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समय पर देते ध्यान तो नहीं जाती ऑक्सीजन की कमी से जान

बीके पाडेय बोकारो आज जिस प्रकार ऑक्सीजन के लिए मारामारी हो रही है यदि कोरोना की पहली लहर में सरकार ध्यान देती तो दूसरी लहर में लोगों की जान ऑक्सीजन की कमी से न जाती।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Apr 2021 12:48 AM (IST)Updated: Tue, 20 Apr 2021 12:48 AM (IST)
समय पर देते ध्यान तो नहीं जाती ऑक्सीजन की कमी से जान
समय पर देते ध्यान तो नहीं जाती ऑक्सीजन की कमी से जान

बीके पाडेय, बोकारो : आज जिस प्रकार ऑक्सीजन के लिए मारामारी हो रही है, यदि कोरोना की पहली लहर आते ही सजग हो जाते तो ऐसे भयावह हालात नहीं होते। सरकारें एक दूसरे पर तोहमत लगा रही हैं । सच्चाई यह है कि राज्य सरकारों व तंत्र ने इस दिशा में ध्यान नहीं दिया । झारखंड की बात करें तो छोटे अस्पतालों को छोड़ दें तब भी पहले के तीन मेडिकल कॉलेज और नए खुले तीन मेडिकल कॉलेजों में 30 से 50 लाख के खर्च पर ऑक्सीजन प्लाट लग जाता। एकीकृत ऑक्सीजन सप्लाई सिस्टम तैयार हो जाता। तब यह स्थिति कतई न होती। बोकारो जनरल अस्पताल को देखें तो यहा इसी प्रणाली के कारण ऑक्सीजन की कमी नहीं है। प्रत्येक मेडिकल कॉलेज में साल में इतनी राशि का फर्नीचर खरीद लिया जाता है, लेकिन जीवन रक्षक ऑक्सीजन के लिए सार्थक कदम न उठाए गए। अब कोरोना काल में स्थिति बिगड़ी है तो राजधानी राची समेत कई जिले बोकारो पर नजर लगाए हैं। राज्य में सबसे अधिक मरीजों की भर्ती होने से लेकर उनकी जाच और उनके इलाज का काम रिम्स में होता है। धनबाद में मेडिकल कॉलेज है, लेकिन यहा भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। यदि इसकी व्यवस्था होती तो रिम्स व शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज अस्पताल धनबाद के मरीज ऑक्सीजन की किल्लत न झेलते। यह है प्लाट लगाने का खर्च ; 500 से 1000 बेड के अस्पतालों के लिए 10 केएल का ऑक्सीजन प्लाट सामान्य समय के लिए उपयुक्त है । इसमें 30 लाख के उपकरण लगते हैं। लगाने में 15 से 20 लाख रुपए इंस्टॉलेशन चार्ज लगता है। मात्र दो माह का समय लगता है। बिहार, बंगाल के कई अस्?पतालों में यह व्?यवस्?था है। यहा बोकारो जनरल अस्पताल में है। बियाडा औद्योगिक क्षेत्र में ऑक्सीजन प्लाट चलाने वाले राकेश कुमार गुप्ता का कहना है कि उनकी कंपनी झारखंड स्टील ऑक्सीजन प्लाट लगाने से लेकर उसके अनुरक्षण का काम करती है। फिलहाल बिहार के दानापुर , बक्सर में प्लाट को स्थापित कराने एवं उसके संचालन का काम किया है। बियाडा में उनकी इकाई पर उन्हें औद्योगिक सिलिंडर बनाने की अनुमति है।

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------ 2020- 21 में बिकी थी 6116 टन मेडिकल ऑक्सीजन

बोकारो से प्रत्येक दिन लगभग 700 से 800 टन तरल ऑक्सीजन देश की अलग-अलग औद्योगिक इकाइयों को बेचा जाता है । वहा से वर्ष 2020- 21 में मात्र 6116 टन तरल ऑक्सीजन मेडिकल उपयोग के लिए बेची गई । पूरे वर्ष में प्रत्येक दिन की माग औसतन 16 से 17 टन ही थी । अप्रैल 2021 माह में कोरोना चरम पर है और ऑक्सीजन की माग बढ़ी है, तब भी 40 टन के खरीदार ही आए।

सिलिंडर बनाने का खर्च व बिक्री : एक टन तरल आक्सीजन बॉटलिंग करने वाली कंपनिया आइनोक्स या लिंडसे या फिर सेल से 6300 रुपये में खरीदती हैं। इसे सात क्यूबिक मीटर के 100 सिलिंडर में भरा जाता है। बॉटलिंग , प्रोसेसिंग व अन्य खर्च 100 रुपये होता है। बाजार में बॉटलिंग प्लाट के आपूíतकर्ता 250 रुपये से लेकर 300 रुपये तक में बेचते हैं। इस सिलिंडर से चौबीस घटे से अधिक गैस एक व्यक्ति को दे सकते हैं। कोरोना को हराना है : ऑक्सीजन के लिए हाहाकार, बोकारो में नहीं लेनदार

जागरण संवाददाता, बोकारो : कोरोना के बढ़ते संक्रमण से कई राज्य ऑक्सीजन की कमी का शोर कर रहे, मगर बोकारो में ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा है पर लेने वाले नहीं आ रहे। अकेले बोकारो स्टील प्लाट रोज 90 टन तरल मेडिकल ऑक्सीजन देने को तैयार है। मगर 18 अप्रैल तक उपलब्ध 1620 टन के मुकाबले माग सिर्फ 765 टन की थी। 855 मैट्रिक टन तरल ऑक्सीजन की खरीद करने वाला नहीं मिला। वैसे अब यहा से ऑक्सीजन ट्रेन से भेजने की भी तैयारी हो गई है। इसके लिए रेलवे की ओर से वैगन व बोकारो स्टील की ओर से गैस का इंतजाम हो रहा है।

दरअसल, सूबे की आवश्यकता को देखते हुए गैस की नहीं सिलिंडर व अस्पताल में मैनपावर की कमी है। बोकारो स्टील में लगभग 1750 टन ऑक्सीजन का उत्पादन प्रतिदिन होता है। सात सौ टन ऑक्सीजन बोकारो स्टील प्लाट में ही उपयोग होती है तो करीब आठ सौ टन अन्य काम के लिए व गैस उत्पादन करने वाली छोटी इकाइयों को दी जाती है। सरकार के निर्देश के बाद मेडिकल गैस की रिफिलिंग करने वाली इकाई को अधिक से अधिक गैस दी जा रही है। बोकारो से आक्सीजन बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र को भी भेजी जा रही है। यह आपूíत सेल की पार्टनर कंपनी आइनोक्स एयर प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड कर रही है। बीजीएच में गैस की कमी नहीं, सीधे होती आपूíत :

बोकारो जनरल अस्पताल में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। कंपनी को बोकारो स्टील व बीजीएच की गैस संबंधी जरूरत को पूरा करने के बाद ही बेचने का अधिकार है। अस्पताल में बाकायदा ऐसा संयंत्र लगा है जिससे हर बेड तक पाइप से ऑक्सीजन की आपूíत होती है। बोकारो में तीन कंपनियों के पास मेडिकल सिलिंडर बनाने का लाइसेंस हैं। इनमें बोकारो गैसेज, मा चित्रलेखा, ईस्टर्न ऑक्सीजन शामिल हैं। इसी प्रकार राची में महेश्वरी मेडिकल, एस के इंडस्ट्री और ऑक्सीजेड मेडिकल ऑक्सीजन की आपूíत करती हैं। राज्य के दो स्टील प्लाट से होता है ऑक्सीजन का उत्पादन

राज्य में टाटा स्टील व बोकारो स्टील सबसे बड़ी ऑक्सीजन उत्पादक हैं। एक ओर जहा बोकारो स्टील के ऑक्सीजन का प्रबंधन आइनोक्स एयर प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड करता है तो टाटा स्टील में इसका प्रबंधन लिंडसे इंडिया और एयर वाटर जमशेदपुर करते हैं। निजी कंपनिया स्टील प्लाट की जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के बाद शेष छोटी इकाइयों को देती हैं। इन्हीं तीन कंपनियों पर छोटी ऑक्सीजन इकाइया निर्भर हैं। बोकारो स्टील के आकड़े एक नजर में

1 से 18 अप्रैल के बीच बोकारो इस्पात संयंत्र ने अलग-अलग राज्यों के उन इकाइयों को ऑक्सीजन दी जहा से तरल ऑक्सीजन को सिलिंडर में भरा जाता है। 1. झारखंड --158 टन

2. उत्तर प्रदेश --154 टन

3. बिहार --128 टन

4. पश्चिम बंगाल - 20 टन

5. महाराष्ट्र -- 19 टन

कुल : 479 टन --- ऐसे अस्पतालों को भी तरल ऑक्सीजन दी गई है जो स्वयं तरल से उसे गैस में परिवíतत कर लेते हैं।

1. उत्तर प्रदेश --76 टन

2. बिहार --57 टन

3. बंगाल - 9 टन

4. मध्य प्रदेश - 108 टन

5. बोकारो जनरल अस्पताल - 35 मैट्रिक टन

कुल - 285 मैट्रिक टन

--------- कोट :

बोकारो स्टील में मेसर्स आईनोक्स संचालित ऑक्सीजन संयंत्र में 80 टन प्रति दिन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन उपलब्?ध है। इसके अलावा रोज 10 टन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन बीएसएल का कैप्टिव ऑक्?सीजन प्लाट भी उपलब्?ध करा रहा है।

मणिकात धान, प्रमुख संचार बोकारो इस्पात संयंत्र कोट ::

ऑक्सीजन एक्सप्रेस के लिए वैगन सहित अन्य तैयारी हो रही है। आदेश प्राप्त होते ही आगे की प्रक्रिया कर ऑक्सीजन भेज दी जाएगी। बोकारो रेलवे की ओर से तैयारी पूर्ण कर ली गई है।

प्रभात कुमार, क्षेत्रीय प्रबंधक (रेलवे), बोकारो


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