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बेजान गांव में जान डाल 300 को दिया रोजगार, रुक गया पलायन

झारखंड के इस गांव से पलायन अब रुक गया है। गांव के करीब 61 परिवारों के 300 लोगों को रोजगार मुहैया हो गया है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 06:33 PM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 06:40 PM (IST)
बेजान गांव में जान डाल 300 को दिया रोजगार, रुक गया पलायन
बेजान गांव में जान डाल 300 को दिया रोजगार, रुक गया पलायन

बोकारो, बीके पाण्डेय। झारखंड के बोकारो जिले के सोनाबाद गांव से पलायन अब रुक गया है। लूम से कपड़ा बुनने का हुनर सीख चुके बेरोजगार युवा अब तरक्की की राह पकड़ चुके हैं। गांव के करीब 61 परिवारों के 300 लोगों को रोजगार मुहैया हो गया है। इस गांव में आए बदलाव के वाहक बने अजान अंसारी। उन्होंने बेजान सोनाबाद में मानो जान फूंक दी। वह भी महज तीन वर्षों में।

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सहकारिता के आधार पर चल रहे अजान के वस्त्र निर्माण केंद्र में गांव के महिला-पुरुष मिलकर काम करते हैं। हर व्यक्ति को पांच से छह हजार रुपये प्रतिमाह आमदनी होती है। इससे उन परिवारों का अर्थतंत्र बदल चुका है। इस काम में उन्हें सरकार ने भी मदद दी है। उनके लूम में बने कपड़े कई अस्पतालों व प्रतिष्ठानों में जाते हैं। यहां तीस लूम पर कपड़ा बुनाई हो रही है।

अजान ने बुनकर सोसाइटी से जुड़कर रांची में वस्त्र निर्माण के गुर सीखे थे। 2015 में केंद्र सरकार की समेकित सहकारी विकास परियोजना के तहत उनको पूंजी के रूप में छह लाख रुपये की मदद मिली। उनकी मेहनत व सरकार के सहयोग ने ऐसा रंग जमाया कि जिस गांव में रोजगार नहीं था, वहां आज लूम चलाने वाले युवाओं की लाइन लगी है। युवा जो बाहर जाकर मजदूरी करते थे, अब खेती के साथ कपड़ा बना रहे हैं। अजान का सपना था कि गांव में युवाओं को रोजगार दिला सकें, वह अब आकार ले चुका है। अजान के लूम में तैयार धोती, साड़ी, चादर रांची के प्रमुख अस्पतालों में जाती है।

स्थानीय बाजार के प्रमुख कपड़े के शोरूम में भी इनकी आपूर्ति होती है। अब वह शहर में अपना एक रिटेल आउटलेट खोलने के लिए प्रयासरत हैं, ताकि एक ब्रांड बनाकर कपड़ों की अलग से मार्केटिंग कर सकें। अजान कहते हैं कि गांव के बच्चे महज कुछ हजार के लिए बाहर चले जाते थे। खुशी है कि गांव में काम मिलने से पलायन रुका है। राज्य सरकार की संस्था झारक्राफ्ट हमारे केंद्र के बने कपड़ों की मार्केटिंग कर रही है।

हमारी तो दुनिया ही बदल गई

गांव के जिलान अंसारी कहते हैं कि रोजगार के लिए हम तो बाहर गए थे। पता चला कि यहां ही बुनकर का काम मिलेगा तो लौट आए। अजान ने हमारी दुनिया बदल दी। शकीला कहती हैं कि गांव में ही रोजगार मिल गया। इससे बेहतर क्या होता। परिवार का अर्थतंत्र सुधर गया।

केंद्रीय टीम ने प्रयोग के तौर पर अजान की समिति का चयन किया। परिणाम अच्छा निकला। अजान के यहां उत्पादित कपड़ों की गुणवत्ता अच्छी है। इसकी बेहतर मार्केटिंग का हर प्रयास हो रहा है। अजान ने मेहनत और लगन से मुकाम पाया है।

-राकेश कुमार, जिला सहकारिता पदाधिकारी, बोकारो।


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