काशीपुर के राजा की सलाह पर टिकैत ने राजनीति से बनाई दूरी
बोकारो बाकारो इस्पात नगर के उत्तरी क्षेत्र के विस्थापित गांव महुआर के जमींदार टिकैत मनमो
बोकारो: बाकारो इस्पात नगर के उत्तरी क्षेत्र के विस्थापित गांव महुआर के जमींदार टिकैत मनमोहन सिंह ने देश की आजादी के पश्चात 1952 चुनाव में स्वतंत्र पार्टी से खड़ा हुए। लेकिन काशीपुर के राजा शंकरी प्रसाद की सलाह पर इन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया और लोगों की सेवा व क्षेत्र के विकास कार्य में ही लगे रहे। वे लोगों के बीच खासे लोकप्रिय थे। इसलिए जनप्रतिनिधि इनसे समर्थन हासिल करना नहीं भूलते थे। सक्रिय राजनीति से दूर रहने के बावजूद क्षेत्र की राजनीति इनके इर्द-गिर्द घूमती थी।
-परिजनों ने राजनीति से बनाई दूरी
टिकैत मनमोहन सिंह महुआर, रानीपोखर, पिपराटांड़, बैद्यमाराय, कनफट्टा, महेशपुर, उकरीद, हरला सहित 21 मौजा के जमींदार थे। वे 21 मौजा के गांवों का कुशल प्रबंधन करते थे। अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वहन करते थे। काशीपुर के राजा से इनका संपर्क था। इनके पुत्र ठाकुर लक्ष्मी नारायण सिंह, रमेश्वर नारायण सिंह व नंद लाल सिंह ने राजनीति से दूरी बनाई। तीनों भाई समाजसेवा में लगे रहे। इनकी मृत्यु हो चुकी है। स्व. ठाकुर लक्ष्मी नारायण सिंह के पुत्र ठाकुर मणि सिंह को भी राजनीति से लगाव नहीं है। वहीं एक पुत्र स्व. राजन सिंह की मृत्यु हो चुकी है। स्व.रमेश्वर नारायण सिंह के पुत्र टिकैत रामाकांत सिंह की भी मृत्यु हो गई है। इनके छोटे पुत्र युवराज सिंह बीएसएल में कार्यरत थे। स्व. नंद लाल सिंह के पुत्र पृथ्वी राज सिंह को बीएसएल के सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। वहीं छोटे पुत्र राजकपूर सिंह को बीएसएल में नौकरी नहीं मिली।
-समस्याओं से जूझने को विवश
बोकारो इस्पात संयंत्र के निर्माण के समय इनकी जमीन ले ली गई। परिवार के दो सदस्य युवराज सिंह एवं पृथ्वी राज सिंह को ही बीएसएल में नियोजन मिला। अन्य सदस्यों को नियोजन नहीं मिला। पृथ्वी राज सिंह ने कहा कि 21 मौजा की व्यवस्था करने वाले परिवार ने प्लांट निर्माण के लिए जमीन दिया। लेकिन आज परिवार के सदस्य समस्याओं से जूझने को विवश हैं। ऐश पांड की छाई से गांव के लोग परेशान हैं। यहां न तो लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है और न ही प्रबंधन की ओर से सुविधा प्रदान की जा रही है। उन्होंने बताया कि दादा टिकैत मनमोहन सिंह 1952 के चुनाव में खड़ा हुए। लेकिन काशीपुर के राजा की सलाह पर नाम वापस लेकर बैठ गए। आज जनप्रतिनिधि भी परिवार की सुध नहीं लेते हैं। चुनाव के समय ही इनका दर्शन होता है।