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घाटी में पैलेट के इस्तेमाल में आई कमी

राज्य ब्यूरो श्रीनगर पिछले साल के मुकाबले इस साल वादी में हिसक प्रदर्शनों में 60 प्रतिशत की कमी आई है। इसके चलते पैलेट के इस्तेमाल में भी कमी आई है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 11 May 2019 08:37 AM (IST)Updated: Sun, 12 May 2019 06:37 AM (IST)
घाटी में पैलेट के इस्तेमाल में आई कमी
घाटी में पैलेट के इस्तेमाल में आई कमी

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर:

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पिछले साल के मुकाबले इस साल वादी में हिसक प्रदर्शनों में 60 प्रतिशत की कमी आई है, जिसकी वजह से सुरक्षाबलों की तरफ से पैलेट गन का इस्तेमाल भी कम किया गया है। इस साल अब तक उपलब्ध पैलेट स्टॉक का 10 प्रतिशत भी इस्तेमाल नहीं किया जा सका है। हालांकि इसकी वजह मानवाधिकारों के कथित झंडाबरदारों और विभिन्न राजनीतिक दलों की तरफ से पैलेट गन के मुद्दे पर मचाया जाने वाला सियासी शोर कदापि नहीं है। इसके बजाय पैलेट गन के इस्तेमाल में कमी के पीछे कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए सुरक्षाबलों द्वारा अपनाए जाने वाले स्टैंडर्ड आपरेशनल प्रोसीजर (एसओपी) में बदलाव के अलावा हिसक प्रदर्शनों में कमी जिम्मेदार हैं।

गौरतलब है कि कश्मीर घाटी में वर्ष 2010 में हुए हिसक प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षाबलों की तथाकथित फायरिग में 116 लोगों की मौत के बाद राज्य सरकार ने कम घातक हथियारों पैलेट गन, मिर्ची बम, रबर बुलेट इत्यादि के विकल्प को अपनाया था। लेकिन वर्ष 2016 में वादी में हिसक प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के दौरान सुरक्षाबलों द्वारा पैलेट दागे जाने से कई लोगों की मौत हुई, कइयों की आंखों में पैलेट लगे और उनकी आंखों की रोशनी चली गई। अलगाववादियों, मानवाधिकारों के कथित झंडाबरदारों ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया। कश्मीर के विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी पैलेट गन के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग शुरू कर दी।

कश्मीर घाटी में आतंकरोधी अभियानों से लेकर हिसक प्रदर्शनकारियों से निपटने में अग्रणी भूमिका निभा रही सीआरपीएफ के आईजी रविदीप सिंह साही के मुताबिक, पैलेट गन के इस्तेमाल को लेकर सबसे ज्यादा निशाना हमारे जवानों पर साधा गया है, लेकिन इस साल हमने बहुत ही कम जगहों पर हिसक प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए पैलेट का इस्तेमाल किया है।

वर्ष 2016 और वर्ष 2017 के हालात से अगर तुलना करें तो हम कह सकते हैं कि इस साल अभी तक पैलेट नहीं चलाए गए हैं। वर्ष 2017 के अंतिम दिनों में पैलेट गन के इस्तेमाल में कमी आना शुरू हुई थी।

राज्य पुलिस में एसएसपी रैंक के एक अधिकारी और सीआरपीएफ के एक डीआईजी रैंक के अधिकारी ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि वर्ष 2016 में पैलेट का जो भी स्टॉक था, वह साल खत्म होने से पहले खत्म हुआ था। वर्ष 2017 में कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए अपनाए जाने वाले एसओपी में सुधार के चलते, पैलेट भी कम इस्तेमाल हुए और कुल भंडार का सिर्फ 70 प्रतिशत ही इस्तेमाल हुआ और बीते साल मात्र 55 प्रतिशत ही पैलेट इस्तेमाल करने पड़े।

आईजी सीआरपीएफ ने बताया कि कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए वे अपने अधिकारियों व जवानों की ट्रेनिग में लगातार बदलते परिवेश के मुताबिक सुधार ला रहे हैं। उन्हें सिखाया जाता है कि वह पैलेट का इस्तेमाल अत्यधिक आवश्यकता होने पर सिर्फ अंतिम विकल्प की स्थिति में ही करें, अन्यथा नहीं। इसके अलावा उन्हें बताया गया है कि वह पैलेट जब भी दागें तो जमीन से दो से ढाई फुट की ऊंचाई पर ही दागे, किसी भी सूरत में प्रदर्शनकारियों की टांगों से ऊपर इन्हें नहीं दागा जाए।

आईजीपी कश्मीर एसपी पानि के मुताबिक, वर्ष 2018 की गर्मियों के बाद से वादी में प्रदर्शनकारियों पर पैलेट के इस्तेमाल में बहुत कमी आई है। किसी भी जगह तैनात सुरक्षाकर्मी अपने स्तर पर ही यथासंभव इसके इस्तेमाल से बचने को प्राथमिकता देते हैं।

आइजी सीआरपीएफ ने बताया कि पैलेट गन के इस्तेमाल में कमी का कारण घाटी में हिसक प्रदर्शनों की संख्या और उनकी तीव्रता में कमी के साथ भी जोड़ सकते हैं। वर्ष 2018 में वर्ष 2016 और वर्ष 2017 की तुलना में हिसक प्रदर्शन कम हुए हैं। उनकी तीव्रता भी पहले जैसी नहीं थी। इस साल भी मई के पहले सप्ताह तक वादी में हिसक प्रदर्शनों की संख्या नाममात्र ही रही है और यह कुछेक क्षेत्रों तक सीमित रहे हैं। पथराव की तीव्रता भी कम रही है। उन्होंने कहा कि इस साल वादी में कानून व्यवस्था की स्थिति का अनुमान लगाते हुए जो पैलेट सुरक्षाबलों को उपलब्ध कराए गए हैं, उनका 10 प्रतिशत भी अभी तक खर्च नहीं हुआ है, जो संतोषजनक है। अगर हालात ऐसे ही रहे तो पैलेट का इस्तेमाल शायद ही कहीं करना पड़े।

सूत्रों की मानें तो इस साल पैलेट गन के इस्तेमाल से कश्मीर में अभी तक सिर्फ हंदवाड़ा में ही सातवीं कक्षा के एक छात्र उवैस मुश्ताक की मौत हुई है और अन्यत्र तीन दर्जन लोग पैलेट लगने से जख्मी हुए हैं। बीते साल पैलेट से जख्मी होने वालों की तादाद 725 थी, जबकि वर्ष 2016 में 2000 से ज्यादा लोगों को पैलेट से चोट पहुंची थी, जिनमें से करीब 110 की आंखों में पैलेट लगे थे।


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