जम्मू-कश्मीरः बंदूक छोड़ चुके पूर्व आतंकी नया सियासी संगठन बनाने की तैयारी में
Former terrorist. ऑटोनामी और आजादी के नारों की सियासी दुकान पर ताला क्या लगा अब कल तक जेहाद के लिए बंदूक उठाने वाले तिरंगे को अपना मुस्तकबिल मानने को तैयार बैठे हैं।
श्रीनगर, नवीन नवाज। जम्मू-कश्मीर की सियासत पर्दे के पीछे से लगातार नई करवट ले रही है। ऑटोनामी और आजादी के नारों की सियासी दुकान पर ताला क्या लगा अब कल तक जेहाद के लिए बंदूक उठाने वाले तिरंगे को अपना मुस्तकबिल मानने को तैयार बैठे हैं। मुख्यधारा में लौटने के लिए बंदूक से किनारा कर चुके कई पूर्व आतंकी अब नया सियासी संगठन खड़ा करने की तैयारी में है। जल्द ही इस नए संगठन को अंतिम रूप दे दिया जाएगा। अब यह अपने इस हाल के लिए झूठ और ब्लैकमेल की सियासत को कोस रहे हैं।
मूलत: श्रीनगर के रहने वाले एक पूर्व आतंकी सैफुल्ला (कोड नाम) फिलहाल झेलम किनारे एक सरकारी होटल में रह रहे हैं। वह साफ कहते हैं कि जो हुआ सही हुआ। अगर यह काम 1947 में ही हो गया होता तो मैं आज यहां एक होटल में आपको नजर नहीं आता। शायद संसद या यहां की एसेंबली में होता। यहां ब्लैकमेल और मजहब की सियासत के कारण ही मुझ जैसे कई युवाओं ने राह भटककर बंदूक उठा ली और कुछ अभी भी उठा रहे हैं। उम्मीद करें कि अब यह सिलसिला थम जाएगा। मैंने बंदूक छोड़ने के बाद दो बार चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गया,क्योंकि यहां की खानदानी सियासत ने हमें या हमारे समर्थकों को लोगों के बीच खुलेआम जाकर काम नहीं करने दिया।
सैफुल्ला ने कहा कि कश्मीर में मुझ जैसे करीब 10 से 15 हजार लाेग मुख्यधारा में शामिल होने के लिए बंदूक से किनारा कर चुके है। हमारे कई छोटे-बड़े संगठन भी हैं और कई सामाजिक गतिविधियों में सलंग्न हैं। हम करीब दो सालों से अपना सियासी संगठन बनाने पर विचार कर रहे थे। इस दिशा में कुछ काम भी हुआ। अब आटोनामी,सेल्फ रुल या आजादी के नारों से बहकाने वालों के दिन लद चुके। हम इन नारों की हकीकत बताते हुए कश्मीरी की तरक्की और खुशहाली के एजेंडे पर वोट मांगेंगे। सिर्फ मैं नहीं मेरे जैसे आपको यहां कई मिलेंगे जो सियासत में ताल ठोंकने के लिए तैयार हैं। अलग अलग रहने पर हम कमजोर साबित हो सकते हैं, इसलिए हम मिलकर चलने की तैयारी में हैं।
आरिफ खान नामक एक पूर्व आतंकी ने कहा कि उसने हिंदोस्तान को अपना मोहसिन मानकर स्वेच्छा से सरेंडर किया था। हालांकि मैं सभी की नुमाइंदगी नहीं करता,लेकिन जितने लोगों के साथ मैं जुड़ा हुआ हूं, उनके जज्बात मुझसे जुदा नहीं हैं। पहले मैं यहां एक ऐसे संगठन से जुड़े और लोगों के लिए काम करने का प्रयास करते रहे। फिर सोचा कि बंदूक छोड़ सियासत की राह पर बढ़ेंगे। लेकिन किन्हीं कारणों से हमारा संगठन मुख्यधारा की सियासत में नहीं शामिल हो पाया। इसके बाद मैं एक बड़े सियासी दल के एक नेता से जुड़ गया। आजकल यह नेता कश्मीर से बाहर किसी जेल में रखे गए हैं। जब मैं कभी महीने दो महीने के लिए उस नेता से नहीं मिलता था तो उसकी रैली में लाेग जमा नहीं होते थे। ऐसे में पुलिस मेरे घर पहुंच जाती या फिर यही नेता मुझे कहता कि पुलिस तुम्हें तलाश कर रही है। अब इनकी ब्लैकमेल की सियासत नहीं चलेगी। अब आम कश्मीरियों की बात करने वाले आगे आएंगे।
अब उन जैसे कई पूर्व आतंकियों ने मिलकर नया संगठन खड़ा करने की तैयारी कर ली है। इनका वादी के हर शहर और गांव में अपना आधार है। वादी में शायद ही कोई एकाध मोहल्ला होगा,जहां यह लाेग पहुंच न रखते हों। इसके अलावा यह लाेग अपने एजेंडे को लेकर पूरी तरह स्पष्ट हैं। बदली परिस्थितियों में यह कश्मीर में एक बड़ी ताकत बन सकते हैं। इनकी बात को आम कश्मीरी अच्छे से समझेगा, क्योंकि इन्होंने पाकिस्तान की हकीकत, जिहादी नारे और बंदूक को करीब से देखा व समझा है। उसके बाद ही इन्होंने बंदूक छोड़ी है। यह लोग पाकिस्तान परस्तों की असली हकीकत को जनता के सामने रखेंगे।
कश्मीर में हालात सामान्य बनाने की प्रक्रिया में जुटे लोगों कि मानें तो पूर्व नामी कमांडरों ने बैठक कर तैयारी पूरी कर ली है। इसके अलावा अक्टूबर 2017 से कश्मीर मिशन पर लगे लोगों के साथ भी इन लोगों की लंबी बातचीत हुई है। अगर जून 2018 में तत्कालीन पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार भंग होने के बाद राज्य की राजनीति में फेरबदल नहीं हुआ होता तो इन लोगों का राजनीतिक संगठन खड़ा हो चुका होता।
सियासत में पहले से भाग्य आजमा रहे हैं कई नामी कमांडर
रियासत में मुख्यधारा की सियासत में कई पूर्व आतंकी कमांडर अपना भाग्य आजमा रहे हैं। बाबर बदर जिनका असली नाम सईद फिरदौस है,नेशनल कांफ्रेंस के सहारे राज्य विधानपरिषद के सदस्य रह चुके हैं। पीडीपी के संस्थापक सदस्यों में बिलाल लोधी शामिल रहे हैं। वह अल बरक के कमांडर थे और एमएलसी भी बने। बांडीपोर से उसमान मजीद वर्ष 2014 में कांग्रेस के टिकट पर एमएलए बने। वह भी पूर्व आतंकी कमांडर हैं। इनके अलावा इमरान राही, हिलाल बेग समेत कई ऐसे आतंकी कमांडर हैं, जिन्होंने मुख्यधारा की सियासत में अपना भाग्य आजमाया लेकिन चुनाव नहीं जीत पाए।
इमरान राही हिजबुल मुजाहिदीन के उन नामी कमांडरों में एक हैं, जिन्होंने वर्ष 1995 में तत्कालीन गृहमंत्री एबी चव्हाण के साथ बातचीत के बाद बंदूक छोड़ी थी। उन्होंने अपना एक राजनीतिक संगठन बना रखा है। अलगववादी खेमे में भी कई पूर्व आतंकी सक्रिय हैं। उनमें जफर अकबर फतेह प्रमुख हैं। उनके संगठन का नाम साल्वेशन मूवमेंट हैं। साल्वेशन मूवमेंट वर्ष 2000 में बनाया गया था और लक्ष्य था कि केंद्र के साथ बातचीत सफल रहने पर हिज्ब का कैडर इससे जुड़ मुख्यधारा की सियासत का हिस्सा बनेगा। लेकिन वर्ष 2000 में केंद्र व हिज्ब की वार्ता के नाकाम रहने पर यह संगठन अलगाववादी सियासत का हिस्सा बन गया था।