127 साल पुराने गुरुग्रंथ साहिब को ले जाने का विरोध
संवाद सहयोगी मधुपुर (देवघर) शहर के पंचमंदिर रोड स्थित प्राचीन वाहेगुरु शिव मंदिर में
संवाद सहयोगी, मधुपुर (देवघर): शहर के पंचमंदिर रोड स्थित प्राचीन वाहेगुरु शिव मंदिर में 127 वर्ष पुराना गुरुग्रंथ साहिब रखा हुआ है। कहा जा रहा है कि यह ग्रंथ 1893 से यहां है। काफी पुराना हो जाने की वजह से एक सप्ताह पहले पता चला कि इसका पन्ना फट गया है। गुरु ग्रंथ साहिब का पन्ना फटने की सूचना मिलते ही झारखंड-बंगाल के दर्जनों सिख समुदाय के श्रद्धालु रविवार को मधुपुर पहुंचे।
आदित्य सभागार में पूर्व विधायक उदय शंकर सिंह उर्फ चुन्ना सिंह की अध्यक्षता में वाहेगुरु मंदिर प्रबंधन समिति, सिख समाज और स्थानीय लोगों की बैठक की गई। बैठक में सिख समुदाय ने गुरुवाणी का पाठ नहीं होने को लेकर आपत्ति दर्ज कराई। कहा कि ग्रंथ का पन्ना फटने के उपरांत उसे विधिवत निस्तार करना सभी का धर्म है। मधुपुरवासियों ने करीब सवा सौ साल तक आस्था और श्रद्धा के साथ गुरु ग्रंथ साहिब का आदर किया।
सर्वसम्मति से अरदास और लंगर के उपरांत सोमवार को वाहेगुरु शिव मंदिर से गुरु ग्रंथ साहिब को सिख समाज के लोगों द्वारा धनबाद ले जाया जाएगा। वहां से गुरु ग्रंथ के निस्तार के लिए अमृतसर भेजा जाएगा।
मौके पर गिरिडीह से सरदार गुणवंत सिंह, वाहेगुरु मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष बालमुकुंद बथवाल, अरविद कुमार, पूर्व प्रमुख सुबल प्रसाद सिंह, आचार्य उज्जवल शांडिल्य, सरदार मंजीत सिंह, सरदार शेर सिंह, गुरु सरदार मांजा सिंह, सरदार निर्मल सिंह, सरदार काले सिंह, सरदार सन्नी सिंह, मधुरेंद्र गोस्वामी,कल्पना घोष, राजेश गुटगुटिया,डॉ सुमन लता, वार्ड पार्षद विश्वंभर मिश्रा, प्रसाद चटर्जी समेत दर्जनों लोग धनबाद, गिरिडीह, चिरकुंडा, बराकर, निरसा, गोविदपुर, चिनाकुड़ी, गोमो आदि स्थानों से सीख श्रद्धालु मधुपुर पहुंचे हैं।
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क्या कहते मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष
वाहेगुरु मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष बालमुकुंद बथवाल ने कहा कि आचार्यों के मत के अनुसार जिस प्रकार हिदू धर्म में खंडित प्रतिमा की पूजा अर्चना नहीं करनी चाहिए और उसका विधिवत निस्तार करना चाहिए। ठीक इसी प्रकार सिख समाज में गुरुग्रंथ साहिब के फटने पर उसका विधि विधान के साथ निस्तार करने का प्रावधान है। मधुपुरवासी सिखों की श्रद्धा और आस्था के साथ खड़े हैं।
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लोगों ने जताया विरोध
वाहेगुरु शिव मंदिर स्थापना में भूमि दान करनेवाले कुशवाहा परिवार के सदस्यों समेत अन्य लोगों ने मंदिर से प्राचीन गुरुग्रंथ साहिब को ले जाने का विरोध किया है। मोहल्ले के कई लोगों ने भी मंदिर से गुरुग्रंथ साहिब को ले जाने के निर्णय को आनन-फानन में लिया गया निर्णय बताया है।
शिक्षाविद पंकज पीयूष ने कहा है कि वाहेगुरु शिव मंदिर और गुरु ग्रंथसाहिब का मंदिर स्थापना काल से ही गहरा जुड़ाव है। बरसों बाद गुरु ग्रंथ साहिब की चिता लोगों को कैसे आयी। मधुपुर वासियों के साथ बैठकर इस संबंध में अंतिम निर्णय लेना चाहिए।
उदासी पंथ ने बनवाया था मंदिर
मंदिर की स्थापना उदासी पंथ के प्रख्यात संत हरिदास द्वारा स्थानीय लोगों के सहयोग से कराया था। यहां शिव-पार्वती समेत देवी-देवताओं का पूजा पाठ के साथ गुरुग्रंथ साहिब की पूजा और पाठ होता था। गुरुग्रंथ साहिब की अरदास के साथ यहां लंगर और कड़ा प्रसाद वितरण का रिवाज वर्षों चला।
सिख संत हरिदास के समाधि लेने के उपरांत स्थानीय सिख परिवार के लोगों द्वारा गुरु ग्रंथसाहिब का पाठ के साथ कड़ा प्रसाद का वितरण किया जाता था। कालांतर में अधिकांश सिख परिवार मधुपुर से पलायन कर गए। बाद के दिनों में पंच मंदिर के पुजारी बाबा रामदास शर्मा गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ समय-समय पर करते थे। बाबा रामदास निरक्षर थे। बावजूद गुरु कृपा से गुरुवाणी का पाठ करते थे। बाबा रामदास के निधन के उपरांत शिव मंदिर में तो पूजा अर्चना की जाती है लेकिन गुरुग्रंथ साहिब का पाठ वर्षों से किसी ने नहीं किया। हालांकि मंदिर आनेवाले श्रद्धालु गुरु ग्रंथ साहिब की पूजा आस्था और श्रद्धा के साथ करते रहे।