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लोहड़ी के दिन बंद हो जाएंगे मचैल माता मंदिर के कपाट

जिला किश्तवाड़ की पाडर तहसील में स्थित माता मचैल मंदिर के कपाट लोहड़ी वाले दिन से तीन माह

By JagranEdited By: Published: Fri, 10 Jan 2020 01:38 AM (IST)Updated: Fri, 10 Jan 2020 06:20 AM (IST)
लोहड़ी के दिन बंद हो जाएंगे मचैल माता मंदिर के कपाट

जिला किश्तवाड़ की पाडर तहसील में स्थित माता मचैल मंदिर के कपाट लोहड़ी वाले दिन से तीन माह के लिए बंद हो जाएंगे। उसके तीन महीने के बाद बैसाखी वाले दिन मंदिर के कपाट खुलेंगे।

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जिला किश्तवाड़ के पाडर इलाके का प्रसिद्ध माता मचैल मंदिर में हाजिरी लगाने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है। जुलाई अगस्त महीने में यात्री इस मंदिर में माथा टेकते हैं। इस मंदिर में जाने के लिए पहले तो गुलाबगढ़ से ही 30 किलोमीटर पैदल चलकर मचैल गांव में पहुंचना पड़ता था, उसके बाद माता के दर्शन होते थे, लेकिन अब गुलाबगढ़ से जसनाई नाला तक 15 किलोमीटर सड़क बन जाने से सफर कम हो गया है। सिर्फ 15 किलोमीटर में ही पैदल चलना पड़ता है। पूरे 9 महीने तक माता के दरबार में भक्तों की आवाजाही लगी रहती है, लेकिन जनवरी माह में अधिक बर्फबारी के कारण मंदिर में जाना भी कठिन हो जाता है। यहां तक के पुजारी को भी यह परेशानी आती है। यही वजह है कि सर्दियां में परंपरा के मुताबिक लोहड़ी के दिन मंदिर को बंद कर दिया जाता है और वहां से माता सरस्वती की मूíत को उठाकर मंदिर से करीब 100 मीटर दूरी स्थानीय निवासी पहलवान सिंह के घर में बने मंदिर में रख दिया जाता है। 3 महीने तक पहलवान सिंह का परिवार ही मूíत की पूजा करता है। बाकी मचेल मंदिर में माता चंडी, महालक्ष्मी और महाकाली की मूíतयां प्रतिष्ठापित हैं, जिन्हें मंदिर के अंदर ही रहने दिया जाता है। इन मूर्तियों की 3 महीने तक पूजा नहीं होती है। जब बैसाखी का त्योहार आता है तो मंदिर में कुछ दिन पहले ही साफ-सफाई शुरू हो जाती है। वैशाखी के दिन सरस्वती माता की मूíत को दोबारा मंदिर में स्थापित किया जाता है। इस मौके पर मचैल मामा के दरबार में मेले जैसा उत्सव होता है और दूर-दूर से लोग यहां आकर मेले का आनंद लेते हैं। नाच गाकर माता चंडी के दर्शन करके पुण्य कमाते हैं। स्थानीय लोग अपनी रीति के अनुसार माता के दरबार में पूजा करते हैं और कुड डांस करते हैं।


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