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Jammu And Kashmir: मेजर पुरुषोत्तम ने सेना की शान के लिए दिया बलिदान, निहत्थे ही भिड़ गए थे आतंकियों से

Major Purushottam सेना की बिहार रेजिमेंट से संबंधित मेजर पुरुषोत्तम को 1997 में सेना की 15वीं कोर का जनसंपर्क अधिकारी बनाया गया था। उस समय कश्मीर में सेना और जनता के बीच संवाद-समन्वय-संपर्क दूर की कौड़ी थी। सेना पर अक्सर मानवाधिकार हनन के आरोप लगते थे।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Tue, 03 Nov 2020 09:21 PM (IST)Updated: Tue, 03 Nov 2020 09:21 PM (IST)
Jammu And Kashmir: मेजर पुरुषोत्तम ने सेना की शान के लिए दिया बलिदान, निहत्थे ही भिड़ गए थे आतंकियों से
मेजर पुरुषोत्तम ने सेना की शान के लिए दिया बलिदान।

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। Major Purushottam: सेना के मेजर पुरुषोत्तम जिन्होंने कश्मीर में सेना की शान बनाए रखने के लिए बलिदान दे दिया। यह वह दौर था, जब कश्मीर आम लोग जवानों के पास से गुजरने तक से कतराते थे, लेकिन अब मेजर पुरुषोत्तम के बारे में कहा जाता है कि उनके जैसा कोई नहीं। उनके सम्मान में सेना ने पांच साल पहले एक ट्रॉफी भी घोषित की है। यह ट्राफी कश्मीर में सेना द्वारा संचालित गुडविल स्कूलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले स्कूल को दी जाती है। सेना की बिहार रेजिमेंट से संबंधित मेजर पुरुषोत्तम को 1997 में सेना की 15वीं कोर (चिनार कोर) का जनसंपर्क अधिकारी बनाया गया था। उस समय कश्मीर में सेना और जनता के बीच संवाद-समन्वय-संपर्क दूर की कौड़ी थी। सेना पर अक्सर मानवाधिकार हनन के आरोप लगते थे।

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अलगाववादियों और आतंकियों के डर से आम लोग सेना के जवानों के साथ बात करना तो दूर उनके पास से गुजरने से भी बचते थे। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीर में सेना की छवि को पूरी तरह बदलते हुए जवान और अवाम-अमन है मुकाम के नारे को लोकप्रिय बनाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उन्होंने आम लोगों और मीडिया के सहयोग से सेना के खिलाफ दुष्प्रचार पर रोक लगाई।

जानिए, 21 साल पहले क्या हुआ

श्रीनगर में 21 साल पहले तीन नवंबर, 1999 की शाम को बादामीबाग सैन्य छावनी पर लश्कर-ए-तैयबा के आत्मघाती दस्ते के आतंकी हमला करते हुए भीतर घुस गए थे। मेजर पुरुषोत्तम अपने कक्ष में तीन मीडियाकर्मियों से बात कर रहे थे। गोलियां दागते हुए आतंकी जैसे ही उनके कार्यालय में दाखिल हुए, तो मेजर ने मीडियाकर्मियों को निश्चिंत रहने को कहा और उन्हेंं शौचालय में बंद कर खुद आतंकियों का मुकाबला करने लगे। बिना हथियारों के ही मेजर पुरुषोत्तम और उनके पांच सहयोगी आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। बादामीबाग सैन्य छावनी पर लश्कर का यह पहला आत्मघाती हमला था।

ये भी हुए थे शहीद

अपनी सूझबूझ और बहादुरी से तीन मीडियाकर्मियों की जान बचाते हुए बलिदान देने वाले शहीद मेजर पुरुषोत्तम व उनके पांच अन्य साथियों को मंगलवार को उनके शहीदी स्थल पर श्रद्धांजलि दी गई। सेना के प्रवक्ता कर्नल राजेश कालिया ने बताया की शहीद मेजर पुरुषोत्तम और उनके साथी निहत्थे होने के बावजूद गोलियां दाग रहे आतंकियों से लड़े। उनके साथ सूबेदार ब्रह्मदास, हवलदार पीके महाराणा, सिपाही चौधरी रामजी भाई, मोहम्मद रजा-उल-हक और सी राधाकृष्णन शहीद हुए थे। उन्होंने कहा कि मेजर पु़रुषोत्तम का बलिदान प्रेरणा देने वाला है। समारोह में जनसंपर्क विभाग में अपर महानिदेशक ए भारत भूषण बाबू भी मौजूद थे।

मेजर पुरुषोत्तम जैसा कोई नहीं

कश्मीर के वरिष्ठ फोटो पत्रकार हबीब नक्काश ने बताया कि मेजर पुरुषोत्तम ने एक पल भी गंवाए बिना हमें अपने कक्ष के पास बने शौचालय में बंद कर कहा था कि घबराने की जरूरत नहीं है, मैैं हूं। आपको कुछ नहीं होगा। वह जिस समय कश्मीर में आए, तब यहां सेना की छवि गलत तरीके से पेश की जाती थी। अखबारों में भी सेना का पक्ष पूरी तरह नहीं छपता था, लेकिन मेजर पुरुषोत्तम ने मीडिया और सेना के बीच की दूरी को दूर किया। उन्होंने कश्मीर विश्वविद्यालय में एक सेमिनार में छात्रों ने तीखे सवालों के मुस्कुराकर जवाब दिए थे। उन जैसा दूसरा कोई नहीं मिला। वह यहां हर दिल अजीज थे। 


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