रियासी के गांव बक्कल स्थित मंदिर में होती है ढोल व ऐरन की पूजा
जम्मू कश्मीर सहित देशभर के मंदिरों ं मूर्तियों और पिडियों को देवी देवताओं के रूप में पूजा जाता है लेकिन रियासी जिले में एक ऐसा मंदिर है जहां ढोल और ऐरन को देवता के रूप में पूजा जाता है। यह स्थान ढोल देवता के नाम से प्रसिद्ध है। लोगों में इस स्थान और ढोल देवता के प्रति इतनी आस्था है कि वे मानते हैं कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद जरूर पूरी होती है। इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। बुजुर्गो के अनुसार बाबा सिद्धड़ को ढोल देवता के साक्षात दर्शन होते थे।
राजेश डोगरा, रियासी : जम्मू कश्मीर सहित देशभर के मंदिरों ं मूर्तियों और पिडियों को देवी देवताओं के रूप में पूजा जाता है, लेकिन रियासी जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहां ढोल और ऐरन को देवता के रूप में पूजा जाता है। यह स्थान ढोल देवता के नाम से प्रसिद्ध है। लोगों में इस स्थान और ढोल देवता के प्रति इतनी आस्था है कि वे मानते हैं कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद जरूर पूरी होती है। इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। बुजुर्गो के अनुसार, बाबा सिद्धड़ को ढोल देवता के साक्षात दर्शन होते थे।
बक्कल के पूर्व सरपंच कपूर सिंह के अनुसार, उनके पूर्वज बताते थे कि काफी समय पहले रियासी से करीब 28 किलोमीटर दूर बक्कल गांव में नाग राजपूत नाम एक विद्वान व शक्तिशाली व्यक्ति था, जिन्हें बाबा सिद्धड़ कहा जाता था। एक दिन सिद्धड़ (मुशक) बकरे की खाल के एक बैग में अनाज भरकर उसे घराट पर पिसवाने रियासी की तरफ जा रहे थे कि रास्ते में पड़ने वाले माड़ी गांव में जब वह पहुंचे तो वहां एक लौहार लकड़ी पर लगाए गए लोहे के एक टुकड़े, जिसे ऐरन कहा जाता है, उस पर लोहे के दूसरे टुकड़े को पीटकर औजार बना रहा था। सिद्धड़ को देखकर लौहार ने उनसे कहा कि जरा मदद करवाते हुए तुम भी हथौड़े की कुछ चोटें लोहे पर कर दो। सिद्धड़ बाबा ने मुशक उठाएं ही एक हाथ से हथौड़े की चोट लोहे पर की तो ऐरन जमीन में ही धंस गई, जिसे बाद में निकाला गया।
माड़ी में रहने वाले लौहार परिवार के उन्हीं वंशजों के मुताबिक रियासी सावलाकोट क्षेत्र के कुछ लोग माड़ी से ऐरन चोरी कर सावलाकोट ले गए थे। ऐरन के गायब हो जाने पर उस लौहार परिवार के विद्वान बुजुर्ग ने घर के समीप भीम देवता के स्थान पर रखे दो ढोलों में से एक ढोल को बजाना शुरू किया। ढोल बजते ही सावलाकोट में रखी ऐरन इधर-उधर उछलने लगी। यह देख कर चोरी करने वाले लोग भयभीत हो गए। उन्होंने माड़ी में बुजुर्ग लौहार के पास पहुंचकर क्षमा-याचना करते हुए उपाय पूछा। बुजुर्ग ने कहा कि ऐरन को पालकी में रखकर वापस माड़ी मे अपने स्थान पर पहुंचाओ, लेकिन ध्यान रहे कि रास्ते में पालकी को जमीन पर नहीं रखना। इसके बाद माड़ी भीम देवता स्थान से एक ढोल सावलाकोट ले जाया गया, फिर ऐरन को पालकी में रखकर उस ढोल को बजाते हुए वे लोग माड़ी की तरफ चल पड़े, लेकिन रास्ते में बक्कल पहुंचने पर पालकी का वजन इतना अधिक हो गया कि मजबूरन पालकी को जमीन पर रखना पड़ा, जिसे फिर से नहीं उठाया जा सका। पालकी वहीं पर छोड़ कर वे लोग माड़ी पहुंचे और लौहार बुजुर्ग को सारी बात बताई। इस पर बुजुर्ग ने कहा कि ऐरन और ढोल अब बक्कल में ही रख दो। इस तरह वह देवस्थान बन गया और वहां पर छोटा सा मंदिर भी बना दिया गया। लेकिन अब वहां नया तथा भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है।
बाबा सिद्धड़ के ही वंशज हैं
मंदिर के पुजारी : इस स्थान के पुजारी बाबा सिद्धड़ के ही वंशज हैं। इस मंदिर में रखे गए ढोल को देवता के रूप में पूजने के साथ ही ऐरन की भी पूजा की जाती है। बक्कल के इस देवस्थान की देखरेख करने वाले स्थानीय पूर्व सरपंच कपूर सिंह के मुताबिक इस स्थान के प्रति लोगों में अटूट विश्वास और श्रद्धा है। यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
मंदिर में महिलाओं का आना है वर्जित
ढोल देवता मंदिर में महिलाओं का आना वर्जित है। इसके बारे में बताया जाता है कि बाबा सिद्धड़ को ढोल देवता के साक्षात दर्शन होते थे। दोनों मंदिर का एक दरवाजा बंद कर चौपड़ खेलते थे। एक दिन सिद्धड़ की पत्नी ने मंदिर में झांककर दोनों को चौपड़ खेलते देख लिया, जिससे उसकी मौत हो गई। इस कारण इस मंदिर में महिलाओं का आना वर्जित है। इस स्थान पर प्रसाद के रूप में गुड चढ़ाया जाता है।