अब उत्तरी कश्मीर को सुलगाने की साजिश रच रहे आतंकी संगठन, दक्षिण कश्मीर में बढ़ते दबाव के बाद किया उत्तर के जिलों की आेर रुख
दक्षिण कश्मीर में सुरक्षा बलों के लगातार बढ़ते दबाव और अपने कैडर के मारे जाने से हताश आतंकी संगठन अब उत्तरी कश्मीर को सुलगाने की साजिश रच रहे हैं।
नवीन नवाज, श्रीनगर । दक्षिण कश्मीर में सुरक्षा बलों के लगातार बढ़ते दबाव और अपने कैडर के मारे जाने से हताश आतंकी संगठन अब उत्तरी कश्मीर को सुलगाने की साजिश रच रहे हैं। कई स्थानीय युवकों के भी आतंकी संगठनों में शामिल होने की सूचना है। इसकी भनक लगते ही सुरक्षा एजेंसियों ने भी अपने अभियान तेज किए हैं और ग्राउंड नेटवर्क को सक्रिय कर दिया है।
उत्तरी कश्मीर के बारामुला, कुपवाड़ा और बांडीपोर में बीते तीन साल में आतंकी हिंसा में लगातार कमी देखी गई थी। जनवरी माह में तो पुलिस ने बारामुला को स्थानीय आतंकियों से पूरी तरह मुक्त करार दे दिया था। जुलाई माह की शुरुआत तक पूरे उत्तरी कश्मीर में करीब 100 सक्रिय आतंकी थे। इनमें से मात्र 25 ही स्थानीय थे। अब सक्रिय आतंकियों की संख्या 150 के करीब मानी जा रही है।
राज्य पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने हालांकि गत दिनों दावा किया था कि वादी में एक माह के दौरान आतंकी संगठनों में स्थानीय युवकों की भर्ती नहीं हुई। कुछ युवक अवश्य रास्ता भटक गए थे और इनमें से कुछ को वापस मुख्यधारा में लाया गया है। इसके विपरीत, संबधित सूत्रों की मानें तो उत्तरी कश्मीर में हाल-फिलहाल में 20 स्थानीय युवक आतंकी संगठनों से जा मिले हैं। दक्षिण में सक्रिय कई आतकियों ने भी उत्तरी कश्मीर को अपना ठिकाना बनाया है। इसके अलावा गुलाम कश्मीर से कुछ और विदेशी आतंकियों के घुसपैठ की भी खबरें हैं।
राज्य के पुनर्गठन के बाद सुरक्षा एजेंसियों को सेंट्रल कश्मीर व दक्षिण कश्मीर में आतंकी हिंसा में बढ़ोतरी की आशंका थी। इसके आधार पर ही उन्होंने आतंकरोधी अभियान चलाने व कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने की कार्ययोजना तैयार की गई। अलबत्ता, दक्षिण कश्मीर के चारों जिलों कुलगाम, अनंतनाग, शोपियां और पुलवामा में जबरन बंद कराने और मस्जिदों में भाषणबाजी के अलावा कोई बड़ी वारदात नहीं घटी। सेंट्रल कश्मीर के श्रीनगर, गांदरबल और बडगाम में भी ज्यादा सक्रियता नहीं दिखी।
दो दशक में पहली मुठभेड़
अलबत्ता राज्य के पुनर्गठन के बाद पहली मुठभेड़ 20 अगस्त को उत्तरी कश्मीर के बारामुला में हुई। किसी समय आतंकियों का गढ़ रहे ओल्ड टाउन बारामुला के गनई हमाम मोहल्ले में दो दशक के दौरान यह पहली मुठभेड़ थी। यह मुठभेड़ भी अचानक शुरू हुई और लश्कर का मोमिन गोजरी नामक आतंकी मारा गया। इस मुठभेड़ में एक पुलिसकर्मी भी शहीद हुआ।
सोपोर में भी फैलाया आतंक
चंद दिनों बाद ही आतंकियों ने सोपोर में एक बाहरी श्रमिक को गोली मारकर जख्मी कर दिया। लश्कर ने सोपोर फ्रूट मंडी को भी पूरी तरह बंद कराया और फरमान न मानने पर सेब के कारोबार से जुड़े तीने लोगों के अलावा एक बच्ची को भी गोली मारकर जख्मी किया। तीन दिन पहले सोपोर में 11 सितंबर को वादी में सुरक्षाबलों की आतंकियों के साथ मुठभेड़ में लश्कर आतंकी आसिफ मारा गया। आासिफ उसी उसी सच्जाद मीर उर्फ अबु हैदर गुट का सदस्य था जो सोपोर व उससे सटे इलाकों में आतंक का पर्याय बना था। आसिफ जुलाई माह के अंत में आतंकी बना था जबकि मोमिन गोजरी अगस्त माह के पहले सप्ताह में आतंकी बना था।
हर तीन-चार पर बदलता है ट्रेंड
राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हमारे लिए यह नई बात नहीं है, क्योंकि हर तीन-चार साल बाद विभिन्न इलाकों में आतंकी गतिविधियों का ट्रेंड बदलता है। उन्होंने कहा कि 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तरी कश्मीर ही आतंकियों का गढ़ था। वर्ष 2010 से पहले भी उत्तरी कश्मीर सबसे ज्यादा आतंकग्रस्त माना जाता था। दक्षिण कश्मीर में दबाव बढऩे के बाद वहां सक्रिय आतंकी अब उत्तरी का रुख कर रहे हैं। इसके अलावा उत्तरी कश्मीर एलओसी के साथ होने के कारण वहां से घुसपैठ करके ठिकाना बनाना आसान रहता है।
अलबत्ता, हमारे लिए सबसे बड़ी हैरानी की बात ओल्ड टाउन बारामुला में हुई मुठभेड़ है। इसके अलावा जिस तरह से बारामुला में स्थानीय आतंकी फिर से नजर आए हैं। उन्होंने कहा कि इसलिए उत्तरी कश्मीर में सुरक्षाबलों ने अपने आतंकरोधी अभियानों की समीक्षा करते हुए उनकी रणनीति नए सिरे से तय की है। इसके तहत ग्राउंड नेटवर्क को पूरी तरह मजबूत बनाते हुए आम लोगों को कानून व्यवस्था को शामिल किया जा रहा है। इसके अलावा आतंकियों के पुराने ओवरग्राउंड नेटवर्क में शामिल लोगों के अलावा कुछ पूर्व आतंकियों की भी निगरानी की जा रही है।