किश्तवाड़ में घुसे आतंकियों का नहीं मिला सुराग
संवाद सहयोगी किश्तवाड़ शुक्रवार की शाम शहर में आतंकवादियों के घुसने की सूचना के बाद सेना पुलिस व सीआरपीएफ सारी रात अभियान चलाते रहे लेकिन आतंकियों का कोई सुराग नहीं मिला।
संवाद सहयोगी, किश्तवाड़: शुक्रवार की शाम शहर में आतंकवादियों के घुसने की सूचना के बाद सेना, पुलिस व सीआरपीएफ सारी रात अभियान चलाते रहे, लेकिन आतंकियों का कोई सुराग नहीं मिला। इसके पहले भी कई बार सर्च ऑपरेशन चलाए गए, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। एक माह पहले मांडवा इलाके में आतंकवादियों ने हमला कर दो एसपीओ घायल कर दिए थे। उसके बाद कई दिनों तक वहां पर सर्च ऑपरेशन चलता रहा, लेकिन पूरे इलाके के जंगलों व पहाड़ों की खाक छानने के बाद भी सुरक्षाबलों के हाथ कुछ नहीं लगा। इस सर्च ऑपरेशन में हेलीकॉप्टरों का भी प्रयोग किया गया था और कई उच्चाधिकारी भी मांडवा पहुंचे थे।
पिछले शुक्रवार को किश्तवाड़ के केशवान के जंगलों में आतंकी जमालदीन के साथ मुठभेड़ होने की बात कही गई और यह दावा किया गया कि जमालदीन घायल हो गया है। इसके बाद वहां पर भी तीन-चार दिन तक सर्च ऑपरेशन चलता रहा, लेकिन कुछ भी हाथ नहीं लगा। इसी तरह शुक्रवार शाम को शहर में आतंकियों के दाखिल होने की खबर आग की तरफ फैली। इससे शहर में अफरातफरी मच गई थी। कहा जाने लगा कि शहर मे घुसे आंतकी कोई बड़ी वारदात को अंजाम देने वाले हैं। ऐसे में सुरक्षाबलों ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया। तकरीबन पूरे किश्तवाड़ में जांच करने के बाद कुछ भी हासिल नहीं हुआ। यहां तक कि रात को किसी को भी शहर से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी गई और सुबह आठ बजे तक भी कई मोहल्लों से लोगों को घरों से बाहर नहीं जाने दिया, लेकिन फिर भी सुरक्षाबलों के हाथ आतंकियों का कोई सुराग नहीं लगा। ऐसे में शहरवासी सवाल उठा रहे हैं कि आखिर आतंकवादी शहर के अंदर कैसे आ गए और कहां से आए हैं, क्योंकि किश्तवाड़ शहर के अंदर आने के लिए जितने भी रास्ते हैं, सभी रास्तों को सुरक्षाबलों ने बैरियर लगाकर नाकाबंदी की है। आतंकी एक ही अनंतनाग, कोकरनाग, वायलु, संथन टॉप से होते हुए किश्तवाड़ शहर में दाखिल हो सकते हैं। लेकिन, जैसे ही कोई वाहन संथन टॉप से निकलता है तो संथन मैदान में सेना का एक बहुत बड़ा नाका है, यहां पर हर आने-जाने वाले वाहन को रोककर उसकी तलाशी ली जाती है। इतना ही नहीं, वाहन के अंदर बैठे सभी लोगों के पहचान पत्र देखने के बाद उन्हें एक लाइन में खड़ा कर उनकी फोटो भी खींची जाती हैं। इसके 20 किलोमीटर बाद एक और नाका आता है और बाद में सबसे बड़ा नाका भंडारकूट में है। यहां पर भी हर आने-जाने वाले के पहचान पत्र देखने के बाद उनके फोटो खींचे जाते हैं। इतना सब कुछ होने के बाद भी वहां से आतंकवादी शहर की तरफ आ गए, तो फिर ऐसा लगता है कि या तो आतंकवादियों की सूचना गलत थी या फिर इन नाकों का कोई महत्व नहीं है। इतनी सख्ती के बाद भी यदि नाकों से आतंकवादी निकल जाते हैं तो यह सुरक्षाबलों की तैयारी पर सवाल खड़े करता है।