अभियान::::प्रतिबंध के बावजूद धड़ल्ले से हो रहा पालीथिन का इस्तेमाल
प्रतिबंध के बावजूद धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा पालीथिन
अभियान::::प्रतिबंध के बावजूद धड़ल्ले से हो रहा पालीथिन का इस्तेमाल
लोगो के साथ बाटम
फोटो-1
संवाद सहयोगी, चतरा : सरकार पालीथिन और सिगल यूज उत्पादों को प्रतिबंधित कर दिया है। एक जुलाई से इसके आयात और निर्यात दोनों पर बैन लगा हुआ है। इसके बावजूद धड़ल्ले से इसका उपयोग हो रहा है। आम आदमी ही नही, बल्कि सरकारी दफ्तरों के अधिकारी व कर्मी भी राशन, सब्जी आदि में पॉलिथीन का उपयोग कर रहे है। शहरी क्षेत्रों में पूर्व से प्रतिबंधित पालीथिन व सिगल यूज प्लास्टिक पर सख्ती सिर्फ कागजों तक ही सिमट कर रह गया है। शहर में जहां पालीथिन का उपयोग आम है वहीं थर्मोकाल व प्लास्टिक के थाली व ग्लास भी पर्यावरण व स्वच्छता के दुश्मन बने हैं। शादी समारोह हो या फिर भोज भंडारा, हर जगह थर्माकाल व प्लास्टिक के बर्तन धड़ल्ले से उपयोग किए जा रहे हैं। थर्मोकाल के सिगल यूज बर्तनों का सही निपटारा नहीं होने के कारण यह बड़ी समस्या बनी है। शहर में छोटे-बड़े दुकानदार, ठेला आदि पर पालीथिन में ही सामान उपलब्ध करा रहे हैं। पालीथिन पर प्रतिबंध के बारे में पूछने पर फुटकर दुकानदार बताते हैं कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है। बताते चलें कि केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक जुलाई से प्लास्टिक कचरा प्रबंधन संशोधन अधिनियम जारी किया है। जिसका मकसद चिन्हित किए गए सिगल यूथ प्लास्टिक उत्पादों पर रोक लगाना है। यहां गांव देहात से आने वाले लोग भोज भंडारे के लिए थर्मोकाल के थाली व गिलास की खरीदारी कर रहे हैं। बताते चलें कि मिट्टी में प्लास्टिक की मात्रा की अधिकता से उसकी पानी सोखने की क्षमता प्रभावित होती है। जिससे उर्वरा शक्ति पर प्रतिकूल असर पड़ता है। यह पक्षियों, जलजीव के मौत का कारण बनता है।