कश्मीर में अब आतंकियों के नहीं, शहीदों के जनाजे पर उमड़ती है भीड़
अब ना तो मुठभेड़ में मारे जाने वाले आतंकियों के जनाजे में भीड़ जुटती है और न ही वहां आतंकी आकर हवाई फायरिग करने की जुर्रत करते हैं। देश विरोधी नारेबाजी तो दूर आतंकी की मौत पर हड़ताल या बंद भी नहीं होता।
राज्य ब्यूरो, जम्मू : वाकई, कश्मीर बदल चुका है। केवल व्यवस्था ही नहीं, आतंकियों का खौफ और अलगाववादियों के फतवों का डर भी अब कश्मीरियों के दिलो-दिमाग से निकल चुका है। अब ना तो मुठभेड़ में मारे जाने वाले आतंकियों के जनाजे में भीड़ जुटती है और न ही वहां आतंकी आकर हवाई फायरिग करने की जुर्रत करते हैं। देश विरोधी नारेबाजी तो दूर, आतंकी की मौत पर हड़ताल या बंद भी नहीं होता। इसके ठीक विपरीत अब कश्मीर में देश के लिए शहीद होने वाले सुरक्षाकर्मियों और आतंकी हमले में मारे जाने वाले बेकसूर लोगों के जनाजे में भीड़ उमड़ती है। शहीदों को अंतिम विदाई देते समय अब हिंदोस्तान जिंदाबाद और शहीद की मौत-कौम की हयात के नारे लगते हैं। कश्मीर में यह सामान्य घटना नहीं बल्कि बहुत बड़े बदलाव का सूचक है।
सोमवार सुबह श्रीनगर में उपचाराधीन भाजपा नेता अब्दुल हमीद नजार ने दम तोड़ दिया। ओमपोरा (बड़गाम) के रहने वाले अब्दुल हमीद नजार रविवार सुबह आतंकी हमले में जख्मी हो गए थे। सुबह जब उनका शव अस्पताल से उनके घर पहुंचा तो इलाके में खामोशी थी, लेकिन डर की नहीं गम और गुस्से की। दिवंगत के घर शोक जताने के लिए लगभग पूरे गाव से लोग खड़े थे। अब्दुल हमीद नजार को उनके पैतृक कब्रिस्तान में जब सुपु़र्दे खाक करने के लिए ले जाया गया तो वहा पुलिस को पहरा नहीं लगाना पड़ा। बड़ी संख्या में लोग नजार को सुपुर्दे खाक करने के लिए वहा पहले से ही मौजूद थे। वहा मौजूद लोगों में मौजूद आशिक अहमद ने कहा कि आप यहा खड़े 300-400 लोगों की भीड़ को कम मत समझिए। इनमें से एक का भी चेहरा ढका नहीं है, यह लोग कोविड-19 से बेखौफ नहीं हैं, यह जिहादियों से बेखौफ हैं, इसलिए यहा जमा हैं। अगर उनका डर आज भी होता तो न हमारे इलाके में हड़ताल होती और न यहा यह लोग जमा होते।
नजार की शहादत से पूर्व बीते सप्ताह वेस्सु (कुलगाम) में सरंपच सज्जाद अहमद खाडे के जनाजे में करीब दो हजार लोग जमा हुए थे। कुलगाम आतंकियों का गढ़ माना जाता है। इसी जिले में जब शहीद लेफ्टिनेंट उमर फैयाज को दफनाया जाना था तो पूरे इलाके में सेना का पहरा लगाना पड़ा था। आतंकियों ने दूर से फायरिंग भी की थी और जनाजे को कंधा देने के लिए सिर्फ चंद रिश्तेदार ही सामने आए थे। कुलगाम के साथ सटे जिला अनंतनाग के कुठैर गाव में गत शनिवार को शहीद सैन्यकर्मी आमिर हुसैन का पार्थिव शरीर जब पहुंचा था तो आस-पस के इलाकों से भी बड़ी संख्या में लोग उसे श्रद्धाजलि अर्पित करने के लिए पहुंचे। उसे हिंदोस्तान जिंदाबाद और शहीद की मौत-कौम की हयात के नारों के बीच सुपुर्दे खाक किया गया। क्या कहते हैं विशेषज्ञ : व्यवस्था बदलने के साथ बदल गया कश्मीर :
कश्मीर मामलों के जानकार एजाज ने कहा कि आज से एक साल पहले तक किसी भाजपा नेता तो क्या, नेशनल काफ्रेंस या पीडीपी के किसी नेता की आतंकियों द्वारा अगर हत्या कर दी जाती तो उसके जनाजे में चंद रिश्तेदार या फिर सुरक्षाबलों के पहरे में सियासी कार्यकर्ताओं ही देखते थे। कश्मीर में हिंदोस्तान का नाम लेने या मुखबिरी के आरोप में मारे गए व्यक्ति के जनाजे में कितने लोग शरीक होते रहे हैं, यह किसी से छिपा नहीं, पर अब ऐसा नहीं। एक साल में व्यवस्था बदलने के साथ कश्मीर बदल गया है।
कश्मीरी कभी भी आतंकवाद के समर्थक नहीं रहे :
समाजसेवी सलीम रेशी ने कहा कि कश्मीरी कभी भी आतंकवाद और हिंसा के समर्थक नहीं रहे हैं। उन्हें पता है कि कौन सही है और कौन गलत। पहले जो व्यवस्था थी, वह कहीं न कहीं प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से अलगाववादियों व जिहादियों को शह देती थी। इसलिए आम आदमी चाहकर भी कातिल को कातिल नहीं कह पाता था और आतंकियों के जनाजे में नजर आता था। वह जिहादियों से बचने के लिए शहीद सुरक्षाकíमयों, कश्मीर में लोकतंत्र के प्रहरियों के जनाजे से दूर रहता था। आज जिहादी और आतंकी खुद को बचाते फिर रहे हैं, इसलिए अब आम कश्मीरी अपने शहीदों को श्रद्धाजलि देने, उनके जनाजे को कंधा देने अपने घर से निकल रहा है।