जन्नत में आएगी बहार, खिलखिलाएंगे नन्हे फूल, कश्मीर घाटी के बच्चों को तनाव से बचाने के लिए बनेंगे चाइल्ड फ्रेंडली सेंटर
आइएमएचएनएस ने बच्चों की मदद के लिए एक कंटिनजेंसी प्लान बनाया है। पहले चरण में कुलगाम शोपियां अनंतनाग और पुलवामा में 16 साल तक के बच्चों के लिए सीएफसी बनाए जा रहे हैं।
श्रीनगर, नवीन नवाज। जन्नत (कश्मीर) में जल्द बहार आएगी और मुरझाए नन्हे फूल फिर खिलखिला उठेंगे। कश्मीर के ‘फूल’ यानि बच्चे। मौजूदा हालात का अगर किसी पर सबसे ज्यादा असर हुआ है तो वह हैं मासूम बच्चे व किशोर। कश्मीर घाटी के इन्हीं बच्चों और किशोरों को तनाव व नकारात्मक प्रभाव से बचाने के लिए प्रशासन ने अनूठी पहल की है। घाटी के प्रत्येक जिले में चाइल्ड फ्रेंडली सेंटर (सीएफसी) स्थापित किए जा रहे हैं। इन केंद्रों में बच्चों को अवसाद, अनिश्चितता और खौफ से निजात पाने के साथ खुद को व्यक्त करने और सकारात्मक गतिविधियों में व्यस्त रहने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। बाल मनोविज्ञान विशेषज्ञ और मनोचिकित्सक इन बच्चों की मदद कर रहे हैं। पहले चरण में 36 सीएफसी बनाए गए हैं। वहीं पांच अगस्त से कश्मीर में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए लगाई गई पाबंदियों को भी धीरे-धीरे हटाया जा रहा है, इसका भी बच्चों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
सायको-सोशल ट्रामा का शिकार हो सकते हैं बच्चे
गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस (आइएमएचएनएस) के एक डॉक्टर ने बताया कि वादी में जो मौजूदा हालात चल रहे हैं, उससे बच्चे सायको-सोशल ट्रामा का शिकार हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि विशेषकर छह से 16 साल के किशोर इससे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं। उनकी मनोदशा पर मौजूदा हालात के अल्पकालिक और दीर्घकालिक नकारात्मक असर से इन्कार नहीं किया जा सकता। इसलिए उनपर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
पहले चरण में कुलगाम, शोपियां, अनंतनाग, पुलवामा को चुना गया
आइएमएचएनएस ने बच्चों की मदद के लिए एक कंटिनजेंसी प्लान बनाया है। पहले चरण में कुलगाम, शोपियां, अनंतनाग और पुलवामा में 16 साल तक के बच्चों तक पहुंच बनाने के लिए सीएफसी बनाए जा रहे हैं। आइएमएचएनएस में यूनीसेफ द्वारा संचालित चाइल्ड एंड गाइडेंस एंड वेलबिइंग सेंटर के बाल मनोचिकित्सक डॉ. करार हुसैन ने बताया कि प्रत्येक जिला अस्पताल में भी हम इस तरह के केंद्र बना रहे हैं। इसके अलावा हम स्कूलों, स्थानीय नागरिकों के मकानों और आंगनबाड़ी केंद्रों में सीएफसी स्थापित कर रहे हैं। इन केंद्रों में स्वयंसेवकों को बताया जा रहा है कि वह अवसाद और सोशल ट्रामा से पीड़ित बच्चों से कैसे बात कर उनकी भावनाओं को उभारकर उनमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करें।
बच्चों पर बंदिशों से पैदा हो जाती हैं मानसिकत दिक्कतें
आइएमएचएनएस में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. जैयद अहमद ने कहा कि व्यस्क किसी हद तक हालात के अनुकूल अपने आप को बना लेते हैं। बच्चों और किशोर इस मामले में थोड़े अलग होते हैं। व्यस्क लोग आपस में बातचीत कर, दोस्तों में गप्पबाजी और बहस कर अपने भीतर की हताशा, निराशा को निकाल लेते हैं। बच्चे ऐसा नहीं कर पाते। जो बच्चा रोज सुबह छह-सात बजे उठता हो, स्कूल जाता हो, दोपहर को आकर खाना खाता है। बाद में गली मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलता है, टीवी देखता है। वह अचानक पूरा दिन घर में बंद रहे। टीवी भी न देख सके, टेलीफोन और मोबाइल पर अपने परिचितों से बातचीत न कर सके तो उसके लिए कई तरह की मानसिकत दिक्कतें पैदा हो जाती हैं। ऐसे बच्चे कई बार सामान्य नजर आते हैं, लेकिन जब व्यस्क होते हैं तो हिंसक प्रवृति के बन जाते हैं ।