आइएएस की कोचिंग के लिए निकला और आतंकी बन लौटा
सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया आतंकी सब्जार जब हिजबुल मुजाहिदीन का हिस्सा बना तो हर कोई हैरान था।
श्रीनगर, नवीन नवाज। ग्रीष्मकालीन राजधानी के बाहरी क्षेत्र रंगरेथ स्थित जैकलाई रेजिमेंटल सेंटर से कुछ ही दूरी पर स्थित वन्नबल में बुधवार को सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया आतंकी सब्जार अहमद बट उर्फ डा सैफुल्ला जब हिजबुल मुजाहिदीन का हिस्सा बना था तो सिर्फ उसके घर वाले हैरान-परेशान नहीं हुए थे, पूरे इलाके में लोग हैरान रह गए थे। उसने अपने इलाके में दसवीं और 12वीं के छात्रों के लिए कोचिंग सेंटर भी बनाया, लेकिन कोई भी छात्रों को फीस देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता था। आतंकी बनने से पहले कभी उसने किसी राष्ट्रविरोधी प्रदर्शन में या पथराव में कभी भाग नहीं लिया था। वह घर से निकला आइएएस की कोचिंग के लिए निकला था।
दक्षिण कश्मीर में जिला अनंतनाग के संगम नेना गांव का रहने वाला सब्जार सोफी जिस समय आतंकी बना, उस समय 29 साल का था। वह वर्ष 2018 में आठ जुलाई की सुबह अपने एक दोस्त के साथ दिल्ली रवाना हुआ था। उसके पिता बशीर अहमद बट और मां हाजिरा आज भी उस दिन को याद करती हैं, जब उन्होंने अपने बेटे को घर से विदा किया था।
बशीर सोफी के अनुसार, सुबह सब्जार घर से निकला और शाम को आतंकी बुरहान की मौत हो गई। पूरी वादी में हालात बिगड़ गए थे। यहां इंटरनेट बंद हो गया, फोन नहीं चल रहे थे। चारों तरफ पथराव और बंद का दौर था। हमारी सब्जार से कोई बात नहीं हुईऔर हमें लगा कि वह दिल्ली पहुंच गया होगा। करीब तीन माह तक हमारा उससे कोई संपर्क नहीं हुआ। फिर एक दिन हमारे ऊपर पहाड़ टूट पड़ा, जब एक पुलिस कर्मी ने हमारे घर में दस्तक दी और हमें एक वीडियो दिखाया। उसमें मेरा बेटा जिसके हाथ में हमेशा किताब होती थी, क्लाशिनकोव हाथ में लिए अन्य आतंकियों के साथ नजर आ रहा था।
पहले अपने बेटे के आतंकी बनने और उसके बाद उसकी मौत से पूरी तरह टूटे नजर आ रहे बशीर अहमद बट ने कहा कि मेरे पांच बच्चे थे, अब चार ही रह गए हैं। सभी पढ़े लिखे हैं। सब्जार ने 2007 में अनंतनाग के डिग्री कालेज से बीएससी की और उसमें बाद वह बरकतुल्ला विश्वविद्यालय भोपाल में एमएससी करने चला गया। उसने जीवाजी विश्वविद्यालय में एमफिल की।इस दौरान उसने असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए नेट की परीक्षा भी पास की। उसने जेआरएफ की परीक्षा भी पास की थी ।
उसने बीएड की डिग्री भी हासिल की। वह आईएएस बननेकी तैयारी भी कर रहा था। उसने यहां श्रीनगर में भी कुछ दिन कोचिंग ली और फिर कहने लगा कि दिल्ली में पीएचडी की पढ़ाई के साथ कोचिंग बेहतररहेगी। वह तो घर से दिल्ली गया था। वह कभी बंदूक उठाएगा किसी ने नहीं सोचा था,क्योंकि जब कभी यहां हालात बिगड़ते थेतो वह गांव से दूर विस्सु दरिया के किनारे जाकर बैठ जाता था। उसने संगम चौक में असेंट नाम से कोचिंग सेंटर भी शुरु किया।
हालांकि इसमें छात्रों से फीस ली जाती थी,लेेकिन अगर कोईछात्र फीस देने में असमर्थ होता था तो उससे फीस मांगने की कोई हिम्मत नहीं करता था। सब्जार को अगर पता चलता था कि किसी अघ्यापक ने फीस के लिए कहा है तो वह उस परबिगड़ जाता था। वह चाहता था कि यहां चारों तरफ लोग अच्छी तरह पढ़े लिखें। उसने तो नेना स्थित हाई स्कूल में भी दो माह तक छात्रों को निशुल्क पढाया था। वह तो किताबों का शौकीन था, क्लाशिनकोव कैसे उसके हाथ में आयी, यह पहेली आज तक हमें समझ नहीं आयी।