उत्सव गणतंत्र का- तंत्र के गण : मुसीबतों को गले लगा कांटों में राह बनाती टीम, मकसद सिर्फ सबकी खैरियत
तंत्र के गण चारों तरफ बर्फ की मोटी सफेद चादर बर्फीली हवाएं और तापमान शून्य से नीचे। ऐसे हालात में चंद कदम पैदल चलना अच्छे अच्छों के लिए भारी पड़ जाम मकसद सिर्फ सबकी खैरियत।
श्रीनगर, नवीन नवाज। चारों तरफ बर्फ की मोटी सफेद चादर, बर्फीली हवाएं और तापमान शून्य से नीचे। ऐसे हालात में चंद कदम पैदल चलना अच्छे अच्छों के लिए भारी पड़ जाए, लेकिन भारतीय सेना के जवान न सिर्फ मीलों पैदल चलकर दूरदराज क्षेत्रों में ग्रामीणों को जीवन की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं बल्कि जरूरत पड़ने अपने कंधों पर किसी बीमार बुजुर्ग को उठा उसे अस्पताल पहुंचा रहे हैं। मकसद सिर्फ सबकी खैरियत।
जी हां, आतंकरोधी अभियानों में भाग लेने वाले जवान जरूरत पड़ने पर किसी को अस्पताल पहुंचा रहे हैं, तो कहीं सड़क से बर्फ हटाकर आम लोगों की आवाजाही बहाल कर रहे हैं। कहीं पानी उपलब्ध करा रहे हैं, तो किसी जगह टूटे तार जोड़ कर बिजली बहाल कर रहे हैं। खैरियत सिर्फ एक शब्द नहीं है। पूरे कश्मीर में विशेषकर दक्षिण कश्मीर में पीरपंजाल से सटे दुर्गम ग्रामीण क्षेत्रों और उत्तरी कश्मीर में एलओसी से सटी आवासीय बस्तियों में शायद ही कोई होगा, जो इससे परिचित न हो।
स्थानीय प्रशासन आपात परिस्थितियों में लोगों तक मदद पहुंचाने के लिए इसका सहारा ले रहा है। घाटी में एक सप्ताह के दौरान छह गर्भवती महिलाओं को सेना के खैरियत दस्तों ने समय रहते अस्पताल पहुंचाया। दो दिन पहले लालपोरा के 75 वर्षीय गुलाम नबी गनई तक अगर समय रहते सैन्यकर्मी न पहुंचते तो वह जिंदा नहीं होते।इसी तरह यह मददगार समय पर न पहुंचते तो टंगमर्ग की शमीमा, कुपवाड़ा की तस्लीमा, बांडीपोर की कुसुमा और सलीमा व उन जैसी छह अन्य महिलाओं की गोद में नन्हे फूल नहीं खिलखिला रहे होते।
वादी के हरहिस्से में जहां सेना की कोई एक कंपनी या वाहिनी आतंकरोधी अभियानों या फिर एलओसी की हिफाजत के लिए तैनात है, वहां पर खैरियत का दस्ता मौजूद है। सभी गांवों में, सड़कों और सैन्य शिविरों व चौकियों की दीवारों पर बड़े अक्षरों में खैरियत दस्ते से संपर्क के लिए नंबर लिखे हुए हैं। प्रत्येक गांव के पंच-सरपंच, नंबरदार और चौकीदार के पास ही नहीं पुलिस व नागरिक प्रशासन के अधिकारियों के पास भी विभिन्न इलाकों में तैनात खैरयित दस्तों के नंबर हैं। बीते दिनों बारामुला के उपलोना गांव में सेना के आरआर शिविर में निकटवर्ती गांव दारदपोरा के रियाज मीर ने फोन पर सूचित किया कि उसकी पत्नी शमीमा को प्रसव पीड़ा हो रही है। अस्पताल न पहुंची तो जच्चा-बच्चा दोनों नहीं बचेंगे।
संबंधित यूनिट के कमांडर ने उसी समय गांव में यूनिट के एक डाक्टर व जवानों का दस्ता भेजा। इस बीच उन्होंने एक दस्ते को हेलीपैड साफ करने का जिम्मा दिया ताकि शमीमा को हैलीकाप्टर से भेजने की नौबत में कोई दिक्कत न हो। एक अन्य दस्ते को उन्होंने सड़क से बर्फ हटाने का जिम्मा सौंपा। गांव मे पहुंचे जवानों ने शमीमा को सट्रेचर पर पहले कैंप में लाया। उसके बाद उन्होंने उसे अपने वाहन में डाक्टर व उसके परिजनों संग बारामुला अस्पताल पहुंचाया।
इन जवानों ने जिस इलाके से शमीमा को लाया था वहां कमर तक बर्फ थी। तीन दिन पहले कुपवाड़ा के लंगेट इलाक में हिमपात के चलते जलापूर्ति लगभग ठप हो गई। स्थानीय लोगों को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने अपने इलाके में स्थित सैन्य शिविर के खैरियत दस्ते से संपर्क किया। कुछ ही देर में जलापूर्ति की व्यवस्था हो गई।
कोई आए न आए सेना जरूर आएगी:
बारामुला के अल्ताफ बट ने कहा यहां लोग सेना पर बहुत यकीन करते हैं। उन्हें लगता है कि कोई आए या न आए, सेना के जवान जरूर पहुंचेंगे। उनका यह यकीन कभी नहीं टूटा। चार दिन पहले उड़ी में लच्छीपोरा के पास हिमस्खलन की चेतावनी वहां से गुजर रहे सैन्य दस्ते ने दी। कई ग्रामीण समय रहते सुरक्षित स्थानों की तरफ निकल गए। हिमस्खन में दो ग्रामीण फंस गए थे, उन्हें सेना के जवानों ने ही बचाया।
खैरियत दस्ता हर यूनिट और हर शिविर में:
सेना की चिनार कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनलर केजेएस ढिल्लों ने कहा कि खैरियत दस्ता हर यूनिट और हर शिविर में है। जवान और अवाम दोनों ही हमसाया हैं, एक दूसरे की परछायी हैं। इसलिए हम कैसे आम लोगों को मुसीबत में अकेला छोड़ सकते हैं। यहां आवाम को फौज पर बहुत यकीन है।