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आज से बंद हो जाएंगे पाडर के सभी मंदिरों के कपाट

बलवीर सिंह जम्वाल किश्तवाड़ आज सावन महीने की संक्रांति से पाडर इलाके के सभी मंदिरों

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 Jul 2020 09:36 AM (IST)Updated: Thu, 16 Jul 2020 09:36 AM (IST)
आज से बंद हो जाएंगे पाडर के सभी मंदिरों के कपाट
आज से बंद हो जाएंगे पाडर के सभी मंदिरों के कपाट

बलवीर सिंह जम्वाल, किश्तवाड़ :

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आज सावन महीने की संक्रांति से पाडर इलाके के सभी मंदिरों के कपाट बंद हो जाएंगे और भादो महीने की संक्रांति के दिन मंदिर की साफ-सफाई तथा पूजा-अर्चना के बाद खोले जाएंगे। लेकिन मचैल माता का मंदिर कुछ दिनों के लिए बंद होगा।

पहले कोरोना की वजह से सरकार द्वारा सभी छोटे-बड़े मंदिरों को बंद करने के आदेश जारी किए गए थे, लेकिन कुछ समय पहले कुछ छोटे मंदिरों को खोलकर उसमें पूजा करने की इजाजत दी गई। परंतु किसी भी मंदिर में भीड़भाड़ इकट्ठी होने से अभी भी मनाही है। अभी लोग मंदिरों में जा ही रहे थे कि सावन का महीना शुरू हो गया और मंदिरों को बंद कर दिया गया।

किश्तवाड़ जिला के पाडर इलाके की यह परंपरा है कि सावन के महीने में लोग अपने आपको शुद्ध नहीं समझ कर मंदिरों में पूजा-पाठ बंद कर देते हैं और जब भादो का महीना आता है तो एक उत्सव के साथ मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। यह पाडर इलाके की सदियों से चली आ रही परंपरा है। मंदिर बंद करने के साथ इलाके के लोग और भी बहुत सारी बातों का परहेज करते हैं। गर्मियों के दिनों में लोग अपने माल मवेशी पहाड़ों पर बने ढोक, जिनको पाडरी भाषा में पोहाली कहते हैं, वहां ले जाते हैं। माल मवेशी के साथ गांव के हर घर का एक सदस्य जाता है। जब सावन का महीना आता है तो वह घर का सदस्य पूरे महीना में घर के अंदर प्रवेश नहीं कर सकता। अगर उसे किसी बहुत जरूरी काम से अपने घर में आना पड़े तो वह घर के अंदर न जाकर बाहर से ही अपने परिवार के लोगों से मिलकर चला जाता है। अगर परिवार के लोग उसे खाना परोसते हैं तो दूर से ही खाना परोसा जाता है। बर्तन उसको खुद धोने पड़ते हैं और वे बर्तन बाहर ही रखे जाते हैं, ताकि दोबारा आने पर इस्तेमाल किए जा सकें। पोहाल पहाड़ों पर बैठकर ही एक महीना गुजारते हैं और इस महीने में दूध दही भी घर में नहीं भेजा जाता। पोहाल अपनी पोहाली में ही घी निकाल कर जमा करते हैं और जब भादो का महीना आता है तो वह घी घर में लाया जाता है। भादो की संक्रांति इलाके के लोगों के लिए एक उत्सव जैसी होती है और लोग साफ-सुथरे होकर मंदिरों में प्रवेश करते हैं।

पिछले कई साल से मचैल माता चंडी का मंदिर सिर्फ दस दिन के लिए ही बंद किया जाता है। अभी यह कहा जा रहा है कि मंदिर दस दिन बाद खोल दिया जाएगा, लेकिन इसका फैसला मचैल गांव के लोग और पुजारी करेंगे।


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