आटसोर्सिंग मजदूरों में अच्छे दिन की आस जगी
बेरमो कोयला खनन व विपणण के कार्य सीधे तौर पर निजी कंपनियों से कराए जाने की केंद्र सरक
बेरमो : कोयला खनन व विपणण के कार्य सीधे तौर पर निजी कंपनियों से कराए जाने की केंद्र सरकार की नीति से उन मजदूरों में अच्छे दिन की आस जगी है, जो कोल माइंस में आटसोर्सिंग के तहत कार्य कर रहे हैं। उन मजदूरों का मानना है कि कोयला उद्योग में बड़ी निजी कंपनियों के आगमन से प्रतिस्पर्धा का लाभ उन्हें मिलेगा। जबकि फिलहाल स्थानीय व क्षेत्रीय ठेका कंपनियां उन्हें शोषण का शिकार बना रही हैं। कोल इंडिया की अनुषंगी इकाइयों सीसीएल, बीसीसीएल, ईसीएल आदि की खदानों के विस्तार सहित अन्य कार्य बीते कई वर्षों से आउटसोर्सिंग सह ठेका कंपनियों के अधीनस्थ मजदूरों से लिए जा रहे हैं। उन मजदूरों से स्थायी प्रवृत्ति के कार्य कराए जाने के बावजूद फिलहाल न तो उचित मजदूरी दी जा रही है और न ही सुविधा। जबकि कोल इंडिया की हाई पावर कमेटी के निर्देशानुसार उन कामगारों को प्रतिमाह 26 दिन ड्यूटी के एवज 12 हजार 272 रुपये वेतन सहित मेडिकल, आवास, पीएफ, प्रमाणपत्र आदि की सुविधा दी जानी है। आश्वासन के सिवाय कुछ भी नहीं मिला : आटसोर्सिंग मजदूरों को समान काम के एवज समान वेतन एवं सुविधा दिए जाने की मांग वर्षों से श्रमिक संगठनों की ओर से की जा रही है, लेकिन अबतक उन्हें सिवाय आश्वासन के कुछ भी हासिल नहीं हो पाया। बेरमो कोयलांचल में सीसीएल की जहां कहीं भी खदान विस्तार की जा रही है अथवा नई खदान खोली जा रही है, उसके कार्य आउटसोर्सिंग के तहत ठेका कंपनियों से ही कराए जा रहे हैं।
हाई पावर कमेटी के निर्देश पर अमल नदारद : बेरमो कोयलांचल स्थित कारो, अमलो, कोनार-खासमहल आदि आउटसोर्सिंग पैच में जिन ठेका कंपनियों के काम चल रहे हैं, उनमें एक-दो को छोड़कर लगभग सभी कंपनी अपने मातहत मजदूरों को कोल इंडिया की हाई पावर कमेटी के निर्देशानुसार न तो वेतन दे रही है और न ही अन्य सुविधा। यहां तक कि आठ घंटे की बजाय 12-12 घंटे की शिफ्ट में काम कराने के बावजूद साप्ताहिक अवकाश की सुविधा भी नहीं दी जाती। साथ ही असुरक्षित वातावरण में उनसे काम लिया जाता है। जबकि उन्हें स्थायी मजदूरों को मिलने वाले वेतन का महज पांचवां हिस्सा ही मिल पाता है। इसके बावजूद वह सभी मजदूर पेट भरने के लिए काम करने को मजबूर हैं। --हक मांगने पर खानी पड़ती जेल की हवा : सीसीएल में फिलहाल करीब बीस हजार ठेका मजदूर काम कर रहे हैं। जब भी वे अपने हक की लड़ाई लड़ते हैं या फिर कोई यूनियन उनकी मांगों को उठाता है, उसे हर तरह से परेशान किया जाता है। चार वर्ष पूर्व बरकास्याल एरिया में ठेका मजदूरों की हक की लड़ाई करने के कारण एटक के वरीय नेता रमेंद्र कुमार सहित सुभाष यादव, विनोद मिश्रा, रामविलास यादव एवं विध्यांचल प्रसाद को करीब 40 दिनों तक हजारीबाग सेंट्रल जेल की हवा खानी पड़ी थी। वर्जन
कोल इंडिया की हाई पावर कमेटी के अनुमोदन पर कोल कंपनियों ने तो बढ़ी दर से ठेका मजदूरों को वेतन भुगतान करने का निर्देश दे रखा है। इसके बावजूद कई आउटसोर्सिंग कंपनियां मजदूरों का शोषण कर रही हैं। हालांकि आउटसोर्सिंग कंपनियों एवं ठेकेदारों के अधीन कार्यरत कामगारों को सीसीएल के मजदूरों की तरह ही सुविधा देने की मांग सलाहकार समिति की बैठकों में अक्सर उठाई जाती रही है।
- राजेश कुमार सिंह, महामंत्री, राष्ट्रीय कोयला मजदूर यूनियन सह जेबीसीसीआइ सदस्य