेशों पर ही है। पूंजी से लेकर बेहतर माहौल देने की जरूरत : प्रसाद के धंधे से जुड़े अधिकांश व्यवसायियों का मानना है कि सरकार के स्तर से पूंजी की मुकम्मल व्यवस्था और बेहतर माहौल प्रदान करना सबसे अहम है। यहां अधिसंख्य इकाईयां पूंजी के अभाव में दम तोड़ देती हैं और जो चल रही हैं उन्हें चलाने में भी बड़ी जद्दोजहद है। खासकर कुटीर उद्योगों के उत्थान के लिए सरकार को गंभीरता से पहल करने की जरूरत है। कच्चे माल की उपलब्धता से लेकर तकनीकी तौर पर जानकार व प्रशिक्षित मानव संसाधन की उपलब्धता सबसे अहम कड़ी है। कुटीर उद्योगों को चलाने के लिए दूसरे प्रदेशों के प्रशिक्षित व जानकार मानव संसाधन की निर्भरता खत्म कर स्थानीय स्तर पर इसकी व्यवस्था एक अहम कड़ी है। इससे पलायन भी थमेगा और आर्थिक मजबूती भी मिलेगी। वंदना सिदूर के प्रोपराइटर जगदीश मुंद्रा कहते हैं कि लॉकडाउन के टूटने की चिता है। सरकार को चाहिए कि बैकों से ऋण की उपलब्धता सबसे पहले सुनिश्चित कराए।
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इस ओर ध्यान देने की है जरूरत
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- पूंजी की हो व्यवस्था।
- बैंक ऋण की प्रक्रिया आसान हो।
- जसीडीह में स्थित स्पीयाडा की गतिविधियां तेज हो।
- चिह्नित औद्योगिक क्षेत्रों का तेज गति से हो विकास।
- छोटे व्यवसायियों के लिए हो स्थानीय स्तर पर माल की उपलब्धता
- ट्रांसपोर्टेशन की हो मुकम्मल व्यवस्था।
- सिर्फ बाहर से ही माल मंगवाने की नहीं बल्कि यहां से भी माल बाहर भेजने की हो व्यवस्था
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वर्जन
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लॉकडाउन की वजह से अब नए सिरे से इकाई को खड़ा करने की चुनौती है। बाहर से आकर यहां काम करने वाले मजदूर वापस लौट गए हैं। ऐसे में स्थानीय मजदूरों से काम की शुरूआत तो हो सकती है लेकिन इससे काम नहीं चलने वाला है। सरकार को कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए गंभीर पहल करना होगा।
पंकज मोदी, प्रोपराइटर बाबा सिदूर देवघर देवघर में तैयार होने वाली पेड़ा की गुणवत्ता सबसे अहम कड़ी है। यहां तैयार उत्तम गुणवत्ता वाले पेड़ा को 25 से 30 दिनों तक उपयोग में लाया जा सकता है। स्थानीय स्तर पर तैयार खोआ महंगा होने के साथ डिमांड के अनुरूप उपलब्ध नहीं है। प्रसाद के व्यवसाय को उद्योग का दर्जा देने के लिए सरकार को गंभीर पहल करनी होगी।
अमरनाथ केशरी, थोक पेड़ा व खोआ व्यवसायी, देवघर