श्रमशक्ति के दम पर लहलहाएगी गांवों की धरती
दूसरे राज्यों से लौट रहे मजदूर फिलहाल भले समस्याओं से जूझ रहे हैं लेकिन आनेवाले समय में ये अपनी समस्याओं का निदान करने के साथ ही राज्य के लिए भी नए अवसर उत्पन्न करेंगे।
फैयाज आलम 'मुन्ना', बेरमो: दूसरे राज्यों से लौट रहे मजदूर फिलहाल भले समस्याओं से जूझ रहे हैं, लेकिन आनेवाले समय में ये अपनी समस्याओं का निदान करने के साथ ही राज्य के लिए भी नए अवसर उत्पन्न करेंगे। इनका हौसला इसकी गवाही दे रहा है। श्रमशक्ति के दम से गांवों की धरती फसलों से लहलहाएगी। लॉकडाउन के दौरान तेलंगाना में फंसे नावाडीह प्रखंड के 64 मजदूर जब बीते 3 मई को पहली श्रमिक स्पेशल ट्रेन से वापस लौटे तो उनमें ज्यादातर अपने गांव में ही रहकर खेती करने के जज्बे से लबरेज थे। ये सभी नावाडीह स्थित सेंटर में क्वारंटाइन अवधि पूरी कर अब अपने-अपने गांव-घर पहुंच चुके हैं। उक्त मजदूरों में पोटसो के गोविद महतो, एतवारी महतो व डेगलाल सिंह का कहना है कि अपने गांव-घर व परिवार को छोड़कर कौन अन्य प्रदेश जाना चाहता है? गांव व आसपास काम नहीं मिलने के कारण ही बाहर जाना पड़ा था, लेकिन अब वे लोग अपने गांव में ही रहते हुए खेती को जीवन का आधार बनाएंगे।
खेती को राज्य सरकार दे उद्योग का दर्जा: तेलंगाना से पेटरवार प्रखंड के पिछरी ग्राम स्थित टुंगरीकुल्ही पहुंचे कल्लू सिंह का कहना है कि राज्य सरकार खेती को उद्योग का दर्जा देकर बढ़ावा दे तो गांव के लोगों को काम करने के लिए बाहर जाने को मजबूर नहीं होना पड़ेगा। फिलहाल तो मानसून का इंतजार है। कहा कि स्थानीय युवाओं को भी खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
सिचाई की सुविधा भी है चुनौती: अन्य राज्यों से गोमिया पहुंचे मजदूरों में कुंदा, बड़कीपुन्नू, टीकाहारा कसियाडीह, बौराहाटोला, होसिर आदि के निवासी हैं। उनमें भोला महतो, अनिल मुर्मू, सोहराय मांझी आदि का कहना है कि यदि गोमिया के गांवों में सिचाई की समुचित सुविधा उपलब्ध करा दी जाए तो बारहों मास खेती की जा सकती है। फिलहाल सिचाई की सुविधा के अभाव में इस क्षेत्र के किसान केवल वर्षा आधारित खेती ही कर पाते हैं। वहीं मानसून की दगाबाजी से फसल चौपट हो जाती है। पिछले तीन-चार साल से अनावृष्टि झेलते हुए इस क्षेत्र के किसानों की हालत पस्त हो गई है, जिसके कारण उनके घरों के युवा अन्य राज्यों में जाने को मजबूर हुए। किसान से मजदूर और मजदूर से फिर किसान बनने की चाहत रखनेवाले इन लोगों का कहना है कि सरकार खाद, बीज व कृषि के संसाधन उपलब्ध कराए तो यहां की दशा ही बदल देंगे।