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Sopore Terrorist Attack: आतंकी आंखों में तेजाब डालने की देते थे धमकी, रियाज तिरंगा थामे बढ़ता था आगे

सोपोर आतंकी हमले में पिता व पति को खोने के बावजूद आबिदा की अश्रुपूर्ण आंखों में कश्मीर की खुशहाली के सपने जिंदा हैं। आतंकियों की धमकियों के कारण जब चुनाव लडऩे कोई नहीं आ रहा था तब रियाज अहमद पीर और उसके परिवार ने लोकतंत्र की मशाल को संभाला था।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Thu, 01 Apr 2021 05:00 AM (IST)Updated: Thu, 01 Apr 2021 09:39 AM (IST)
Sopore Terrorist Attack: आतंकी आंखों में तेजाब डालने की देते थे धमकी, रियाज तिरंगा थामे बढ़ता था आगे
सोपोर आतंकी हमले में पति व पिता को खोने के बाद भी आबिदा हारी नहीं हैं।

नवीन नवाज, श्रीनगर : आतंकियों और अलगाववादियों का गढ़-सोपोर। 2018 में निकाय चुनावों की घोषणा हुई तो मुख्यधारा की सियासत के बड़े-बड़े चेहरे मुंह छिपाकर किनारे हट गए। आतंकियों ने चुनाव लडऩे वालों की आंखों में तेजाब डालने की धमकी जो दी थी। ऐसे माहौल में भी रियाज अहमद पीर और उसका परिवार चुनावी रैलियों में तिरंगा थामे आगे बढ़ता दिखता था। जब सोपोर निकाय चुनाव लडऩे कोई आगे नहीं आ रहा था तो रियाज अहमद पीर और उसके परिवार ने लोकतंत्र की मशाल को संभाला।

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रियाज के साथ उनकी पत्नी आबिदा बेगम और ससुर शमसुदीन पीर ने चुनाव लडऩे का फैसला किया। तीनों निर्विरोध जीते और विकास को पटरी पर लाने के साथ लोगों के मसले हल करने में जुट गए। कश्मीर को बदलने के जुनून के कारण ही यह परिवार लोकतंत्र के दुश्मनों की आंखों की किरकिरी बन गया।

अमन के दुश्मनों ने कश्मीर में पनप रहे लोकतंत्र के पौधे को कुचलने की साजिश रची और इस परिवार को निशाने पर लिया। आतंकियों ने सोमवार को सोपोर नगर पालिका की बैठक में पहुंचकर अंधाधुंध गोलियों की बौछार कर दी, जिसमें रियाज और शमसुदीन शहीद हो गए। गनीमत रही कि रियाज की पत्नी आबिदा बैठक में नहीं थीं। पति व पिता को खोने के बाद भी आबिदा हारी नहीं हैं, उन्होंने कहा कि वह अपने खविंद (पति) के मिशन को पूरा करेगी। बता दें कि इस हमले में एक पुलिसकर्मी भी शहीद हो गया था।

सोपोर के निंगली क्षेत्र में एक छोटे से मकान में रहने वाले रियाज के घर में आज पूरी तरह मातम पसरा हुआ है। उनकी पत्नी आबिदा बेगम और बच्चों की हालत देखकर कोई भी सहज अंदाजा लगा सकता है कि उन पर क्या बीती है। पहली पत्नी के निधन के बाद रियाज ने आबिदा से दूसरी शादी की थी। अब उसके मासूम बच्चों के चेहरे पर यही सवाल तैर रहा है कि उनका आखिर क्या कसूर था।

जुल्म करने वालों ने शायद इस्लाम नहीं पढ़ा : रियाज की पत्नी आबिदा बेगम ने कहा कि इस्लाम के नाम पर जुल्म करने वालों (हमलावर आतंकियों) ने शायद इस्लाम नहीं पढ़ा है। हमने यहां चुनाव कार-बंगला खरीदने के लिए नहीं लड़ा था। अगर ऐसा होता तो हमारे घर मेें आज मुफलिसी का माहौल नहीं होता। आज हजारी दुनिया लुट गई है। मेरी मां और मेरे दो छोटे भाई भी बेसहारा हो गए हैं।

स्कूल, अस्पताल व तरक्की के लिए लड़ा था चुनाव : आबिदा ने कहा कि मेरे पिता (शमसुदीन) हमेशा कहते थे कि यहां सभी को खुशहाल बनाना है। मेरे खाविंद तो मेहनत मजदूरी करने वाले एक इमानदार शख्स थे। वह शुरू से ही सियासत में दिलचस्पी थी। वह कहते थे कि अगर यहां कोई चुनाव नहीं लड़ेगा तो न स्कूल होगा, न अस्पताल होगा, न बच्चों की तरक्की होगी। सब गरीब रहेंगे। हम चुनाव लड़ेंगे तो ही सोपोर उठेगा। यही सोचकर हम तीनों ने चुनाव लड़ा था। भाजपा वालों ने भी हमारा साथ दिया था। आबिदा न डरी हैं और न थमने वाली हैं। उसने कहा कि मेरे खाविंद और पिता की शहादत के बाद मेरी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। मुझे अब अपने बच्चों को संभालने के साथ-साथ उस मिशन को पूरा करना है, जिसे लेकर मेरे खाविंद ने चुनाव लड़ा था, मुझे भी पार्षद बनवाया।

रियाज ने कहा था-मुल्क को मजबूत बनाना है तो चुनाव लड़ना होगा : स्थानीय युवक शकील अहमद के अनुसार कि 2018 में जिहादियों ने चुनाव लडऩे वालों की आंखों में तेजाब डालने की धमकी दी थी। नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और अन्य दल चुनाव से किनारा कर गए थे। ऐसे हालात में भाजपा के कुछ उम्मीदवार तैयार हुए। रियाज अहमद से जब पूछा गया कि चुनाव लड़ोगे तो धमकियों के बावजूद वह न सिर्फ राजी हो गया, पत्नी और ससुर को भी चुनाव मैदान में उतार दिया। उस समय हमने उससे मजाक में पूछा था कि पूरा खानदान पार्षद बनाना है तो उसने कहा था कि किसी को हिम्मत दिखानी होगी, अगर मुल्क को मजबूत बनाना है तो चुनाव लड़ा ही होगा। जयहिंद का नारा बुलंद करना होगा।

लोकतंत्र की आवाज को दबाना चाहते थे आतंकी : उत्तरी कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा चुके सेवानिवृत्त एसएसपी तामिल बशीर ने कहा कि जिस तरीके से आतंकियों ने हमला किया है, वह सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल तो उठाता ही है, साथ यह भी बताता है कि वह लोकतंत्र की आवाज को दबाना चाहते थे। यह हमला उन सूचनाओं की पुष्टि करता है कि आतंकी अपने बुझते चिराग (आतंकवाद) को बचाने के लिए लोकतंत्र की मशाल रोशन रखने वाले परिवारों को निशाना बनाने की साजिश में जुटे हैं।

तिरंगा लेकर चलता था रियाज : सोपोर नगर पालिका के सदस्य मसर्रत कार ने कहा कि रियाज अहमद पीर उस दौर में तिरंगा थामकर चलता था जब राष्ट्रध्वज उठाने का मतलब शाम को घर में जिहादियों का हमला होता था। वह ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था, लेकिन जम्हूरियत और वतनपरस्ती की अहमियत समझता था। पार्षद मसर्रत कार ने कहा कि आज पुलिस कहती है कि उसके पास हमारी बैठक की सूचना नहीं थी। हमने पुलिस और अतिरिक्त जिला उपायुक्त को पत्र लिखकर सुरक्षा प्रबंधों का आग्रह किया था। हमने पत्र में लिखा था कि 29 मार्च को बैठक होगी। अगर नगर पालिका के सीईओ ने प्रशासन को सूचित नहीं किया है तो मैं कुछ नहीं कर सकती।

यह है रियाज का परिवार : रियाज अहमद के पड़ोसी आरिफ सोफी ने भी कहा कि वह काजियाबाद (हंदवाड़ा) का रहने वाला था। रियाज की पहली पत्नी की मौत हो चुकी है और उस शादी से उसके दोनों बच्चे शादीशुदा हैं और अलग हंदवाड़ा में रहते हैं। रियाज यहां शमसुदीन के घर ही रहता था। रियाज और आबिदा के तीन बच्चे हैं। बड़ी बेटी की उम्र करीब 10 साल, छोटी की छह साल व आठ साल का एक बेटा है। 


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