आतंकवाद के गढ़ त्राल में मुस्लिम समुदाय ने दिया कश्मीरी पंडित महिला को कंधा, अंत्येष्टि का प्रबंध भी किया
शशि रैना और उसका परिवार कभी कश्मीर छोड़कर नहीं गया। उन्हें यहां सभी लोग जानते थे। इसलिए जैसे ही उनके निधन की खबर फैली पूरे इलाके में शोक लहर पैदा हो गई। जिसने सुना वह उनके घर अफसोस जताने पहुंचा। सभी लोग उनके जनाजे में भी शामिल हुए।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : दक्षिण कश्मीर में आतंकियों की नर्सरी कहलाने वाले त्राल में उस समय कश्मीरियत और सांप्रदायिक सौहार्द की भावना मजबूत होती दिखी जब एक वृद्ध कश्मीरी पंडित महिला महिला की मृत्यु हो गई। दिवंगत महिला की अंतिम शवयात्रा में मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। उन्होंने न सिर्फ उसकी अर्थी को कंधा दिया बल्कि उसकी अंत्येष्टि का भी प्रबंध किया।
त्राल निवासी मोहिउददीन ने बताया कि कस्बे में पंडित नाथ रैना ने पलायन नहीं किया था। वह त्राल में अपने घर में ही रहे। उनकी पत्नी 71 वर्षीय शशि रैना पिछले कई दिनों से बीमार थी और उसकी मृत्यु हो गई। उनके परिवार के कुछ ही सदस्य अंतिम समय में उनके पास थे। उनके रिश्तेदार घाटी से बाहर अन्य जगहों पर रहते हैं। जैसे ही शशि रैना के निधन की खबर मिली, उनके सभी पड़ौसी उनके घर में जमा हो गए। स्थानीय मुस्लिम औरतों दिवंगत के घर की औरतों को सांत्वना दी। इसके साथ ही अन्य पड़ौसियों ने दिवंगत की शवयात्रा औार उसकी अंत्येष्टि का प्रबंध किया।
अब्दुल गनी नामक एक अन्य स्थानीय व्यक्ति ने कहा कि हमें कभी नहीं लगा कि वह किसी दूसरे मजहब से है। हम सभी यहां आपस में पूरे भाईचारे के साथ रहते हैं। हम लोगों का मजहब अलग था,लेकिन हम सभी कश्मीरी हैं। यही हमारी भावना है। शशि रैना और उसका परिवार कभी कश्मीर छोड़कर नहीं गया। उन्हें यहां सभी लोग जानते थे। इसलिए जैसे ही उनके निधन की खबर फैली, पूरे इलाके में शोक लहर पैदा हो गई। जिसने सुना वह उनके घर अफसोस जताने पहुंचा। सभी लोग उनके जनाजे में भी शामिल हुए।
वहीं त्राल के ही रहने वाले अकबर लोन का कहना था कि कश्मीर पंडित की अंतिम अंत्येष्टि में मुस्लिम समुदाय का शामिल होना कोई नई बात नहीं है। ऐसे कई उदाहरण कश्मीर में आपको मिल जाएंगे। कश्मीरी पंडित कश्मीर का हिस्सा हैं, हमारे भाई हैं। हम सब एक दूसरे के सुख-दुख के भागीदार हैं। राष्ट्रविरोधी तत्व भले कुछ भी कहें, सच तो यह है कि कश्मीरी पंडित हमसे अलग नहीं है। ऐसे में एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल होना, हमरा कर्तव्य बनता है।