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ग्रामीणों को जागरूक कर उजड़ने से बचाया पिछरी जंगल

संवाद सहयोगी पिछरी (बेरमो) जंगल बचाओ अभियान के तहत वर्ष-1996 में ग्राम वन प्रबंधन एवं संरक्षण्

By JagranEdited By: Published: Fri, 03 Jul 2020 07:02 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2020 07:02 PM (IST)
ग्रामीणों को जागरूक कर उजड़ने से बचाया पिछरी जंगल
ग्रामीणों को जागरूक कर उजड़ने से बचाया पिछरी जंगल

संवाद सहयोगी, पिछरी (बेरमो): जंगल बचाओ अभियान के तहत वर्ष-1996 में ग्राम वन प्रबंधन एवं संरक्षण समिति बनाकर विस्थापित नेता सूरज महतो ने ग्रामीणों को जागरूक कर पिछरी जंगल को उजड़ने से बचाया। अब यह जंगल विशाल रूप ले चुका है, जिसमें लहलहाते पेड़ों के बीच सैकड़ों मोर, तोता, खरगोश, जंगली सूअर व अन्य कई पशु-पक्षियों का बसेरा है। पिछरी ग्राम वन प्रबंधन एवं संरक्षण समिति बनाकर सूरज महतो ने अपने साथी हीरामन महतो, भगवान मांझी, देवराम टूडू, हेमलाल महतो, वासुदेव महतो, छोटेलाल मांझी, कुंवर मांझी, महेश स्वर्णकार आदि के साथ मिलकर पेटरवार प्रखंड के पिछरी जंगल को बचाने का बीड़ा उठाया। वर्ष 2002 में ग्राम वन प्रबंधन एवं संरक्षण समिति का उन्होंने वन प्रमंडल बोकारो कार्यालय से निबंधन कराया।

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--वन विभाग की मदद से कराया पौधारोपण : सूरज महतो ने समिति का निबंधन कराने के पहले ही वर्ष-1996 से ही पिछरी जंगलों में खुले जानवरों से छोटे-छोटे पौधों को चरने से बचाना शुरू कर दिया था। उसके बाद जब पौधे पांच-छह फीट लंबे हो गए तो उसे काटे जाने से बचाना शुरू किया। वर्ष-2002 में वन विभाग की मदद से उन्होंने पिछरी जंगल में सागवान, सखुआ, कटहल, सीधा, बहेरा, खैर, गम्हार आदि के हजारों पौधे लगवाए। सूरज महतो बताते हें वर्ष 2007- 08 में पिछरी के आसपास के जंगलों में आग लग गई, तो सैकड़ों पेड़ नष्ट हो गए। उसके बाद ग्रामीणों के सहयोग से पहरेदारी कर जंगल के पेड़ को काटे जाने व आग लगाने से बचाया। वर्तमान समय में पिछरी जंगल में हजारों पेड़ लहलहा रहे हैं।

--375 हेक्टेयर भूमि पर है पिछरी वनक्षेत्र : सूरज महतो ने बताया कि पिछरी वनक्षेत्र लगभग 375 हेक्टेयर भूमि पर है, जिसमें किए गए पौधारोपण से अब हजारों विशाल पेड़ मौजूद हैं। बताया कि सखुआ के पेड़ से बीज गिरने पर नए पौधे उग जाते हैं, लेकिन महुआ चुनने वाले अक्सर जंगल में आग लगा देते हैं, जिसकी चपेट से पौधे नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 1996 से पहले पिछरी जंगल में एक भी पेड़ नहीं बचा था। सभी पेड़ को कुछ लोगों ने काटकर नष्ट कर दिया था। स्थिति ऐसी थी कि स्थानीय लोगों को पिछरी जंगल से दातून तक नहीं मिलता था। ग्रामीणों के सहयोग से जागरूकता अभियान चलाया, तो पिछरी जंगल अब विशाल स्वरूप में मौजूद है।


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