बर्फीले तूफान में जिंदगी बचाने में माहिर हैं इलियास, सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद भी देश सेवा के लिए समर्पित जीवन
बर्फीले तूफान में जिंदगी बचाने में माहिर हैं इलियास सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद भी देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया जीवनहाल ही में हुए हिमस्खलन में एक जवान की बचाई जान
जम्मू, राज्य ब्यूरो। सेना से हर महीने कई अधिकारी व जवान सेवानिवृत्त होते हैं, लेकिन बहुत कम ऐसे हैं जो सेवानिवृत्ति के बाद भी लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। इन्हीं में से एक हैं सेना से मानक कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त हुए इलियास अहमद। वह कहते हैं कि जिंदगी की आखिरी सांस तक उन्होंने लोगों की सेवा के लिए जीवन समर्पित किया है। वह हिमस्खलन में बचाव के लिए माहिर माने जाते हैं। हाल ही मे टंगडार में हुए हिमस्खलन में उन्होंने एक जवान की जान बचाई थी।
उत्तरी कश्मीर के ग्रामीण व दूरदराज के क्षेत्र टंगडार के रहने वाले इलियास अहमद ने 31 साल तक पहाड़ी क्षेत्रों में सेवाएं दी हैं। इसके बाद वर्ष 2016 में जम्मू कश्मीर लाइट इन्फैंट्री से सेवानिवृत्त हुए थे। उनकी रेजीमेंट का नारा था बलिदानम लक्षणम। उन्होंने इस नारे को हमेशा अपने दिलो दिमाग में उतार कर रखा। 63 साल के इलियास का कहना है कि एक सैनिक जब तक जीवित रहता है तब तक सैनिक ही रहता है।
कुछ सप्ताह पूर्व जब टंगडार में हिस्खलन हुआ तो सेना ने उसकी सेवाओं को लिया था। देश और सेना के प्रति ड्यूटी ही पहला काम इलियास अहमद का कहना है कि देश और सेना के प्रति ड्यूटी ही उनका पहला काम है। दो बेटियों और एक बेटे के पिता इलियास सेवानिवृत्ति के बाद अब मसालों का काम करते हैं। इस बार जब सेना ने हिस्खलन होने पर याद किया तो परिजनों ने भी उसके बैग को पैक करने में अधिक समय नहीं लगाया।
यह हिमस्खलन नियंत्रण रेखा के पास स्थित एक अग्रिम पोस्ट पर हुआ था। बचाव टीम को पांच घंटे तक दुर्गम रास्ते पर चलकर मौके पर पहुंचना पड़ा। यह बचाव कार्य बहुत ही मुश्किल था। जब तक हम वहां पर पहुंचे तब तक तीन जवान शहीद हो चुके थे। हम सिर्फ एक की जान ही बचा पाए। पिछले सप्ताह चिनार कोर मेडल मिलाचिनार कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लो ने इलियास अहमद को पिछले शनिवार को ही चिनार कोर मेडल से सम्मानित किया था।
उन्होंने कहा था कि यह मेडल इलियास को उनकी बहादुरी और देश के प्रति समर्पण के लिए दिया गया है। जीओसी ने कहा कि इलियास हमारे सच्चे हीरो हैं। बहादुर होने के साथ-साथ उनमें कश्मीरियत भरी हुई है। वह कश्मीर घाटी में युवाओं का रोल मॉडल हैं। दो बार सेना मेडल, पांच बार प्रशंसा पत्रइलियास को दो बार सेना मेडल दिया जा चुका है। इसके अलावा पांच बार चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ का प्रशंसा पत्र मिल चुका है।
हाल ही में वह सेवानिवृत्त हुए, लेकिन अभी भी वह जवानों के साथ बचाव कार्य में पहले की तरह भाग लेते हैं। वह रेस्क्यू टीमों को प्रशिक्षण भी देते हैं। वह इस बार ट्रेनिंग देने के कारण अपने परिजनों के साथ ईद भी नहीं मना पाए थे। बचपन में देखते थे सेना के काफिलों कोइलियास टंगडार के रहने वाले हैं। यह कुपवाड़ा की करनाह तहसील में आता है। यह क्षेत्र अखरोट के लिए मशहूर है।
इलियास का कहना है कि जब वह छोटे थे, तब सेना के काफिलों को गुजरते देखते थे। इसी को देखकर उसने भी सेना में शामिल होने का सपना देखना शुरू किया। वर्ष 1984 में एक दिन ऐसा आया, जब उसे जैकलाई की दो रेजीमेंट में भर्ती होने का मौका मिला।
कई चोटियों को कर चुके फतह
इलियास अहमद जाने माने पर्वतारोही भी हैं। उन्हें पहाड़ों पर सफर करने का शौक है। दिलचस्प है कि वह सेना के सेवन थाडजेंड क्लब के भी सदस्य हैं। इस क्लब में सिर्फ वही सदस्य हैं जो कि सात हजार मीटर से अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ों पर सफलता से चढ़ चुके हैं। इलियास अब तक कामेत, अबि गामेन, माना, नुनुकुन और ससेरकांगडी जैसी ऊंची चोटियों को फतह कर चुके हैं। गुलमर्ग और सियाचिन में प्रशिक्षक भीवह गुलमर्ग स्थित हाई आल्टीटयूड वॉरफेयर स्कूल और सियाचिन बैटल स्कूल में प्रशिक्षक भी हैं। उन्होंने ऑपरेशन विजय में भी भाग लिया था। उनकी एक बेटी बैंकिग के क्षेत्र में तो दूसरी हेल्थ क्षेत्र में है। बेटा व्यापार में हाथ बढ़ाता है।