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दो दशक पहले का समय दोहराएगी रियासी की लोहड़ी

संवाद सहयोगी रियासी जिले लुप्त होती लोहड़ी की परंपरा को जीवित करने के लिए दुर्गा नाटक मंडली के सदस्यों ने प्रयास शुरू कर दिया है। दो दशक बाद इस बार छज्जा बनाया जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 11 Jan 2020 01:43 AM (IST)Updated: Sat, 11 Jan 2020 06:17 AM (IST)
दो दशक पहले का समय दोहराएगी रियासी की लोहड़ी
दो दशक पहले का समय दोहराएगी रियासी की लोहड़ी

संवाद सहयोगी, रियासी : जिला रियासी में लुप्त होती लोहड़ी की परंपरा को जीवित करने के लिए इस बार वैसे ही छज्जा बनाया जा रहा है जो कि वर्षों पहले बनाया जाता था। इस बार नई शादी और पुत्र जन्म वाले घरों में छज्जा नाच के साथ ही ढोल की थाप पर वैसा ही धमाल मचेगा जो दो दशक पहले देखने को मिलता था। यह प्रयास श्री दुर्गा नाटक मंडली और महादेव मंडली द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है।

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संयुक्त मंडली द्वारा विशेष तौर पर कटड़ा से ढोल वालों की बुकिग करवा दी गई है। इसी के साथ छज्जा बनाने का काम जोरों पर है। इसमें मंडली सदस्य दिन-रात जुटे हुए हैं।

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लोहड़ी को लेकर रियासी की विशेष पहचान थी

दो दशक पहले लोहड़ी पर्व को उत्साह से मनाने में रियासी की विशेष पहचान थी। बच्चे युवा व बड़ों की टोलियां पर्व से कई दिन पहले छज्जा बनाने में जुट जाती थीं, जोकि उस समय 8 से 10 फुट गोलाकार में होते थे। छज्जे का ढांचा बांस की लकड़ी से बनाया जाता था, जो मजबूत तथा लचीले होते हैं। दूसरों से आकर्षक बनाने के लिए डिजाइन को गुप्त रखा जाता था। महादेव मंडली का मुख्य डिजाइन शिवलिग होता था, जबकि कई अन्य मंडलीय मोर तथा फूलों के अन्य आकर्षक डिजाइन छज्जे पर उकेरती थी। छज्जा बनाने में दिन रात काम किया जाता था।

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ध्वनि और ताल में होता था मुकाबला

लोहड़ी के दिन आमने-सामने हो जाने पर मंडलियों के ढोल वालों के बीच भी ध्वनि और ताल का मुकाबला छिड़ जाता था। जिस वजह से हर मंडली की यही कोशिश रहती थी कि उनके ढोल वाले दूसरों से बेहतर साबित हो। ढोल तथा ताल के मामले में कटड़ा के ढोल वालों की विशेष पहचान है, जिस वजह से मंडलियां कई माह पहले ही कटड़ा के नामी ढोल वालों को बुक कर लेती थी।

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पूर्व संध्या पर होती थी पार्टी

लोहड़ी पर्व की पूर्व संध्या को ढोल वाले आ जाते थे और शाम को मंडली अपने तय स्थान पर पार्टी का आयोजन करती थी। इसी के साथ देर रात तक नाच का दौर चलता था। लोहड़ी की सुबह टोलियां छज्जे लेकर ढोल बाजों सहित निकल पड़ती थी और नई शादी, सगाई ,पुत्र जन्म व मुंडन वाले घरों में लोहरी मांगी जाती थी। यह सिलसिला देर रात तक चलता रहता था। कई मंडलियां शाम के बाद हिरण नाच करती थीं, जिसमें दो लोग हिरण बनते थे तो कुछ युवक महिलाओं की वेशभूषा में नृत्य और मजाक से पर्व के रंग को और गहरा कर देते थे।

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एक घर में एक ही साथ पहुंचने पर टोलियों में होता था मुकाबला

दो दशक पहले लोहड़ी पर्व पर माहौल तब रोमांचक बन जाता था जब किसी घर में एक से ज्यादा टोलियां एक साथ पहुंच जाने पर उन टोलियां के बीच मुकाबला शुरू हो जाता था। इस दौरान छज्जा नचा में ढोल वालों की एक दूसरे को पछाड़ने की प्रतिस्पर्धा में ध्वनि कर्ण भेदी हो जाती थी। टोली के धमाल में कई बार कच्चे घरों के फर्श तक उखड़ जाते थे। मंडलियों द्वारा घर के सदस्यों को भी डांस करवा कर खुश किया जाता था। इससे लोहड़ी के रूप में मुंह मांगे पैसे भी मिल जाते थे।

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छज्जे से अनजान है युवा पीढ़ी

समय के साथ-साथ यह पर्व फीका होने लगा और छज्जा बनाने की परंपरा भी लुप्त होती चली गई। नई पीढ़ी में तो कुछ ऐसे भी हैं जो पहले के छज्जे से वाकिफ भी नहीं है। पहले के समय लोहड़ी मांगने के लिए बहुत सारी टोलियां होती थी। किसी एक घर से एक टोली निकलती तो दूसरी आ पहुंचती थी। शाम होने तक असंख्य टोलियों को पैसे दे देकर लोग तंग आ जाते थे। लेकिन अब आलम यह है कि लोग इस आस में रहते हैं कि कब कोई टोली उनके घर आए और उनसे उसी तरह लोहड़ी मांगे जो दशकों पहले ढोल और छज्जे सहित मांगी जाती थी।

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परंपरा को जीवित करने में जुटी दुर्गा नाटक मंडली

रियासी में लोहड़ी की परंपरा को फिर से जीवित करने के लिए श्री दुर्गा नाटक मंडली ने वर्ष 2015 में छज्जा बनाकर लोगों के घरों में लोहड़ी मांगी थी। लेकिन किन्ही कारणों से दोबारा छज्जा नहीं बन सका। इस बार श्री दुर्गा नाटक मंडली और महादेव मंडली ने संयुक्त रूप से छज्जा बनाकर उसी तरह लोहड़ी का पर्व मनाने का कदम उठाया है जैसे दशकों पहले मनाई जाती थी। इसके लिए श्री दुर्गा नाटक मंडली के सेट डिजाइन के निर्देशक संजय डोगरा और सहायक सेट डिजाइनर पलविदर सिंह की देखरेख में लगभग साढ़े आठ फीट गोलाकार छज्जा बनाया जा रहा है।

:::::::::::::::::::: संजय डोगरा ने दो दशक पहले के समय को याद करते हुए कहा कि छज्जा बनाने के लिए मंडली सदस्य दिन-रात एक साथ काम में जुटे रहते थे । जिसमें खूब हंसी मजाक के साथ ही आपसी प्रेम और भी मजबूत होता था। अब छज्जा बनाए जाने पर उनके वही पुराने साथी जब साथ काम कर रहे हैं तो वही पुराना समय दोहराए जाने का सुखद अहसास शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि लोहड़ी पर्व में फिर से रंग भरने के लिए छज्जा बनाने की प्रतिस्पर्धा करवाई जानी चाहिए, ताकि एक से अधिक मंडलीय पर्व में शामिल हो सके। वही दुर्गा नाटक मंडली के प्रधान संजीव खजूरिया ने कहा कि छज्जा बनाने के साथ ही कटड़ा से लगभग आधा दर्जन सदस्य ढोल वालों की टीम बुलाई गई है। इस बार की लोहड़ी दो दशक पहले का समय दोहराएगी।


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