आदिवासी व प्रकृति एक-दूसरे के पूरक
प्रखंड के पसिया गांव स्थित बुलाहट संस्था कार्यालय परिसर में रविवार को एवेन आखाड़ा समिति की ओर से आदिवासी दिवस के अवसर पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया। कोविड-19 के मद्देनजर सभी की थर्मल स्क्रीनिग से जांच की गई। गोष्ठी का उद्घाटन भारत प्राचीन आदिवासी जाति कल्याण समिति के केंद्रीय अध्यक्ष उमानाथ कोल ने किया। मौके पर प्रशांति मुर्मू ने कहा कि आदिवासी और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं।
संवाद सूत्र, मधुपुर, देवघर : प्रखंड के पसिया गांव स्थित बुलाहट संस्था कार्यालय परिसर में रविवार को एवेन अखाड़ा समिति की ओर से आदिवासी दिवस के अवसर पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया।
कोविड-19 के मद्देनजर सभी की थर्मल स्क्रीनिग से जांच की गई। गोष्ठी का उद्घाटन भारत प्राचीन आदिवासी जाति कल्याण समिति के केंद्रीय अध्यक्ष उमानाथ कोल ने किया। मौके पर प्रशांति मुर्मू ने कहा कि आदिवासी और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं। आदिवासियों के तमाम रीति-रिवाज प्रकृति के अनुरूप चलते हैं। इसी सोच के तहत संयुक्त राष्ट्र संघ के तमाम शोधकर्ताओं ने यह पाया कि प्रकृति को बचाना है, तो सबसे पहले आदिवासियों को बचाना होगा। निर्णय के आधार पर विश्व के आदिवासियों के संरक्षण, संवर्धन एवं संस्कृति को जीवित रखने के लिए विश्व के आदिवासियों के लिए नौ अगस्त का दिन निर्धारित किया गया। मौके पर केंद्रीय अध्यक्ष उमानाथ कौल ने कहा कि आज भी आदिवासियों के लिए विशेष कानून बनाने के बावजूद आदिवासी शोषित और हाशिए पर है। सभी आदिवासी समुदाय से अपील किया कि अपने संस्कृति को बचाएं। मौके पर आदिवासियों ने सरकार से मांग किया गया कि विश्व आदिवासी दिवस के दिन राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाए। मौके पर बुलाहाट संस्था की सचिव वेरणादत्त तिर्की ने कहा कि कोविड-19 के कारण विश्व आदिवासी दिवस पर किसी प्रकार का सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में बाल किशोर, युगल किशोर, प्रभुजोन, बहामुनी, पद्मिनी, दिनेश्वर, सुरेश मांझी, जीवन मुर्मू, बाबूलाल, मुनेश्वर समेत समिति के सदस्यों का योगदान अहम रहा।