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जीर्णोद्धार के बाद आम लोगों के लिए फिर खुला शहीद मकबूल शेरवानी का स्मारक

उत्तरी कश्मीर में झेलम किनारे स्थित ओल्ड टाउन बारामुला में शहीद मकबूल शेरवानी की कब्र और स्मारक के जीर्णाेद्धार का काम वीरवार पूरा हो गया। इस अवसर पर सेना ने शहीद को श्रद्धांजलि अíपत की। इसके बाद स्मारक को आम लोगों के लिए एक बार फिर खोल दिया गया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 16 Jul 2021 05:32 AM (IST)Updated: Fri, 16 Jul 2021 05:32 AM (IST)
जीर्णोद्धार के बाद आम लोगों के लिए फिर खुला शहीद मकबूल शेरवानी का स्मारक
जीर्णोद्धार के बाद आम लोगों के लिए फिर खुला शहीद मकबूल शेरवानी का स्मारक

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर: उत्तरी कश्मीर में झेलम किनारे स्थित ओल्ड टाउन बारामुला में शहीद मकबूल शेरवानी की कब्र और स्मारक के जीर्णाेद्धार का काम वीरवार पूरा हो गया। इस अवसर पर सेना ने शहीद को श्रद्धांजलि अíपत की। इसके बाद स्मारक को आम लोगों के लिए एक बार फिर खोल दिया गया।

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शहीद मकबूल शेरवानी वही शख्स हैं, जिन्होंने 1947 में कश्मीर पर कब्जा करने के घुसे पाकिस्तानी सैनिकों को बारामुला से आगे बढ़ने से रोका था। वह उन्हें श्रीनगर तक पहुंचने का गलत रास्ता बताते रहे। हमलावरों ने उस समय बारामुला और उसके साथ सटे इलाकों में लूटमार मचा रखी थी, वह कश्मीरी औरतों के साथ दुराचार कर रहे थे, लोगों को कत्ल कर रहे थे। मकबूल शेरवानी को लगा था कि अगर यह श्रीनगर तक पहुंच गए तो फिर कश्मीर पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा।

मकबूल शेरवानी ने हमलावरों को श्रीनगर एयरपोर्ट तक जल्द पहुंचाने का झासा देते हुए उन्हें गलत रास्ते पर भटकाया। इस बीच, मकबूल शेरवानी और उसके साथियों ने कई जगह सड़कों पर अवरोधक भी लगाए और पुलों को तोड़ा ताकि पाकिस्तानी हमलावरों को ज्यादा से ज्यादा समय तक श्रीनगर से दूर रखा जा सके। पाकिस्तानी हमलावरों को जब मकबूल शेरवानी की असलियत पता चली तो उन्होंने उसे सलीब पर लटकाया। उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों में कीलें ठोंकी गई और 14 गोलिया दागीं। वह सात नवंबर, 1947 को शहीद हो गए थे।

उनकी शहादत के लगभग दो सप्ताह बाद महात्मा गाधी ने दिल्ली में एक प्रार्थना सभा में उन्हें श्रद्धाजलि अíपत की थी। भारतीय सेना ने मकबूल शेरवानी की शहादत को सलाम करते हुए ही जम्मू कश्मीर लाइट इन्फैंट्री की दूसरी वाहिनी का नाम शेरवानी पलटन रखा है। शहीद मकबूल शेरवानी को ओल्ड टाउन बारामुला में दफनाया गया था। उनकी कब्र की देखभाल भारतीय सेना ही करती आई है। शहीद की कब्र और स्मारक का जीर्णाेद्धार कार्य भारतीय सेना ने अप्रैल माह में शुरू किया था और आज पूरा हुआ है।


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