वज्रपात ने छीनी रौशनी, हौसले ने दिखाई राह
सौरभ सिंह बेरमो चाहे कैसी भी परिस्थितियां हों हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हौसला रखेंगे
सौरभ सिंह,
बेरमो : चाहे कैसी भी परिस्थितियां हों हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हौसला रखेंगे तो मंजिल जरूर मिलेगी। जिदगी के इस फलसफे को सही साबित करते हैं बेरमो के जादूगोड़ा गांव निवासी 60 वर्षीय गणेश महतो। महज 38 साल की उम्र में आंखों की रोशनी खो जाने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी। अंधेरे में भी हौसले के प्रकाश से जीवन की गाड़ी को सफलतापूर्वक खींचा। रस्सी बुन खींचा परिवार का पहिया : गणेश पहले अपने गांव में खेती करने के अलावा चरवाहा का भी काम करते थे। वज्रपात से उनकी आंखों की रौशनी चली जाने के बाद हर ओर अंधेरा छा गया। किसी प्रकार की सरकारी मदद भी नहीं मिली। परिवार की माली हालत भी ठीक नहीं थी। तब सीमेंट की खाली बोरी से रस्सी बुनने का ख्याल आया। पत्नी के साथ मिलकर रस्सी बुनने का काम शुरू किया। इससे हर माह आठ से दस हजार तक की आय हो रही है। गणेश महतो अब लगभग 60 वर्ष के हो गए हैं। परिवार में पत्नी, बेटा व एक शादी शुदा बेटी है। वे अपने कार्य के बूते अपनी जिदगी से बेहद खुश हैं।
बच्चों को बनाया काबिल : बेटी को स्नातक तक की शिक्षा दिलाकर शादी करा दी। वहीं बेटा अशोक कुमार इंटर सांइस की पढ़ाई कराने के बाद पारा मेडिकल की शिक्षा दिलाई। उसे भी अस्पताल में रोजगार मिल गया है। फिलहाल वह प्राइवेट नर्सिग होम में जॉब कर रहा है। ऐसे छिन गई थी रोशनी : वर्ष 1998 में गांव के समीप के जंगल में मवेशी चराने के दौरान आकाशीय बिजली की कड़कने उनके जीवन में अंधेरा भर दिया। उनकी दोनों आंखों की रोशनी सदा के लिए चली गई। सरकार की ओर से सिर्फ दिव्यांगता पेंशन मिलती है। इसके अलावा अन्य वित्तीय सहायता या अनुदान प्राप्त नहीं हुआ है।