चास की 75 वर्षीय विमला ने लिया संथारा
जागरण संवाददाता बोकारो बीते दो माह पूर्व कोरोना को मात देकर स्वस्थ हुई 75 वर्षीय विमला द
जागरण संवाददाता, बोकारो :
बीते दो माह पूर्व कोरोना को मात देकर स्वस्थ हुई 75 वर्षीय विमला देवी चौराड़िया ने संथारा लिया है। बीते छह दिन से उन्होंने भोजन और पानी लेना बंद कर दिया है। संथारा लेने से पहले उन्हें 15 दिन तक रांची के एक अस्पताल में वेंटिलेटर पर रखा गया था। वहां चिकित्सकों ने जवाब दे दिया। इसके बाद उन्हें बोकारो लाया गया। यहां चास के नर्सिंग होम में एक दिन रखने के बाद चिकित्सकों के परामर्श पर यह कहते हुए घर लाया गया कि अंतिम समय है। घर पर ही देखभाल होगी। उन्होंने स्वयं संथारा का निर्णय लिया और परिवार के सदस्यों को इससे अवगत कराया। इसके लिए जैन समाज के संतों से अनुमति ली गई। तब से वह शरीर त्यागने के लिए तप कर रही है। उनके पुत्र धर्मेंद्र जैन का कहना है कि हम संथारा को अपनी आंखों के सामने देख रहे हैं। यह आसान नहीं है, लेकिन हम खुश हैं क्योंकि उनकी मां मोक्ष प्राप्त कर रही हैं। उनकी मां के लिए संथारा का यह छठा दिन है। धर्मेद्र ने कहा, हम प्रार्थना कर रहे हैं कि वह एक स्वस्थ शरीर और मजबूत संकल्प शक्ति के साथ जीवन के मूल सिद्धांतों, अलग-अलग शरीर अलग-अलग आत्माओं को आत्मसात कर अपने लक्ष्य को पूरी तरह से जागृत अवस्था में प्राप्त करें। फिलहाल विमला देवी चास स्थित एमडीए हाईट्स में रह रही हैं। उनके संथारा को लेकर परिवार के सभी सदस्य, रिश्तेदार, दोस्त उनके पास बैठकर मंत्र और भजन उन्हें सुना रहे हैं। विमला देवी के पति मूलचंद चौराड़िया की मृत्यु पहले हो चुकी है। उनके तीन बेटे-मदन, धर्मेद्र और सुभाष चौराड़िया व्यवसायी हैं। -------------------
क्या है संथारा : जैन समाज में संथारा मृत्यु को निकट जानकर शरीर त्यागने की एक प्रथा है। इसमें जब व्यक्ति को ऐसा लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है। दिगम्बर जैन शास्त्र अनुसार समाधि या संथारा कहा जाता है। इसे ही श्वेतांबर साधना पद्धति में संथारा कहा जाता है। मान्यता है कि संथारा के माध्यम से शरीर का त्याग करने वाले मनुष्य को जीवन-मृत्यु से मुक्ति मिल जाती है।